view all

इस रणनीति से शहरी वोटरों को लुभाए कांग्रेस: थरूर

कांग्रेस व्यापारी वर्ग को यह कहकर अपने पक्ष में करे कि वो उनके व्यापारिक और आर्थिक हितों का खयाल रखेगी

FP Staff

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अपने एक ब्लॉग में लिखा कि भारतीय राजनीति में एक खास मान्यता है कि कांग्रेस और बीजेपी जैसे प्रमुख पार्टियों के वोटर्स गांव और शहर के बीच बंटे हुए हैं. माना जाता है कि कांग्रेस पार्टी गांव की गरीबी और परेशानियों को वोट के रूप में भुनाने में कामयाब रही है तो बीजेपी का वोट बैंक शहरों में है. हालिया गुजरात चुनाव में कांग्रेस की गांवों की जनता में लहर थी लेकिन बीजेपी ने उसे अपने शहरी वोट बेस से खत्म कर दिया.

इसकी वजह से कांग्रेस के सामने एक नई चुनौती है. मौजूदा सरकार की कृषि के क्षेत्र में असफलता कांग्रेस के लिए अच्छी खबर है क्योंकि गांव के काफी मतदाता ये सोचते हैं कि बीजेपी ने उनके लिए कुछ नहीं किया. लेकिन बीजेपी शहरी वोट को अपने पक्ष मे करनें में सफल रही है- खासकर व्यापारी वर्ग, युवा और प्रोफेशनल्स को. आलोचकों का कहना है कि इस वर्ग के बिना नैया पार लगना मुश्किल है. पर कांग्रेस को नहीं पता कि इनको कैसे लुभाया जाए.


कांग्रेस कैसे लुभाए शहरी लोगों को

थरूर ने आगे लिखा कि यह एक दिलचस्प तर्क है और कांग्रेस पार्टी का होने के नाते मै मानता हूं कि हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए. 2009 तक यह शहरी मतदाता कांग्रेस का हुआ करता था. अब हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि हम इसे फिर से कैसे अपने पक्ष में करें. शहरी जनसंख्या लगातार बढ़ रही है. 2001 में शहरी जनसंख्या 27.81 फीसदी थी जो कि 2011 में बढ़कर 31.16 फीसदी हो गई और इसी अनुपात में ग्रामीण जनसंख्या घटी भी है. 2021 तक शहरी जनसंख्या के और ज़्यादा बढ़ने की उम्मीद है. इसलिए कांग्रेस के लिए बहुत ज़़रूरी है कि वो शहरी वोटर्स को अपने पक्ष में करे.

फोटो रॉयटर से

लेकिन पार्टी के शुभचिंतकों की कुछ और चिंताएं हैं. यह बात साफ है कि बीजेपी द्वारा ग्रामीण जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाना कांग्रेस के लिए बड़ा अवसर है लेकिन चिंता इस बात की है कि अगर कांग्रेस फिर से अपनी पुरानी नीतियों को ही जैसे ऋण माफी, ग्रामीण सहायता पैकेज, एमएसपी व मनरेगा के लिए फंड को बढ़ाना आदि को ही फिर से लागू करती है तो शहरी वोटर इससे और भी ज्यादा दूर हो जाएंगे. इसलिए कांग्रेस को ऐसी रणनीति अपनानी होगी जिससे ग्रामीण मतदाता के साथ-साथ शहरी मतदाता इसके पक्ष में आ जाएं.

बीजेपी से नाराज हैं व्यापारी

उन्होंने लिखा कि मान लेते हैं कि 2014 से बीजेपी का शहरी वोट बेस बढ़ा है इसका सबसे बड़ा उदाहरण है गुजरात विधानसभा चुनाव. गुजरात विधानसभा चुनाव में शहरी क्षेत्रों में बीजेपी की सफलता की दर 82.7 फीसदी रही. लंबे समय से बीजेपी को व्यापारी वर्ग की पार्टी माना जाता रहा है लेकिन इस जीत से सिद्ध होता है कि सच्चाई इससे परे कुछ और है.

थरूर इस बात से असहमति जताते हुए लिखते हैं कि मैं ससम्मान इस तर्क से असहमत हूं. व्यापारी वर्ग व छोटे किराना दुकानदार बीजेपी सरकार से काफी नाखुश हैं. भारतीय व्यापारी पारंपरिक रूप से सरकार की नीतियों का मूल्यांकन इस बात से करता है कि उसे व्यक्तिगत तौर पर कितना फायदा हुआ है बजाय इसके कि कोई पॉलिसी सैद्धांतिक रूप से सही है या नहीं. लेकिन बीजेपी के द्वारा लाई गई नोटबंदी व जीएसटी ने पूरे भारत में सभी जगहों पर व्यापारी वर्ग को निराश किया है. गुजरात में भी मोदी ने 'गुजराती अस्मिता' के आधार पर वोट मांगा और उसी आधार पर उन्हें वोट मिला. लेकिन अन्य राज्यों पर यह तर्क काम नहीं करेगा.

इसलिए कांग्रेस के हाथों में यह एक ऐतिहासिक अवसर है जब वो शहरी व्यापारी वर्ग को यह कहकर अपने पक्ष में कर सकती है कि वो उनके व्यापारिक व आर्थिक हितों का खयाल रखेगी. लेकिन खास बात यह है कि इनकी संख्या अभी भी काफी कम है. तो शहरी गरीबों पर फोकस करना कैसा रहेगा जो कि शहरी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है.

मजदूर यूनियनों का पड़ा असर

यह बात सही है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में शहरी क्षेत्रों में उद्योगों की खराब होती स्थिति और बहुत सी बड़ी फैक्टरियों और कपड़ा मिलों के बंद होने के बाद शहरी कामगारों की राजनीतिक सौदेबाज़ी (पोलिटिकल बार्गेनिंग) करने की शक्ति में कमी आई है. ये वर्ग पारंपरिक रूप से या तो कांग्रेस का था और या तो लेफ्ट का, लेकिन बीजेपी का कभी नहीं था. पर पिछले 25 सालों में जिस तरह से शहर 'उत्पादन केंद्रों' की जगह 'उपभोक्ता केंद्रों' के रूप में परिवर्तित हुए हैं उसने बीजेपी को काफी लाभ पहुंचाया.

फोटो रॉयटर से

नया जो वर्किंग क्लास है वो बिखरा हुआ है, इसलिए बड़े मजदूर यूनियन नहीं हैं जो कि दबाव बना सकें. परिणाम यह हुआ कि यह एक बड़ा समुदाय बीजेपी के ध्रुवीकरण का शिकार हो गई. बीजेपी ने इन्हें बताया कि इनका लाभ इनकी सामुदायिक पहचान में है. और सिर्फ बीजेपी ही है जो हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करती है.

कांग्रेस भी करे हिंदुत्व की बात

इसका जवाब देने के लिए कांग्रेस को दोतरफा रणनीति अपनानी होगी. पहला- बीजेपी की सांप्रदायिक अपील को यह कहकर न्यूट्रलाइज़ करना होगा कि हम भी हिंदुत्व की बात करते हैं, बल्कि हमारा हिंदुत्व ज्यादा समावेशी है जो सबको साथ लेकर चलता है बजाय कट्टरपंथ के. दूसरा- चूंकि शहरी वर्ग अभी भी मूलभूत समस्याओं जैसे सड़क पानी, बिजली इत्यादि की कमी से जूझ रहा है इसलिए कांग्रेस को डिबेट को इन मुद्दों पर शिफ्ट करना होगा. ज़रूरत इस बात की भी है कि बीजेपी की इन कमियों को तथ्यों के आधार पर जनता के सामने रखना होगा.

बेहतरी के सवाल पूछे कांग्रेस

2014 के चुनावों में बीजेपी ने गवर्नेंस और विकास को मुद्दा बनाया और भ्रष्टाचार, आर्थिक विकास व मूल्य वृद्धि (खासकर भोजन व ईंधन) के मुद्दे पर लगातार कांग्रेस पर हमले करती रही. जिसकी वजह से शहरी व ग्रामीण वोट को इसने अपने पक्ष में कर लिया. इस समीकरण ने कई राज्यों के चुनावों में भी बीजेपी की स्थिति को बेहतर कर दिया.

जिस तरह से भारत में लगातार शहरीकरण हो रहा है उसे देखते हुए शहरी और गांव के बीच अंतर करना ठीक नहीं है. दूसरी बात गांवों में भी गैर-कृषि क्षेत्र में रोज़गार वाले लोगों की जनसंख्या अब बढ़ रही है. इसके अलावा गांवों में ब्रॉडबैंड व इंटरनेट पहुंचने की वजह से ग्रामीण जनसंख्या की अपेक्षाएं भी शहरी युवकों की तरह हो गईं हैं.

अंत में वो लिखते हैं कि इसलिए कांग्रेस को लोगों से सिर्फ एक प्रश्न पूछना चाहिए कि 'आप 2014 से पहले की स्थिति में जिस तरह थे क्या अब उससे बेहतर स्थिति में हैं?' बहुमत आपसे कहेगा 'नहीं'. और यही वास्तविकता बीजेपी की वर्तमान बेहतर स्थिति को पलटकर कांग्रेस के पक्ष में कर सकता है.

(न्यूज18 हिंदी से साभार)