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'चतुर बनिया' अशिष्ट तो 'निर्धन ब्राह्मण' असंसदीय क्यों नहीं?

सभी विकास के पथ पर बढ़ते रहे और ब्राह्मण में निर्धनता को ही गुण माना गया

Shivaji Rai

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा राष्ट्रपिता गांधी जी को 'चतुर बनिया' कहने पर देश में बवाल सा मच गया है. कोई इसे अशिष्ट व्यवहार करार दे रहा है तो कोई इसकी कड़े शब्दों में निंदा कर रहा है. पर सौ आने शुद्ध ब्राह्मण अवधू गुरु की पीड़ा अलग है.

गुरु आज द्रवित हैं. गुरु का कहना है कि आज गांधी जी को 'चतुर बनिया' कहने पर पूरा देश खड़ा हो गया है. अशिष्ट व्यवहार कहकर माफी मांगने की मांग उठ रही है लेकिन उसी देश में ब्राह्मणों को निर्धन कहने पर विरोध में किसी मुंह से आवाज तक नहीं फूटती है.


ब्राह्मणों पर निर्धनता की टिप्पणी से किसी को भी सरोकार नहीं है. जो राजनीतिक दल ब्राह्मण समर्थक माने जाते हैं उन्हें भी नहीं. सब ब्राह्मणों के साथ सिर्फ छलावा कर रहे हैं. आज देश में ब्राह्मणों की दशा वह है जो कि नाजियों के राज्य में यहूदियों की थी.

गुरु का कहना है कि ब्राह्मणों को सदा कथा-कहानियों में निर्धन ही बताया गया. एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता जिसमें ब्राह्मणों ने पूरे भारत पर राज्य किया हो. जिस चाणक्य के दिशा-निर्देश में चंद्रगुप्त सम्राट बने, पूरे भारत पर अखंड राज्य की स्थापना की. उस चाणक्य को भी पौराणिक मान्यताओं का हवाला देकर राजप्रसाद से दूर कुटिया में ही रहने पर विवश किया गया.

इतिहास और पुराण में भी एक भी धनवान ब्राह्मण का जिक्र तक नहीं है. श्रीकृष्ण की कथा में भी सुदामा को निर्धन बताया गया. उनकी निर्धनता के सभी पक्षों को दर्शाया गया पर लाभ के नाम पर उन्हें सिर्फ श्रीकृष्ण का दोस्त कहकर संतुष्ट कर दिया गया.

राजनीतिक साजिश के तहत ब्राह्मणों को घमंडी बताया गया

इसके इतर यदुवंश में जन्मे श्रीकृष्ण जो कि आजकल 'ओबीसी' के अंतर्गत आरक्षित जाति है. उस समय भी लाभ के भागी रहे. यूपी की पिछली अखिलेश सरकार की तरह उस समय भी उनका प्रभुत्व रहा. उस दौर में भी राजनितिक साजिश के तहत ब्राह्मणों को घमंडी बताया गया और लाभ के सभी पदों से वंचित रखा गया.

यदि ऐसा होता तो यह कैसे संभव है कि सुदामा अपने से नीची जाति के व्यक्ति को भगवान की उपाधि देते. यह साजिश ही थी कि उस दौर में भी जहां दूसरे लोग रोजगार और नौकरी में लगे रहे वहीं ब्राह्मणों के लिए धनार्जन का एकमात्र साधन भिक्षाटन बताया गया. जो हर लिहाज से असंवैधानिक था.

सभी विकास के पथ पर बढ़ते रहे और ब्राह्मण में निर्धनता को ही गुण माना गया. ब्राह्मणों से यह अपेक्षा की जाती रही है कि वह अपनी जरूरतें कम से कम रखें और अपना जीवन ज्ञान की आराधना में अर्पित करें. एक अमेरिकी विद्वान एल्विन टैफलर ने इसी मान्यता पर तंज करते हुए कहा था कि 'हिंदुत्व में निर्धनता भी एक शील है.'

गुरु कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों की तरह ब्राह्मणों को जबरन कभी मान्यताओं के आधार पर तो कभी शासनादेश जारी कर निर्धनता थोपी गई. लेकिन किसी ने इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई. कश्मीरी पंडितों को ही देख लें तो स्पष्ट है उनका सबसे अधिक शोषण हुआ फिर भी आज तक न एक पंडित ने हथियार उठाया, न कोई आतंकवादी बना. सभी भिक्षाटन कर तंगहाली में जीवन काटते रहे.

ब्राह्मणों को कहा गया उनकी पूंजी विद्या है

निर्धनता में धकेलकर ब्राह्मणों को यह कहा गया कि उनकी पूंजी विद्या है. यदि पूंजी पर एकाधिकार होता तो वाल्मीकि रामायण, तिरुवलुवर तिरुकुरल और मछुआरन के गर्भ से पैदा हुए ऋषि व्यास महाभारत कैसे लिखते?

राम, बुद्ध, महावीर, कबीर और विवेकानंद कोई ब्राह्मण नहीं फिर विद्या पर एकाधिकार की बात भी गलत है. गुरु की मोदी जी से अपील है कि सबका साथ, सबका विकास के नारों में ब्राह्मणों को भी शामिल किया जाए और निर्धनता के कलंक को मिटाया जाए.