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बेंगलुरु: राजनीतिक 'इंतकाम' का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं ‘छापे’

‘छापों’ और विधायकों की ‘घेराबंदी’ दोनों की ‘टाइमिंग’ व्यवस्थागत दोषों की तरफ इशारा करती है

Pramod Joshi

कर्नाटक के मंत्री डी के शिवकुमार के ठिकानों पर आयकर छापों को लेकर कांग्रेस ने विरोध व्यक्त किया है, पर सच यह है कि यह देन उसकी ही है. ऐसे छापे पहले भी डाले जाते रहे हैं और शायद भविष्य में भी डाले जाएंगे. और इन्हें राजनीति से अलग करके देखना संभव नहीं. हां, हमें समझना चाहिए कि ऐसी स्थिति पैदा क्यों हुई.

‘छापे’ आर्थिक अपराधों के खिलाफ होते हैं और आर्थिक अपराध इस राजनीति से बुरी तरह गुंथे हुए हैं. लोकसभा में मल्लिकार्जुन खडगे और राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने इसे ‘प्रतिशोध’ और लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया है, पर क्या यह खतरा पहली बार हमारे सामने पेश आया है?


संभव है आयकर के ये छापे उस राजनीतिक दीवार के तोड़ के रूप में डाले गए हों, जो विधायकों की घेराबंदी के लिए खड़ी की गई है. दोनों बातें हमारी राजनीतिक व्यवस्था के पाखंड की ओर इशारा करती हैं.

‘छापों’ और विधायकों की ‘घेराबंदी’ दोनों की ‘टाइमिंग’ व्यवस्थागत दोषों की तरफ इशारा करती है. कोई दावा नहीं कर सकता कि आयकर विभाग और सीबीआई का इस्तेमाल सरकारें नहीं करतीं. कुछ दिन पहले हमने लालू यादव के पारिवारिक ठिकानों पर छापेमारी देखी थी. कांग्रेस पार्टी आज खुद को पीड़ित साबित कर रही है, पर यह ईजाद तो उसकी ही है. बीजेपी को यह रास्ता किसने दिखाया?

बेंगलुरु के पास एक रिसॉर्ट में गुजरात से आए 40 से ज्यादा कांग्रेसी विधायक रखे गए हैं ताकि वे बीजेपी के चंगुल से बचे रहें. रविवार को गुजरात कांग्रेस के नेता शक्ति सिंह गोहिल इन विधायकों को मीडिया के सामने लाए थे. उन्होंने दावा किया था कि बीजेपी विधायकों को 15-15 करोड़ रुपये तक का लालच दे रही है.

शायद वे रकम ज्यादा बड़ी बता रहे हैं, पर उनकी बात पर आश्चर्य किसी को नहीं है. हां, यह सवाल जरूर है कि इतनी बड़ी रकम देकर बीजेपी अहमद पटेल को हराना क्यों चाहती है?

एक जमाने में बॉलीवुड की सबसे लोकप्रिय थीम ‘इंतकाम’ होती थी. इस हफ्ते होने वाले राज्यसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी किसी भी कीमत पर सोनिया गांधी के सलाहकार अहमद पटेल को हरा देना चाहती है. यह प्रतिष्ठा की लड़ाई है.

अहमद पटेल के जीत जाने से न तो कांग्रेस को कोई बड़ी उपलब्धि हासिल हो जाएगी और न उनके हारने से बीजेपी कोई किला फतह कर लेगी. राज्यसभा की एक सीट से सदन का असंतुलन बिगड़ने वाला नहीं है.

जाहिर है यह सब उस व्यक्तिगत लड़ाई का हिस्सा है, जो गुजरात में साल 2002 के बाद से चल रही है. इस लड़ाई में देश की सांविधानिक संस्थाओं का इस्तेमाल किया गया. नरेंद्र मोदी और उनके निकट सहयोगी भी एक अर्से तक निशाने पर रहे हैं. क्या यह इंतकाम है? वरना और क्या है?

ऐसे मौकों पर हमारे सामाजिक-राजनीतिक जीवन के कुछ दूसरे सत्य भी सामने आते हैं. राजनीति किस प्रकार सामंती परंपराओं को आगे बढ़ा रही है. यह भारतीय लोकतंत्र है, जहां जन-प्रतिनिधि भेड़ों के रेवड़ की तरह हांककर एक जगह से दूसरी जगह लाए जाते हैं. कुछ महीने पहले हमने तमिलनाडु में ऐसा ही तमाशा देखा था.

इस राजनीति का दूसरा पहलू यह है कि ऐसे मौकों पर करोड़ों के वारे-न्यारे होते हैं. कर्नाटक सरकार के मंत्री डीके शिवकुमार को गुजरात के लाए गए मेहमानों की खातिरदारी की जिम्मेदारी सौंपी गई है. संयोग है कि आयकर के मामलों में उनकी जांच भी चल रही है. और अब उनसे जुड़े 39 स्थानों पर आयकर विभाग ने छापेमारी की है.

उनके दिल्ली निवास से पांच करोड़ रुपये की नकदी मिली है. जिस रिसॉर्ट में गुजरात के कांग्रेस विधायक ठहरे हुए हैं, वहां भी छापेमारी हुई है. यह रिसॉर्ट भी डीके शिवकुमार से संबद्ध है. हाल में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद राज्य सरकार ने उस पर 982 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है. उसकी कहानी अलग है.

बहरहाल आयकर विभाग की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि उनकी टीम इगल्टन गोल्फ रिसॉर्ट में कांग्रेसी विधायकों की ठहरे होने की वजह से वहां नहीं गई थी. टीम मंत्री शिवकुमार के ठिकानों पर छापेमारी करने गई थी. इगल्टन रिसॉर्ट भी उन्हीं का है इसलिए आयकर विभाग की टीम वहां गई थी. रिसॉर्ट में कोई छापेमारी नहीं हुई है.

आयकर विभाग का कहना है कि हमें गुजरात के चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है. हम तो आयकर कानून की धारा 132 के तहत साक्ष्य एकत्र कर रहे हैं. यह कार्रवाई एक अर्से से चली आ रही जांच के सिलसिले में है.

सवाल इस जांच की ‘टाइमिंग’ का है. ‘टाइमिंग’ इसके राजनीतिक महत्त्व को रेखांकित कर रही है. आयकर अधिकारियों ने गुजराती विधायकों के साथ छेड़खानी नहीं की, पर राजनीतिक संदेश तो गया.

राजनीतिक दलों के दस-बीस करोड़ रुपये के रोकड़े को अब हम मामूली बात समझते हैं. यह कैसी बीमारी है? सब जानते हैं कि राजनीतिक में काला धन भरा पड़ा है. इसकी मदद से सब काम चल रहा है और फिर भी जय होती है जनादेश की.