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अमेरिका में ताकत दिखाने के बाद क्या रंग दिखाएगी राहुल गांधी की अमेठी यात्रा?

राहुल ने 2019 में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा तो जता दी है, लेकिन अब जरुरत है कि कांग्रेस उसके लिए ठोस रणनीति बनाए

Aparna Dwivedi

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार को अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के दौरे पर हैं. अमेठी के इस दौरे में राहुल गांधी के लोगों से सीधे जुड़ाव के कार्यक्रम रखे गए हैं. खास बात ये है कि अक्सर अपने संसदीय क्षेत्र में भ्रमण करने वाले राहुल के लिए इस बार किसानों के साथ ही कांग्रेस के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं से भी सीधे संवाद के कार्यक्रम रखे गए हैं.

राहुल गांधी का ये दौरा कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है. उत्तर प्रदेश चुनाव के बाद राहुल गांधी की अपने संसदीय क्षेत्र में यह पहली यात्रा है. इस यात्रा में उनका कार्यक्रम में किसानों और कार्यकर्ताओं को तरजीह दी है. पिछले कई सालों में ये पहली बार है कि राहुल गांधी अपने कार्यकर्ताओं से खास तौर से मिलने आ रहे हैं. राहुल गांधी ने किसानों के भूमि अधिग्रहण मामलें पर पहले ही अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है. माना जा रहा है कांग्रेस इस यात्रा के बहाने अपने जमीन को फिर से हासिल करने की तैयारी में है.


वैसे भी राहुल गांधी के तेवर कुछ अलग ही नजर आ रहे हैं. हाल-फिलहाल अमेरिका दौरे में मोदी सरकार पर चुन-चुन कर निशाना साधने वाले राहुल गांधी का आत्मविश्वास भी साफ नजर आ रहा है. वो देश की नीतियों पर सवाल कर रहे थे और अपनी पार्टी पर उठने वाले सवालों का भी जवाब दे रहे थे. छवि निर्माण के लिहाज से उनका यह दौरा काफी महत्वपूर्ण था. राहुल गांधी की इस वापसी को उनकी राजनीति की दूसरी पारी की शुरुआत माना जा रहा है.

निश्चित रूप से 130 साल पुरानी और देश की सबसे बड़ी व ऐतिहासिक कांग्रेस पार्टी में इस पदोन्नति के साथ राहुल गांधी की जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों में इजाफा होगा. अब राहुल के कंधों पर कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाने की जिम्मेदारी है. हाल फिलहाल विदेश में अपनी मजबूत छवि बना कर आए राहुल गांधी के सामने अब अपने आप को साबित करने की चुनौती है.

दीवाली के बाद राहुल गांधी कांग्रेस की कमान संभालने की तैयारी में हैं. दिवाली के बाद संगठन के चुनाव में राहुल गांधी को अध्यक्ष पद की कुर्सी से नवाजा जाएगा. कांग्रेस इस समय का 2004 से इंतजार कर रही थी कि कब राहुल गांधी कांग्रेस की कमान संभालेंगे.

राहुल गांधी इस बात को समझते हैं कि संगठन को मजबूत करने के लिए पहले अपने घर को मजबूत करना होगा. अमेठी में लगातार कमजोर होते कांग्रेस संगठन के लिए अपने गढ़ में खुद को मजबूत करना एक चुनौती है और ये अकेली चुनौती नहीं है. देश वापस लौटने के बाद राहुल के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा है. इन चुनौतियों में आने वाले चुनाव भी हैं.

अमेठी- उत्तर प्रदेश

विधानसभा में राहुल गांधी की अमेठी लोकसभा सीट के विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. पार्टी इस संसदीय सीट के तहत आने वाली सभी विधानसभा सीटें - अमेठी, तिलोई, जगदीशपुर, गौरीगंज और सलोन हार गई. कांग्रेस को इतना बड़ा झटका पहली बार मिला. अब राहुल गांधी अपने पूरे फार्म में अपने गढ़ को वापस हासिल करने में जुट गए.

गुजरात

गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 22 जनवरी को ख़त्म हो रहा है और वहां इस साल के अंत में चुनाव हो सकते हैं. हालांकि पहली नजर में देखा जाए तो गुजरात विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए एक हारी हुई बाज़ी है. यहां कांग्रेस बहुत पिछड़ी हुई है और हाल में जो सर्वे भी किए गए हैं उनमें बीजेपी को बहुत ज़्यादा आगे दिखाया गया है.

शंकर सिंह वाघेला के अलग होने से कांग्रेस और सिकुड़ गई है. अब राहुल गांधी के सामने ये चुनौती है कि गुजरात में बीजेपी के खिलाफ चल रहे असंतोष को अपने वोट में बदले. ये पहली बार है जब कांग्रेस वहां से लड़ने के लिए कमर कस रही है जहां से प्रधानमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. कांग्रेस उन्हें उनके गढ़ में घेरने की कोशिश कर रही है.

कांग्रेस की तरफ से अहमद पटेल पर्दे के पीछे सभी बीजेपी विरोधी गुटों को इकट्ठा करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. अगर कांग्रेस बीजेपी के गढ़ में सेंध लगाने में थोड़ी-बहुत भी कामयाब होती है तो ये पार्टी और राहुल गांधी के लिए बड़ी उपलब्धि होंगे.

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश में किसान आंदोलन में कांग्रेस ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. साथ ही कांग्रेस के अलग अलग गुटों के बंटे नेताओं को एकजुट किया. ये राहुल गांधी के लिए अच्छी बात है लेकिन चुनाव में अभी साल भर का समय है. राहुल के सामने कांग्रेस को दिग्गज नेताओं की एकजुटता कायम रखना और कार्यकर्ताओं में जागा जोश कायम रखना एक बड़ी चुनौती है.

दूसरी बड़ी चुनौती है कि राज्य का नेतृत्व किसे दिया जाए. युवा नेता के नाम पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम उभर रहा है. बताया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य राहुल की पहली पसंद भी हैं लेकिन यहां भी कमलनाथ मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. कई बार से लगातार संसद पहुंचने वाले कांग्रेस के नाथ के लिए ये आखिरी विधानसभा चुनाव माना जा रहा है. वह खुद को प्रदेश में पार्टी का चेहरा बनाए जाने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.

कमलनाथ के कद और उनकी पहुंच की वजह से राहुल अपने फैसले का ऐलान नहीं कर पा रहे. सूत्रों की माने तो राहुल ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाना चाहते हैं और कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष लेकिन बात बन नहीं पा रही है.

पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का विश्वास हासिल करना

राहुल गांधी को उस पीढी के नेताओं के साथ बेहतर तालमेल स्थापित करना होगा, जो उनके पिता व मां के साथ काम कर चुकी है. शीला दीक्षित, अमरिंदर सिंह, पी चिदंबरम, ए के एंटोनी, अंबिका सोनी, आनंद कुमार ऐसे ही नेता हैं. वरिष्ठ नेताओं में दिग्विजय सिंह व मधुसूदन मिस्त्री को राहुल गांधी के बेहद करीब माना जाता है. हाल में गुजरात राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल ने अपना दमखम दिखा कर जीत हासिल की. राहुल को वरिष्ठ नेताओं का अनुभव और युवा नेताओं के जोश में तालमेल बैठाना होगा.

कार्यकर्ताओं का मनोबल उंचा करना

कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का मनोबल अभी ऐतिहासिक रूप से निचले पायदान पर है. राहुल गांधी को उनका मनोबल उंचा करना होगा. यहां पर की चमत्कार नहीं हो सकता है. कि तुरंत फुरंत का कार्यक्रम किया जाए. उन्हें और उनकी टीम को सतत काम करना होगा. केंद्रीय और राज्यों के स्तर पर एक व्यापक कार्यक्रम तैयार करना होगा और उसमें केंद्र, राज्य, जिले से लेकर पंचायत स्तर तक के कार्यकर्ताओं को गतिशील बनाना होगा. निस्संदेह इससे पार्टी में नई जान आ सकती है.

चुनावी मुद्दे

राहुल गांधी ने हाल फिलहाल के विदेश यात्रा में नोटबंदी, बेरोज़गारी, जीएसटी, किसानों की दुर्गति के लिए मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया. मोदी सरकार पर जमकर वार किया है. ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी पहले भी मुद्दों को नहीं उठाते थे. मंदसौर में राहुल गांधी ने किसानों के मुद्दे पर जोरदार आवाज उठाई और फिर किसानों के मुद्दे को बीच में छोड़कर इटली चले गए.

राहुल के विरोधी आरोप लगाते हैं कि वो हर मुद्दे को छूकर, छोड़ देते हैं. मतलब आखिरी अंजाम तक नहीं पहुंचाते. विदेश से आने के बाद हर बार राहुल एक नए अंदाज़ में नज़र आते हैं और इस बार भी पार्टी के नेताओं की नज़र उनपर है. पार्टी राहुल से चमत्कार की आस लगाए बैठी है.

अमेरिका दौरे से लाभ को बनाए रखना

2012 में कांग्रेस में घमंड आने की बात कह कर अपने आप को गंभीर नेता के रूप में स्थापित किया जो कि अपनी कमजोरियों को समझता है और जबाब देने की हिम्मत रखता है. राहुल का भाषण बुरा नहीं था, लेकिन अभी भी आमने-सामने की बातचीत उनके लिए बड़ी समस्या बनी हुई है. राहुल गांधी को देश में अपने आत्मविश्वास और भरोसा दिखाना होगा. बर्कले विश्वविद्यालय की तरह कांग्रेस और राहुल गांधी को भारतीय विश्वविद्यालयों में जाना चाहिए और उन्हें अपनी रणनीति को बताना चाहिए.

अमेरिका में राहुल के भाषण और उनकी सीधी बातचीत ने 2019 के आम चुनाव की उनकी रणनीति की झलक दिखाई है. राहुल ख़ुद के नेतृत्व के ज़रिए कांग्रेस से बीजेपी को हराने की कोशिश करेंगे. राहुल ने 2019 में प्रधानमंत्री बनने की इच्छा तो जता दी है, लेकिन अब जरुरत है कि कांग्रेस उसके लिए ठोस रणनीति बनाए. और इसकी शुरुआत राहुल गांधी को अपने संसदीय सीट अमेठी से करनी होगी.