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हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017: क्या फिर परंपरा का निर्वाह करेंगे राज्य के वोटर

राज्य में दो बड़े नेता ही राजनीति का केंद्र बने हुए हैं, ऐसे में देखना होगा जनता इस बार क्या निर्णय लेती है

FP Staff

हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए तारीख का ऐलान हो गया है. पूरे राज्य में आगामी 9 नवंबर चुनाव कराए जाएंगे. वोटों की गिनती 18 दिसंबर को की जाएगी. वोटिंग और काउंटिंग के बीच लंबे अंतराल के लिए चुनाव आयोग ने जवाब दिया है कि ऐसा गुजरात चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया है. बताया गया कि गुजरात चुनाव भी 18 दिसंबर के पहले ही करा लिए जाएंगे.

इसके अलावा जल्दी चुनाव कराने का दूसरा कारण चुनाव आयोग ने बर्फबारी को भी बताया. अधिकारियों ने कहा कि सर्दी में बर्फबारी के प्रभाव से बचने के लिए हिमाचल प्रदेश में चुनावी डेट्स जल्दी रखी गई हैं.


गुजरात में चुनावी ऐलान में देरी के पीछे चुनाव आयुक्त ने बताया कि ऐसा राज्य चुनाव आयोग के एक पत्र की वजह से किया गया है. दरअसल राज्य सरकार ने जुलाई में आई बाढ़ की वजह से चल रहे राहत और बचाव की वजह से थोड़ा और समय मांगा है. उम्मीद की जा रही थी कि गुजरात चुनाव की डेट्स का ऐलान भी गुरुवार को हो जाएगा लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं हुआ.

मुख्य चुनाव आयुक्त अचल कुमार ज्योति ने बताया कि देश के चुनावी इतिहास में पहली बार ऐसा प्रयोग किया गया है कि करीब 136 बूथ ऐसे होंगे जिनकी जिम्मेदारी महिलाओं पर होगी.

2012 में भी नतीजे आने में हुई थी देर

हिमाचल प्रदेश में 2012 में 4 नवंबर को चुनाव हुआ था और 20 दिसंबर को नतीजा आया था. हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं. यहां पिछली बार कांग्रेस ने 36 सीटें जीती थीं. यहां बीजेपी की हार हुई थी और उसे 26 सीटें ही मिली थीं. बीजेपी ने प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई में चुनाव लड़ा था. कांग्रेस के वीरभद्र सिंह सीएम बने थे.

बीते कई दशक के दौरान राज्य की राजनीति दो ध्रुवीय रही है. बीजेपी के प्रेम कुमार धूमल और कांग्रेस के वीरभद्र सिंह के बीच सत्ता की प्रमुख लड़ाई रही है. हाल ही में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने घोषणा की थी कि वीरभद्र सिंह ही इस चुनाव में भी हमारे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बने रहेंगे.

हालांकि वीरभद्र सिंह को आय से ज्यादा संपत्ति के मामले को लेकर चल रही सीबीआई जांच की वजह से काफी फजीहत झेलनी पड़ी है. दूसरी तरफ बीजेपी के लिए एक समस्या प्रेम कुमार धूमल की उम्र का मामला भी है. धूमल की उम्र 73 साल हो चुकी है. नई बीजेपी में 75 साल से ज्यादा उम्र के नेताओं को कोई मंत्रिपद नहीं दिए जाने का अलिखित कानून है. ऐसे में बीजेपी अगर उन्हें उम्मीदवार भी बनाती है तो ये फौरी ही होगा. वहीं अगर चुनाव में बीजेपी जीतती है तो वर्तमान केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा भी पूरी जोर आजमाइश कर सकते हैं.

कृषि नहीं बन पाई है चुनावी मुद्दा

हिमाचल प्रदेश एक पर्वतीय प्रदेश है और यहां खेती करना काफी कठिन कार्य है. 80 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र असिंचित हैं जहां खेती बारिश पर निर्भर है. इसके अलावा भी किसानों को जंगली जानवरों के हमले के खतरों से निपटना पड़ता है. प्रदेश विधानसभा चुनाव में खेती का मुद्दा प्रमुख विषय के रूप में नहीं उभर रहा है.

पहाड़ों पर पानी के स्रोत सूख रहे हैं और सिंचाई का कोई वैकल्पिक साधन नहीं है. खेती बारिश पर निर्भर रह गई है.

बेरोजगारी चुनाव में बन सकती है मुद्दा 

कांग्रेस पिछले पांच सालों से प्रदेश की सत्ता में है. इस बार के चुनाव में प्रदेश में मतदान करने वालों में 29.5 प्रतिशत युवा मतदाता हैं. इनमें 40,567 युवा पहली बार अपने वोट का इस्तेमाल करेंगे. ऐसे में इन युवा वोटरों के लिए रोजगार पहली प्राथमिकता है और ये बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता है.

दलित कार्ड को भुनाने में जुटी कांग्रेस-बीजेपी

बीजेपी चुनाव समिति की बैठक ये तस्वीर प्रेम कुमार धूमल ने अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर की है

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की 25 प्रतिशत दलित आबादी को साधने में कांग्रेस और भाजपा दोनों दल जोर-शोर से जुट गए हैं . राज्य में दोनों दलों की ओर से ‘दलित सम्मेलनों’ के आयोजनों का सिलसिला शुरू हो गया है और इसमें दलित बहुल इलाकों पर खास ध्यान दिया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो प्रदेश में चुनाव कभी जातिवाद पर आधारित नहीं रहे हैं .