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यूपी में बूचड़खानों पर कार्रवाई: जानें वैध और अवैध का अंतर

जानें वैध और अवैध बूचड़खानों के बीच का अंतर

FP Staff

हाल ही में उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने राज्य में अवैध बूचड़खाने बंद किए जाने का आदेश दिया था. सीएम के इस आदेश के बाद से ही राज्य में मीट मिलना काफी मुश्किल हो गया है. लेकिन स्थिति तब और बिगड़ गई जब मीट विक्रेताओं ने आदेश के खिलाफ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का फैसला किया.

हड़ताल के कारण 15,000 करोड़ से भी ज्यादा के इस उद्योग को बड़ा झटका लगा है. वहीं राज्य के मीट विक्रेताओं ने आरोप लगाया है कि लाइसेंस होने के बावजूद पुलिस दुकानों पर छापे मार रही है और उन्हें जबरन दुकान बंद करने को बोल रही है.


ऐसे में वैध-अवैध बूचड़खानों से जुड़े मामलों को जानने के लिए एक बार जरूर समझ लिजीए उनसे जुड़े ये नियम...

क्या है वैध, क्या अवैध मीट

देश के ज्यादातर हिस्सों की तरह उत्तरप्रदेश में भी गौ-हत्या गैरकानूनी है. हालांकि भैंस, वॉटर बफ्लो व अन्य मवेशियों की हत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. लेकिन संविधान की धारा 48 में प्रावधान किया गया है कि राज्य विशेष कर गायों, बछड़ों, अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्ल की सुरक्षा के लिए उनकी हत्या पर प्रतिबंध लगाने के लिए कदम उठाएगा. हालांकि ये पूरी तरह से राज्य के ऊपर है कि वे संविधान की इस धारा का पालन करता है या नहीं. स्थानीय रीति-रिवाजों और प्राथमिकताओं के अनुसार, देश के कई राज्यों ने गौ-हत्या से खुद को दूर रखा है, लेकिन यूपी में भैंस का मीट फिलहाल वैध है.

धार्मिक भावनाओं से ज्यादा पर्यावरण से तो नहीं जुडा है ये मुद्दा?

वास्तविक रूप से देखें तो बूचड़खाने बंद किए जाने का मुद्दा दरअसल धार्मिक भावनाओं से कहीं ज्यादा पर्यावरण से जुड़ा है.

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने बूचड़खानों को उद्योगों की 'रेड' कैटेगरी (सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग) में रखा है. उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2015 में एक सूची जारी की थी, जिसके मुताबिक 129 औद्योगिक इकाइयां जोकि सबसे ज्यादा प्रदूषण फैला रही है और जिनके पास एंटी-पोल्यूशन डिवाइस भी नहीं है, उनमें 44 इकाइयां बूचड़खाने हैं. इन सभी बातों पर गौर कर समझा जा सकता है कि इस मुद्दे का धार्मिक भावनाओं से कहीं ज्यादा पर्यावरण पर असर पड़ रहा है.

यूपी में वैध रूप से बूचड़खाना चलाने के लिए क्या है जरूरी

उत्तर प्रदेश में कितने अवैध बूचड़खाने हैं, आधिकारिक रूप से इसका कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. आईएएनएस की रिपोर्ट के मुताबिक इस उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक प्रदेश में करीब 150 बूचड़खाने और 50,000 से ज्यादा मीट की ऐसी दुकानें हैं, जिनके पास परमिशन नहीं है.

सीएम आदित्यनाथ के आदेश के बाद से राज्य में अभी तक करीब 20 अवैध बूचड़खानों और कई मीट शॉप्स को बंद किया जा चुका है.

बूचड़खाना खोलने के लिए आवेदक को सबसे पहले भूमि उपयोग की मंजूरी लेनी होती है. उत्तर प्रदेश डिपार्टमेंट ऑफ इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इंडस्ट्रीयल डेवलप्मेंट के मुताबिक, जिला प्राधिकरण और यूपीपीसीबी से एनओसी (नो ओबजेक्शन सर्टिफिकेट) प्राप्त करना अहम है. वहीं बूचड़खाना नियमों के अनुसार बना है या नहीं इसके लिए जिला प्राधिकरण और यूपीपीसीबी दोनों ही अलग-अलग निरीक्षण करते हैं.

एक बार यूपीपीसीबी से क्लियरेंस मिल जाने के बाद प्लांट के मालिक को एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलप्मेंट ऑथोरिटी (एपीईडीए) के पास जाना पड़ता है. आपको बता दें कि एपीईडीए सभी उत्पादों के निर्यात को नियंत्रित करता है. मीट के निर्यात को मंजूरी देने से पहले एपीईडीए भी अपनी प्रक्रिया का पूरा पालन करने के साथ-साथ निरीक्षण भी करता है और ये सारी प्रक्रिया एनओसी दिए जाने से पहले की जाती है.

बूचड़खाने को प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलटी टू एनिमल्स (स्लॉटर हाउस) रूल्स, 2011 के मुताबिक काम करना होता है. साथ ही बूचड़खाने का फूड सेफ्टी रेग्यूलेशन एक्ट 2011 के तहत एफएसएसएआई रजिस्टर्ड भी होना अनिवार्य है.

एनजीटी का हस्तक्षेप

मई 2015 में पर्यावरणीय प्रवक्ता की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आदेश दिया था कि कोई भी बूचड़खाना लोकल अथॉरिटीज, खासकर यूपीपीसीबी की परमिशन के बिना नहीं चलाया जा सकता.