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अपने आलोचकों की ईर्ष्या के बावजूद नेहरू जिंदा रहेंगे

विरोधी नेहरू की आलोचना करते हैं क्योंकि वे उनके जैसे हो नहीं सकते...

Sandipan Sharma

आज बाल दिवस है. जवाहरलाल नेहरू की जयंती है. एक ऐसा नेता की जन्मतिथि जो फिलहाल इतिहास में हाशिए पर पड़ा है. नेहरू के जन्मदिन और उनकी मौजूदा स्थिति पर बात करते हुए यह लेख पढ़िए जो सबसे पहले 28 मई 2016 को फ़र्स्टपोस्ट में प्रकाशित हुआ था...

जवाहर लाल नेहरू एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने अपने जीवन के 11 साल जेल में बिताये. महात्मा गांधी के बाद वह अपनी पीढ़ी के सबसे बड़े नेता थे. एक ऐसे लोकप्रिय जननेता जो अपनी अनोखी हिंदुस्तानी भाषण कला से बड़ी संख्या में भारतीयों को प्रभावित कर देते थे. वह अंतरराष्ट्रीय ख्याति के विद्वान थे. लेखक के रूप में वह भारतीय इतिहास की दुर्लभ बातें दुनिया के सामने लाए.


भारत की कई पीढ़ी ने साल-दर-साल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इस नायक को बड़ी संख्या में वोट किया. इससे वे देश के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे.

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उनके निधन पर द गार्जियन अखबार ने लिखा, 'स्थानीय समयानुसार दोपहर के दो बजे (मई 27, 1964) तक इस देश के 46 करोड़ लोग एक व्यक्ति के सपनों पर जिंदा थे. अब उनके भीतर का अंतर्विराध दु:स्वप्न बनता जा रहा था. वह यह सवाल खुद से पूछ रहे थे कि आखिर नेहरू की मौत के बाद क्या होगा. इस दौरान लोगों के भीतर भय ही सबसे प्रबल भावना थी. नेहरू के मौत के भय से बाहर आना लोगों के लिए कठिन था.’

हमारा नेता चला गया है लेकिन उनके अनुयायी अभी जिंदा हैं : वाजपेयी 

संसद में युवा अटल बिहारी वाजपेयी नेहरू को याद करते हुए उन्हें विश्वनेता बताया था. वाजेपयी ने कहा था, 'हमारा नेता चला गया है लेकिन उनके अनुयायी अभी जिंदा हैं. सूर्य अस्त हो गया है पर तारों की रोशनी में हमें राह तलाशनी होगी. यह समय चुनौतीपूर्ण है पर हमें एक बड़े लक्ष्य के लिए खुद को समर्पित करना होगा.'

जवाहर लाल नेहरू ने आधुनिक भारत की बहुत सारी संस्थाओं की नींव रखी. उन्होंने उस समय लोकतंत्र की मजबूती के लिए काम किया जब पूरी दुनिया में तानाशाही का बोलबाला था.

नेहरू ने भारत को उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी राष्ट्र के रूप में पहचान दिलाई. देश में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के साथ ही उन्होंने कई नए शहरों की स्थापना की. इसके चलते दुनिया में देश को नई पहचान मिली.

तीन दशक से ज्यादा समय तक नेहरू भारत के गौरव रहे. वह हमारे समधर्मी संस्कृति, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत,आदर्शवाद, बुद्धिमत्ता और राजनीतिज्ञता के प्रतीक थे.

अब हम करीब दो दशक तक निर्वाचित रहे प्रधानमंत्री को गलत साबित करना चाह रहे हैं. हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी उन्हें खलनायक के रूप में याद रखे. वास्तव में क्या हमें उनके बारे में बात नहीं करनी चाहिए. क्या यह पागलपन नहीं है?

नेहरू के नाम पर राजनीति

इंदिरा गांधी के साथ जवाहर लाल नेहरू
(Getty Images)

कुछ महीने पहले मध्य प्रदेश सरकार ने फेसबुक पोस्ट में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की प्रशंसा करने पर बड़वानी जिले के डीएम अजय गंगवार को तबादला कर दिया.

हो सकता है राज्य के मुख्यमंत्री ने नेहरू को वाजपेयी द्वारा दी गई श्रद्धांजलि नहीं पढ़ी हो. लेकिन मैं अप्रैल 2014 की उस सुबह की याद दिलाना चाहता हूं जब उनकी उपस्थिति में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने एक बड़ी भीड़ सामने कहा कि भारत के लोकतंत्र को इसकी मजबूती के लिए नेहरू का ऋृणी होना चाहिए. क्या उस समय शिवराज सिंह चौहान को गुस्सा आया था?

अपने पूरे जीवनकाल में नेहरू की हत्या करने की चार बार कोशिश की गई पर वे जिंदा बच गए. लेकिन यह साफ है कि जो प्रयास अब किया जा रहा है वह उनके जीवन, प्रतिष्ठा और विरासत को समाप्त करने का है. इतिहास की किताबों से उनका नाम हटाया जा रहा है.

उनके ऐतिहासिक भाषण को पाठ्यक्रम से निकाल दिया गया है. भारत के इस नायक की छवि को खराब करने के लिए नकली फोटो का सहारा लिया जा रहा है. तथ्यों को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है. साथ ही इतिहास से भी छेड़छाड़ किया जा रहा है. उनके विरोधी अपनी कल्पना शक्ति से एक नए नेहरू की छवि का निर्माण कर रहे हैं जिससे लोग उनसे घृणा करें.

नेहरू की छवि खराब करने की वजह 

नेहरू की छवि खराब करने के पीछे के कारण को आसानी से बताया जा सकता है. वैचारिक विरोधियों के लिए नेहरू भारत के विचार के प्रतीक हैं. ऐसा देश जो धर्मनिरपेक्ष, उदार और समधर्मी देश है. इसकी जगह पर वह भारत को संकीर्ण, सांप्रदायिक और रूढ़िवादी देश बनाना चाह रहे हैं.

नेहरू के उपर हमला वास्तव में पूर्व प्रधानमंत्री की उस विरासत पर हमला करने की कोशिश है जो भारतीय मानस की जड़ों में गहरे से बैठ गई है. इसका दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक है.

अच्छाई से घृणा करना मानव स्वभाव की जड़ों में निहित है. खासकर ऐसे व्यक्ति के लिए जिसके गुणों और योग्यताओं की कमी हम अपने व्यक्तित्व में महसूस करते हैं. अवचेतना के स्तर पर नेहरू के बहुत सारे आलोचक उनसे जलन महसूस करते हैं. इस कारण से वह उनका तिरस्कार करते हैं क्योंकि उनके व्यक्तित्व में उन गुणों की कमी है.

नेहरू भी हुए हैं असफल

हालांकि यह तर्क नहीं है कि नेहरू कभी असफल नहीं हुए. 1962 में चीनी हमले से निपटने की उनकी नीति, कश्मीर मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने का निर्णय (नैतिक रूप से सही, कूटनीतिक तौर पर गलत) और समाजवाद पर उनके जोर ने दीर्घकालिक समस्याओं को जन्म दिया. लेकिन इन सारे मसलों पर सही संदर्भों और उचित मंशा के साथ सार्वजनिक रूप से बहस और तर्क-वितर्क किया जाना चाहिए.

लंबे समय तक नेहरू को भारत के इतिहास से हटाए जाने का दांव उल्टा भी पड़ जाएगा. इसलिए भारत के स्वतंत्रता पूर्व और इसके बाद के इतिहास को उनसे जोड़ा जाना चाहिए. नेहरू से अलग भारत संभव नहीं होगा.

वास्तव में उन्हें बदनाम किए जाने की हालिया कोशिशों से लोगों में उन्हें पढ़ने को लेकर रुचि बढ़ेगी. यह प्रयास इसलिए किया जाएगा क्योंकि लोग प्रोपेगैंडा से अलग सच को जानने की कोशिश करेंगे.

अंत में उनके आलोचक नेहरू और उनकी विचारधारा में लोगों की रुचि बढ़ाना बंद कर देंगे. नेहरू जीवित रहेंगे, वे अपने आलोचकों और उनकी उनकी ईर्ष्या के बावजूद जिंदा रहेंगे.