view all

जानें कौन हैं 'हैंडपंप वाली चाची' जो मुफ्त में ठीक करती हैं ट्यूबवेल

15 महिलाओं का यह समूह मध्यप्रदेश के छतरपुर से है. इनकी ख्याति ऐसी है कि कभी-कभी 50 किलोमीटर दूर के गांव वाले भी हैंडपंप मरम्मत के लिए बुलाते हैं

FP Staff

मध्य प्रदेश और यूपी के बॉर्डर पर स्थित बुंदेलखंड की पहचान पानी के लिए मचे हाहाकार और दूर-दूर के इलाके में फैला सूखा है. बुंदलेखंड का नाम आते ही लोगों के जहन में स्वच्छ पेयजल के लिए जूझते लोगों का खयाल आता है लेकिन कम लोग ही होंगे जिन्हें उस शख्सियत के बारे में जानकारी होगी जो लोगों का गला तर करने के लिए कई वर्षों से 'हैंडपंप मरम्मत' का अभियान चलाए हुए है. जी हां, इस अभियान की सूत्रधार 15 महिलाएं हैं जिन्हें लोग प्यार से 'हैंडपंप वाली चाची' बोलते हैं.

क्या है मुहीम और यह ग्रुप कैसे काम करता है इसके बारे में एक सदस्य कहती हैं, 'मध्य प्रदेश के छतरपुर की 15 आदिवासी महिलाओं का यह समूह है जो पिछले 8-9 साल से ट्यूबवेल मरम्मती का काम करता है. इस ग्रुप की महिलाओं ने भोपाल, राजस्थान और दिल्ली में भी हैंडपंप ठीक किए हैं. हमलोग पैदल ही गांव-गांव पहुंचते हैं. हमें प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं मिली है.'


सूखाग्रस्त बुंदेलखंड में जल संकट बहुत बड़ी समस्या है. यहां के प्राकृतिक जल स्रोत जैसे कि तालाब, पोखर, झील आदि सूख चुके हैं, तो वहीं ट्यूबवेल और हैंडपंप भी जवाब देने लगे हैं. गर्मी में मुश्किल और बढ़ जाती है. ऐसे में बूंद-बूंद पानी को तरसते लोगों के लिए आदिवासी महिलाओं का यह समूह किसी मसीहा से कम नहीं. ग्रुप की सदस्य चूंकि ट्यूबवेल ठीक करती हैं इसलिए गांव वाले इन्हें ‘ट्यूबवेल चाची’ भी कहते हैं.

15 महिलाओं का यह समूह छतरपुर के घुवारा तहसील के झिरियाझोर गांव से है. इनकी ख्याति ऐसी है कि कभी-कभी 50 किलोमीटर दूर के गांव वाले भी मरम्मत के लिए बुलाते हैं. पुकार सुनते ही रिंच आदि औजारों से लैस यह समूह फौरन उस गांव की ओर कूच कर जाता है और मुफ्त में काम कर वापस हो जाता है. गांव वाले बताते हैं कि जब तक पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग (पीएचई) के कर्मचारी अपनी औपचारिकता पूरी करते हैं, उससे पहले 'हैंडपंप वाली चाची' वहां पहुंच कर अपना काम कर चुकी होती हैं.