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गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव: कायम है कैप्टन का करिश्मा

हाशिए पर खड़ी कांग्रेस को 2017 में ही पंजाब से तीसरी कामयाबी मिली है, क्या पता पंजाब से ही कांग्रेस के भाग्य बदलने की इबारत लिखी जाए

Sandeep Mamgain

गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि देश में चाहे किसी की भी लहर क्यों ना हो लेकिन पंजाब अपनी ही रवानगी से चलता है. और ये रवानगी फिलहाल कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी का काम कर रही है.

2017 की शुरुआत में विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत, साथ में अमृतसर लोकसभा उपचुनाव में कामयाबी और अब गुरदासपुर लोकसभा सीट को बीजेपी से छीनकर कांग्रेस ने उसके भविष्य पर सवाल उठाने वालों को सोचने पर मजबूर कर दिया है. कांग्रेस को एक ही सूबे से एक के बाद एक जीत ऐसे वक्त पर मिली हैं जब पार्टी देश के दूसरे हिस्सों में लगातार पिछड़ती चली गई.


शुरुआत से ही इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल समझा जा रहा था क्योंकि एक तरफ 10 साल बाद सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस का 6 महीने का कार्यकाल था तो दूसरी ओर केंद्र की मोदी सरकार के 3 साल का कामकाज और सवाल यह कि जनता आखिर किसके साथ है?

रिकॉर्ड तोड़ जीत से बीजेपी के गढ़ में सेंधमारी

तो नतीजों के साथ अब गुरदासपुर की जनता ने बता दिया है कि उन्हें बीजेपी और अकाली दल की जोड़ी की बजाय फिलहाल कांग्रेस पर ही ज्यादा एतबार है. आंकड़े बताने के लिए काफी हैं कि कांग्रेस उम्मीदवार सुनील जाखड़ की यह जीत कितनी ऐतिहासिक है क्योंकि जाखड़ ने ना सिर्फ गुरदासपुर की यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली है बल्कि 37 साल पुराना रिकॉर्ड भी धराशायी कर दिया.

‘बाहरी’ के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे सुनील जाखड़ ने 1,93,219 वोटों से बीजेपी और अकाली दल के साझा उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया को मात दी है. इस सीट पर यह एक नया रिकॉर्ड है. इससे पहले साल 1980 में कांग्रेस (आई) की टिकट पर सुखबंस कौर भिंडर ने 1.51 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी.

जनता ने दिखाया कांग्रेस पर भरोसा

जाखड़ की जीत इस मायने में भी खास है क्योंकि यह माझा के उस इलाके में मिली है, जहां पर भारतीय जनता पार्टी को हमेशा से मजबूत समझा जाता रहा है. लेकिन 6 महीने पहले विधानसभा चुनाव के साथ बदली हवाओं का असर है कि उपचुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी के इस गढ़ में बड़ी सेंधमारी को अंजाम दे दिया.

गुरदासपुर लोकसभा के तहत आने वाली सभी 9 विधानसभा सीटों पर सुनील जाखड़ ही आगे रहे और पहले रुझान से लेकर आखिरी नतीजे तक एक बार भी ऐसा मौका नहीं आया जब कोई और उम्मीदवार जाखड़ से आगे या आस-पास भी आ पाया हो.

यही वजह है कि कांग्रेस का हर नेता इसे भविष्य की नई शुरुआत बता रहा है. अगर इसी साल के विधानसभा चुनाव के नतीजों साथ उपचुनाव के नतीजों की तुलना करें तो मालूम पड़ेगा कि कैप्टन की हवा 6 महीने बाद भी ना सिर्फ बरकरार है बल्कि और तेज हो चली है. गुरदासपुर लोकसभा की जिन 9 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने बढ़त हासिल की है, उनमें से 2 बटाला और सुजानपुर, शिरोमणी अकाली दल और बीजेपी के पास हैं.

मतलब साफ है कि विरोधी चाहे कुछ भी कहते रहें लेकिन मार्च 2017 में पंजाब की जनता ने कांग्रेस पर जो भरोसा जाहिर किया था वो अभी भी बरकरार है.

गुरदासपुर लोकसभा का विधानसभावार विश्लेषण करें तो पता चलता है कि कांग्रेस ने 6 महीने के भीतर गुरदासपुर, दीनानगर, पठानकोट, सुजानपुर, बटाला, भोआ, डेरा बाबा नानक, फतेहगढ़ चूड़ियां, कादियां जैसे बीजेपी-अकाली दल के इलाकों में अपनी मौजूदगी को और मजबूत किया है.

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गुरदासपुर लोकसभा की इन सभी 9 विधानसभा सीटों पर कुल 95,283 वोटों की बढ़त मिली थी. जबकि इस बार यही बढ़त दोगुना से भी ज्यादा बढ़कर 1,93,219 हो चुकी है.

बीजेपी के लिए वेक-अप कॉल है यह हार

कांग्रेस की इस ऐतिहासिक जीत ने 6 महीने सत्ता से बेदखल हुई भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणी अकाली दल की जोड़ी की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं. कर्जमाफी, किसानों, खदानों और सियासी रंजिश को सियासी मुद्दा बनाकर लगातार कैप्टन सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे इन दोनों ही दलों को अब अपनी रणनीति के बारे में एक बार फिर से सोचना होगा.

नतीजों से साफ जाहिर होता है कि इन मुद्दों का कोई खास असर बीजेपी-अकाली दल के हक में नहीं हुआ. उल्टे सुच्चा सिंह लंगाह और खुद उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया के विवादों ने बड़ा नुकसान पहुंचा दिया.

स्वर्ण सलारिया की इस ढंग से हार पंजाब में बीजेपी के लिए एक वेक-अप कॉल भी हो सकती है. अब शायद वक्त आ चुका है जब पार्टी को अकाली दल के साथ गठबंधन के भविष्य को लेकर कोई फैसला करना होगा. सलारिया को हराने वाले सुनील जाखड़ भी मानते हैं कि सलारिया की हार में अकाली दल एक बड़ी वजह बना.

अगर जनता का यही मिजाज रहा तो 2019 की राह 2014 के मुकाबले और भी मुश्किल भरी हो सकती है. मोदी लहर के बावजूद भी 2014 में बीजेपी का रंग पंजाब पर नहीं चढ़ पाया था. यही हाल इस साल के विधानसभा चुनाव में भी साफ दिख चुका है. यानी जब देश में बीजेपी का ग्राफ चढ़ रहा है पंजाब में इसके उलटा ही हो रहा है.

बीजेपी और अकाली दल मिलकर स्वर्ण सलारिया के लिए सिर्फ 35.66 फीसदी वोट जुटा पाए. जो इस हार से ज्यादा चिंता की बात है. वोट बैंक खिसकना बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है और वक्त रहते अगर इसे नहीं सुना गया तो 2019 पर असर पड़ने से भी शायद ही कोई रोक पाए.

आप की जमानत जब्त

बीजेपी के वोटबैंक में कांग्रेस की इस सेंधमारी के कई सबक हैं. जिनका कई तरह से विश्षेण किया जा सकता है. लेकिन इन सबके बीच एक आम आदमी पार्टी भी है जिसका हश्र सबसे बुरा हुआ. 6 महीने पहले तक सर्वे जिस पार्टी को सूबे की सत्ता मिलने तक की भविष्यवाणी कर रहे थे आज उसी के उम्मीदवार की गुरदासपुर में जमानत जब्त हो गई.

सुरेश खजूरिया को यहां सिर्फ 2.7 फीसदी वोट मिले हैं. सुरेश खजूरिया को लोकल नेता बताकर आम आदमी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया था. लेकिन खराब चुनाव प्रबंधन ने उन्हें काफी पहले ही मुकाबले से बाहर कर दिया. नतीजे बताने के लिए काफी हैं कि ‘आप’ का असर पहले जैसा नहीं रहा.

नतीजों को कैप्टन सरकार के 6 महीने का कामकाज का रेफरेंडम बताने वाले विरोधी शायद अब कुछ शांत होंगे. लेकिन नतीजों ने जो संदेश दिया है वो एक साफ है कि जनता भी जानती है कि 6 महीने में किसी सरकार को परखना शायद मुमकिन नहीं और कैप्टन सरकार को अभी और वक्त दिया जाना चाहिए. अब अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह इसी भरोसे को 2019 तक बरकरार रख पाए तो क्या पता पंजाब से ही कांग्रेस के भाग्य बदलने की इबारत लिखी जाए.