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गुजरात राज्यसभा चुनाव: क्या जीत कर भी हार गए अमित शाह?

सफलता की ऊंचाई पर पहुंचकर इस वक्त पार्टी का परचम लहराने वाले अमित शाह को अहमद पटेल का जीतना लंबे वक्त तक सालता रहेगा

Amitesh

देर रात तक चले हाईवोल्टेज ड्रामे के बाद आखिरकार इसका पटाक्षेप भी हुआ. जब इस सियासी ड्रामे से पर्दा हटा तो बीजेपी को झटका लग चुका था. शह और मात के इस खेल में इस बार शाह को मात मिल गई थी.

जी हां, हम बात कर रहे हैं बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की. अमित शाह खुद पहली बार राज्यसभा चुनाव जीतने में सफल हो गए हैं. लेकिन, कांग्रेस के रणनीतिकार अहमद पटेल की जीत ने उनकी जीत की खुशी को फिलहाल काफूर कर दिया है.


गुजरात में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव हो रहे थे, जिसके लिए चार उम्मीदवार मैदान में थे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का राज्यसभा पहुंचना तय था. लेकिन, असली लड़ाई तीसरी सीट के लिए थी. जिस पर कांग्रेस की तरफ से अहमद पटेल एक बार फिर मैदान में थे तो दूसरी तरफ, बीजेपी ने इस सीट पर कांग्रेस के बागी शंकर सिंह वाघेला के समधी बलवंत सिंह राजपूत को मैदान में उतार दिया था.

धीरे-धीरे गुजरात की यह लड़ाई कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल बनाम बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की लड़ाई में तब्दील हो गई थी. इस लड़ाई के लिए दोनों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया था. अपने-अपने खेमे को मजबूत करने की पूरी कोशिश की गई.

राज्यसभा चुनाव के लिए हो रहे इस शह और मात के खेल में एक गलती पूरे गेम को खराब करने के लिए काफी थी. इतने करीबी और रोमांचक मुकाबले में गलती की किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं थी. लेकन, यहीं अमित शाह के मोहरों से गलती हो गई.

शंकर सिंह वाघेला के खेमे के दो कांग्रेसी विधायक राघव पटेल और भोला भाई गोहिल ने बीजेपी उम्मीदवार बलवंत सिंह राजपूत को वोट तो दिया लेकिन, वोट देते वक्त उसे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को दिखा दिया. यही गलती अमित शाह की तरफ से अहमद पटेल के लिए बनाए गए चक्रव्यूह को चकनाचूर कर गई.

कांग्रेस की शिकायत और उस पर देर रात तक चले सियासी ड्रामे के बाद इन दोनों विधायकों के वोट को रद्द कर दिया गया, नतीजा तमाम उठापटक के बावजूद अहमद पटेल विजयी हो गए.

असंभव को भी संभव करने की कोशिश

फिलहाल अमित शाह खुद राज्यसभा के सदस्य चुन लिए गए हैं. अब वो बतौर सांसद सदन के भीतर अपनी बात को और बुलंदी से रख पाएंगे. बतौर अध्यक्ष अमित शाह के राज्यसभा के भीतर मौजूद रहने से संसद के भीतर पार्टी की रणनीति को भी नई धार मिलेगी और पार्टी की संसदीय राजनीति में भी उनका दखल पहले से कहीं ज्यादा बढ़ेगा.

हालांकि, बतौर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पहले भी बीजेपी संसदीय दल की बैठक में अपनी बात करते रहे हैं. सांसदों को कई मौकों पर नसीहत तो कई मौकों पर फटकार भी लगा चुके हैं. सदन के भीतर सांसदों की गैर-मौजूदगी को लेकर भी सरकार को कई मौकों पर फजीहत झेलनी पड़ी है. अब अमित शाह की संसद में मौजूदगी के बाद पार्टी के दूसरे सासंदों की गैर-मौजूदगी मुश्किल हो जाएगी.

हालांकि इसे महज संयोग ही कहेंगे की जिस दिन अमित शाह के पार्टी अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल का तीन साल पूरा हो रहा है, ठीक उसी दिन उनके राज्यसभा सदस्य चुने जाने की खबर आती है.

तीन साल पूरा होने के मौके पर अमित शाह अगर अहमद पटेल को मात देने में सफल होते तो शायद उनके लिए सबसे बड़ा तोहफा होता. लेकिन, ऐसा हो ना सका.

फिर भी अमित शाह के पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल को बेहद सफल माना जा रहा है. लोकसभा चुनाव में जीत के बाद जब राजनाथ सिंह मोदी सरकार में गृह-मंत्री बन गए थे तो उस वक्त अमित शाह ने बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष पार्टी की कमान संभाली.

उसके बाद अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी एक-के-बाद एक राज्यों में कामयाबी के झंडे गाड़ती चली गई. आज यूपी, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात समेत 13 राज्यों में बीजेपी की सरकार है वहीं बिहार, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर समेत 5 राज्यों में अपने सहयोगियों के साथ मिलकर बीजेपी सरकार चला रही है.

शाह के नेतृत्व में बीजेपी ने नॉर्थ इस्ट में असम से लेकर मणिपुर में भगवा फहरा दिया है. यह अमित शाह की कुशल रणनीति का ही परिणाम है जिसकी बदौलत बीजेपी आज देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है.

ना रुकने ना थकने की रणनीति

लेकिन, शाह की ना रुकने और ना थकने वाली रणनीति ही उनके सियासी कद को और बड़ा कर रही है. अमित शाह बतौर पार्टी अध्यक्ष लगातार सभी राज्यों का दौरा करने में लगे हैं. लगातार जीत से उत्साहित ना होकर अभी से ही 2019 के महासमर की तैयारी में लग गए हैं. कोशिश है उन राज्यों में भगवा फहराने की जहां बीजेपी अबतक कमजोर रही है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की नजर दक्षिण भारत के चार राज्यों के अलावा पूर्वी राज्यों पर है. नजर ओडीशा और बंगाल पर भी है जहां बीजेपी अबतक कुछ खास नहीं कर पाई है.

अमित शाह ने इसके लिए अभी से ही सोशल इंजीनियरिंग से लेकर बूथ मैनेजमेंट पर ध्यान देना शुरू कर दिया है. शाह का यह दोनों फॉर्मूला यूपी से लेकर असम तक हर जगह सफल रहा है. अब इसे पूरे देश में लागू करने की है.

आरएसएस की तरह पूर्णकालिक बनाने की अनोखी पहल

देश के हर पोलिंग बूथ पर अमित शाह की कोशिश ऐसे यूथ को पार्टी से जोड़ने की है जो पार्टी के लिए समर्पित हो. बूथ स्तर पर इन कार्यकर्ताओं को जोडे रखने में समाज के हर तबके का ख्याल रखा जा रहा है. जिससे हर तबके का यूथ पार्टी के साथ समर्पित रहे. इसका असर पार्टी के पक्ष में पोलिंग प्रतिशत बढ़ने से दिख भी रहा है.

इसके अलावा पहली बार संघ की तर्ज पर अमित शाह ने पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं की लंबी-चौड़ी फौज तैयार कर दी है, जो अपना घर-बार छोड़ पार्टी के लिए कुछ वक्त तक काम करे. इस वक्त बीजेपी के लगभग 4 लाख कार्यकर्ता 15 दिन, 6 महीने और एक साल के लिए अलग-अलग जगहों पर जाकर पार्टी के लिए काम करने के लिए तत्पर हैं.

बीजेपी को अबतक ब्राम्हण-बनियों की पार्टी ही कहा जाता था. लेकिन, अमित शाह ने इसे सवर्णों की पार्टी की छवि से बाहर निकालकर सर्वजन की पार्टी के तौर पर सामने लाया है. आज बीजेपी के साथ पिछड़े, अति-पिछड़े और दलित तबके के जुड़ने से पार्टी का जनाधार काफी बढ़ गया है.

पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पिछड़ों को साथ लाने और उन्हें पार्टी सो जोड़ने के लिए पहली बार ओबीसी मोर्चा  का गठन किया. जबकि, दलित समुदाय के लोगों को साधने की नीति के तहत शाह लगातार काम कर रहे हैं. यूपी से लेकर ओडीशा तक, हरियाणा से लेकर बनारस तक हर जगह शाह अपने दौरे के वक्त दलित के घर ही खाना खाते दिख जाते हैं.

बाबा साहब भीम राव अंबेडकर की विरासत पर दावा तो बीजेपी पहले से ही कर रही है. अब एक दलित समुदाय के व्यक्ति को राष्ट्रपति पद पर पहुंचाकर अमित शाह बीजेपी के दलित प्रेम की दुहाई देते नहीं थक रहे.

अमित शाह भले ही अपने गृह-राज्य में राज्यसभा चुनाव की क्लीन स्वीप की रणनीति में मात खा गए हों, लेकिन, उनकी असली परीक्षा अब शुरू होगी. उनके गृह-राज्य गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाला है. जिसमें वो कांग्रेस से मिली हार का हिसाब बराबर कर सकते हैं.

लेकिन, सफलता की उंचाई पर पहुंचकर इस वक्त पार्टी का परचम लहराने वाले अमित शाह को अहमद पटेल का जीतना लंबे वक्त तक सालता रहेगा.