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गुजरात राज्यसभा चुनाव: अहमद पटेल से बदला लेने के लिए अमित शाह को करना होगा इंतजार

अहमद पटेल और अमित शाह की दुश्मनी पुरानी है और आगे भी यह चलती रहेगी

Ravishankar Singh

अमित शाह और अहमद पटेल की दुश्मनी पुरानी है. लेकिन गुजरात राज्यसभा चुनाव की गहमागहमी देखकर यह समझना मुश्किल नहीं है कि अहमद पटेल को हराने में बीजेपी एड़ी चोटी का जोर क्यों लगा रही थी.

यह पहली बार नहीं है कि अमित शाह को अहमद पटेल से मुंह की खानी पड़ी. जुलाई 2010 को सोहराबुद्दीन केस में अमित शाह को जेल भेजा गया था. यह भी माना जा रहा है कि पिछले कुछ साल से गुजरात में पटेल समुदाय का जो आंदोलन चल रहा है, वह अहमद पटेल के इशारे पर किया जा रहा है. इसी का बदला लेने के लिए बीजेपी ने एक प्लान तैयार किया था, जो आखिरकार कामयाब नहीं हुआ.


जीत कर भी क्यों खुश नहीं है बीजेपी

गुजरात राज्यसभा चुनाव में दो सीट जीतकर बीजेपी भले ही कांग्रेस से आगे निकल गई है लेकिन खुशी का जश्न कांग्रेस के खेमे में ही है. राज्यसभा के इन नतीजों ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल की रणनीति बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति पर भारी पड़ गई है.

अहमद पटेल लगातार पांचवीं बार राज्यसभा पहुंचे हैं. गुजरात के इस राज्यसभा चुनाव में कुल 176 वोट थे. सीडी के आधार पर निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस के दो बागी विधायकों के वोट रद्द कर दिए. इसके बाद कुल 174 वोट की गिनती हुई.

बाल-बाल जीते अहमद पटेल

अहमद पटेल ने 44 वोट हासिल किया है. उनके खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार बलवंत राजपूत खड़े थे. दिलचस्प है कि बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी के एक बागी विधायक बलवंत सिंह राजपूत को ही अहमद पटेल के सामने खड़ा किया था.

देश की राजनीति में अहमद पटेल का नाम जितना जाना-पहचाना है, बलवंत सिंह राजपूत उतने ही गुमनाम. लेकिन, इन सबके पीछे दिमाग चल रहा था बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का.

अहमद पटेल 1993 से ही राज्यसभा के लगातार सदस्य हैं. अहमद पटेल को पर्दे के पीछे की राजनीति करने में माहिर माना जाता है. अहमद पटेल कभी भी सामने आकर राजनीति नहीं करते.

बीजेपी के चाणक्य अमित शाह का स्टाइल भी कमोबेश अहमद पटेल जैसा ही है. अमित शाह ने एक गुमनाम चेहरा बलवंत सिंह राजपूत को पार्टी का राज्यसभा प्रत्याशी बना दिया था.

गुजरात के तीन राज्यसभा सीटों में से दो पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की जीत लगभग तय थी. अनिश्चितता सिर्फ अहमद पटेल को लेकर थी.

मुश्किल थी अहमद पटेल की राह

बीजेपी ने तीसरे उम्मीदवार के तौर पर बलवंत सिंह राजपूत को मैदान में उतार कर अहमद पटेल की राह कठिन बना दी. राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले बलवंत सिंह राजपूत ने अचानक ही कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया था.

बलवंत सिंह राजपूत भले ही अपने ही पूर्व नेता अहमद पटेल को कांटे की टक्कर दी हो. लेकिन, बलवंत सिंह राजपूत कांग्रेस और खासकर अहमद पटेल के काफी करीबी रहे हैं.

गुजरात की राजनीति को करीब से जानने वाले भी कहते हैं कि बलवंत सिंह की राजनीतिक करियर को बनाने में अहमद पटेल का बड़ा योगदान है. बलवंत सिंह राजपूत कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला के करीबी रिश्तेदार भी हैं.

कौन हैं ये बलवंत सिंह?

बलवंत सिंह राजपूत भले ही चुनाव हार गए हों पर अहमद पटेल के खिलाफ चुनाव लड़ने से उनकी छवि मजबूत हुई है. गुजरात की राजनीति को करीब से जानने वाले कुछ लोगों का मानना है कि बलवंत सिंह राजपूत का पूरा राजनीतिक जीवन ही अहमद पटेल के भरोसे रहा है.

बलवंत सिंह पहले एक गांव में मामूली ग्रॉसरी की दुकान चलाते थे. अहमद पटेल के संपर्क में आने के बाद ही बलवंत सिंह तेल के बिजनेस में हाथ अजमाने लगे. तेल के व्यवसाय के साथ-साथ बलवंत सिंह राजपूत ने धीरे-धीरे राजनीति में भी पैठ बना लिया. राज्यसभा चुनाव के हलफनामे में बलवंत सिंह राजपूत ने अपनी पूरी संपत्ति लगभग 323 करोड़ रुपए की बताई है.

बलवंत सिंह राजपूत के गुजरात में कई शिक्षण संस्थान हैं. इन संस्थानों में बलवंत सिंह राजपूत और अहमद पटेल की एक साथ कई तस्वीरें लगी हुई हैं. ये भी कहा जा रहा है कि अगर बीजेपी में राजपूत शामिल नहीं होते तो अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव लड़ने के दौरान बलवंत सिंह राजपूत ही उनके कैंपेन का काम देखने वाले थे.

आमने-सामने चाणक्य

अहमद पटेल पिछले लंबे समय से गुजरात से लगातार राज्यसभा सांसद बनते आ रहे हैं. हर बार वह आसानी से चुनाव जीतते आ रहे थे. इस बार के चुनाव में अहमद पटेल को काफी मशक्कत करनी पड़ी.

इस बार बीजेपी ने कांग्रेस को उसी के मोहरे से मात देने की योजना बनाई थी. अमित शाह इसमें काफी हद तक कामयाब भी हुए लेकिन, अखिर निर्वाचन आयोग ने कांग्रेस के दो वोट को रद्द कर अहमद पटेल की जीत आसान बना दी.

हम आपको बता दें कि गुजरात के राज्यसभा चुनाव में एक प्रत्याशी को जीतने के लिए कुल मतों में से एक चौथाई और एक अतिरिक्त मत हासिल करना था. यानी एक प्रत्याशी को 45 मत प्राप्त होने चाहिए.

गुजरात विधानसभा में 121 विधायकों वाली बीजेपी के दो उम्मीदवार अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत तय थी. लेकिन, बीजेपी के पास आंकड़ों के हिसाब से तीसरे प्रत्याशी बलवंत सिंह राजपूत के लिए केवल 31 मत थे.

दूसरी तरफ कांग्रेस के पास सिर्फ 44 विधायकों का समर्थन था. कांग्रेस की नजर एनसीपी के दो विधायकों और जेडीयू और गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) के एक-एक विधायकों के समर्थन पर टिकी थी.

पहली बार राज्यसभा चुनाव में हाई वोल्टेज ड्रामा

मंगलवार को वोटिंग के बाद भी दोनों पार्टियों में जुबानी जंग जारी थी. दोनों पार्टियां चुनाव आयोग के दिल्ली दफ्तर से निकलने का नाम ही नहीं ले रही थीं. एक पार्टी का डेलिगेशन जैसे ही दिल्ली चुनाव आयोग आता दूसरी पार्टी भी तुरंत चुनाव आयोग के चौखट पर दस्तक दे देती थी.

कांग्रेस पार्टी का डेलिगेशन कांग्रेस के दो बागी विधायकों का वोट निरस्त करने की मांग को लेकर चुनाव आयोग पर लगातार दबाव बना रही थी. वहीं बीजेपी भी कांग्रेस के इस दांव को समझ कर चुनाव आयोग पर दबाव में न आने की बात कर रही थी.

बीजेपी के प्रतिनिधिमंडल में जहां अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल के ने मोर्चा थाम रखा था तो वहीं कांग्रेस पार्टी के तरफ से पी चिदंबरम, आरपीएन सिंह, गुलाम नबी आजाद और रणदीप सिंह सुरजेवाला ने मोर्चा थाम रखा था.