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गुजरात राज्यसभा चुनाव: इस वजह से अहमद पटेल को सता रहा है हार का डर

अहमद पटेल का राज्यसभा चुनाव हार जाना न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी के लिए बेहद शर्मनाक होगा

Sanjay Singh

8 अगस्त का राज्यसभा के लिए चुनाव संसद के ऊपरी सदन के लिए अब का सबसे तगड़ा मुकाबला माना जा सकता है.

1952 में राज्यसभा के गठन के बाद से अब तक ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब ऐसा हुआ हो कि किसी राज्य में किसी पार्टी के विधायकों को राज्य के बाहर ले जाया गया हो. उन्हें लग्जरी रिजॉर्ट में 'बंधक' बनाकर रखा गया हो. इन विधायकों को पार्टी हाईकमान की कड़ी निगरानी में बाहरी दुनिया से काटकर रखा गया हो. इसके बाद इन्हें चुनाव के ठीक एक दिन पहले वापस राज्य में लाया गया हो, और फिर एक शानदार रिजॉर्ट में लाकर डाल दिया गया हो जहां उनके पार्टी के बॉस उन पर कड़ी नजर रखे हों.


कांग्रेस लीडरशिप ने इस तरह का अपवाद तैयार किया है

इस पूरी कवायद का केवल एक मकसद है- विरोधी पार्टी को चुनाव पूरा होने तक इनसे किसी भी तरह से संपर्क किए जाने से रोकना. सोनिया गांधी और राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस लीडरशिप ने जुलाई-अगस्त 2017 में इस तरह का अपवाद तैयार किया है.

राजनीतिक दुनिया में ऐसे कई मौके आए हैं, जहां किसी मौजूदा चीफ मिनिस्टर या पार्टी ने विरोधी पक्ष द्वारा तोड़े जाने से बचाने के लिए अपने एमएलए को राज्य में या बाहर कहीं सेफ हाउस में छिपा दिया हो और फिर इन्हें सीधे विश्वासमत वाले दिन ही लाया गया हो. लेकिन ऐसा किसी राज्यसभा चुनाव के पहले शायद ही कभी देखा गया हो.

यह बात गौर किए जाने लायक है कि असेंबली या संसद में विश्वासमत में वोटिंग ओपन होती है और नेता सदन आसानी से यह पता लगा सकता है कि पार्टी व्हिप के मुताबिक किसने किसे वोट दिया है. इसके उलट राज्यसभा चुनाव में गोपनीय मतदान का प्रावधान होता है. यह पता नहीं लगाया जा सकता है कि किसने क्रॉस वोटिंग की या जान बूझकर अवैध वोट डाला है.

गुजरे एक हफ्ते से देश इस शर्मनाक नाटक को देख रहा है. कहानी की शुरुआत गुजरात से होती है. जहां कांग्रेस के छह एमएलए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में भरोसा न रहने के चलते इस्तीफा दे देते हैं. इसके बाद पार्टी के 44 विधायकों को अहमदाबाद से उड़ाकर बेंगलुरु ले जाया जाता है जहां उन्हें एक रिजॉर्ट में बंद रखा जाता है और भांति-भांति की लग्जरी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं.

हकीकत में ये विधायक जब अपने-अपने गृह क्षेत्र में वापस लौटेंगे तो वहां के लोग इन्हें धिक्कारेंगे कि जब राज्य बाढ़ की मार झेल रहा था और लोग इससे खुद को बचाने में लगे हुए थे, उस वक्त लोगों की मदद करने की बजाय ये विधायक राज्य से सैंकड़ों मील दूर बेंगलुरु के रिजॉर्ट में राजसी जिंदगी का लुत्फ उठा रहे थे. इन्हें गुजरात वापस भी इस शर्त के साथ लाया गया है कि वे तब तक अपने घर नहीं जा सकते जब तक कि वे पार्टी के बड़े नेता अहमद पटेल को वोट नहीं दे देते.

अहमद पटेल कांग्रेस में दूसरे सबसे ताकतवर शख्स थे

सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अहमद पटेल के लिए ये हालात कहीं ज्यादा बुरे और बेइज्जती वाले हैं. हाल तक अहमद पटेल के शब्द कांग्रेस में पत्थर की लकीर होते थे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव के तौर पर वह उनकी ओर से उनके लिए बोलते थे. राहुल गांधी के पार्टी की कमान अपने हाथ में लेने से पहले तक पटेल कांग्रेस में दूसरे सबसे ताकतवर शख्स थे. उनका राज्यसभा सीट का चुनाव हार जाना न सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी के लिए बेहद शर्मनाक होगा. कांग्रेस नेतृत्व के लिए दिक्कत यह है कि इस हालात के लिए वह खुद जिम्मेदार है.

तीन चीजों पर विचार कीजिए- पहला, गुजरात असेंबली में कांग्रेस के 57 विधायक थे, बीजेपी के 121 विधायक थे और राज्यसभा की तीन सीटें खाली हैं. हर कैंडिडेट को जीतने के लिए 47 वोटों की जरूरत है. एमएलए इसमें वोट देते हैं. कागजों पर कांग्रेस के पास 10 सरप्लस वोट हैं जिससे पटेल आराम से जीत सकते थे. अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत के बाद भी बीजेपी के पास 27 अतिरिक्त वोट बचते हैं.

दूसरा, वरिष्ठ कांग्रेस नेता और राज्य में विपक्ष के नेता शंकरसिंह वाघेला को पार्टी से निकाले जाने के बाद छह कांग्रेस एमएलए पार्टी छोड़ चुके हैं. बीजेपी ने विद्रोहियों में से एक और वाघेला के एक नजदीकी सपोर्टर बलवंत सिंह राजपूत को राज्यसभा चुनाव के लिए चौथे कैंडिडेट के तौर पर उतारा है. असेंबली में कांग्रेस की ताकत 57 से घटकर 51 रह गई है, लेकिन इससे असेंबली की संख्या भी घट गई है, और जीतने के लिए राज्यसभा प्रत्याशियों को 47 की जगह पर 45 वोटों की जरूरत रह गई है.

कांग्रेस के पास अभी भी 6 अतिरिक्त वोट बच रहे हैं और पार्टी उम्मीद कर रही है कि वह दो एनसीपी एमएलए के वोट हासिल कर सकती है. इस गणित के हिसाब से अहमद पटेल को आराम से बैठना चाहिए. लेकिन, वह इतने आश्वस्त लग नहीं रहे हैं. पटेल और उनके समर्थक अहमदाबाद, दिल्ली और बेंगलुरु में दिन-रात पसीना बहा रहे हैं, आंकड़ों पर काम कर रहे हैं और जीत को सुनिश्चित करने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं.

आश्वस्त नहीं है कि कांग्रेस के विधायक उन्हें ही वोट देंगे

तीसरा, पटेल और पूरी कांग्रेस में 8 अगस्त के चुनाव को लेकर चिंता बनी हुई है. यह गोपनीय मतदान होता है और विधायकों को साथ जोड़े रखने की तमाम कोशिशों के बावजूद पटेल इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है कि कांग्रेस के विधायक उन्हें ही वोट देंगे. राष्ट्रपति चुनाव में 11 कांग्रेस विधायकों ने नेतृत्व को धता बताते हुए एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को वोट दिया था. अगर इतनी ही संख्या में कांग्रेस के एमएलए राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग कर देते हैं तो पटेल चुनाव हार जाएंगे. उपराष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई वाले विपक्षी उम्मीदवार गोपाल कृष्ण गांधी को उम्मीद से 30 वोट कम मिले.

नरेंद्र मोदी-अमित शाह की अगुवाई में बीजेपी अपने विरोधियों के मुकाबले कहीं मजबूत और आगे है. जून 2016 के द्विवर्षीय चुनाव में बीजेपी ने चार अतिरिक्त उम्मीदवार झारखंड, हरियाणा, यूपी और राजस्थान में उतारे थे. चार अतिरिक्त उम्मीदवार में से तीन जीतने में सफल रहे क्योंकि पार्टी विरोधी पार्टियों के एमएलए से क्रॉस वोटिंग कराने में कामयाब रही. कांग्रेस के लिए यह एक बड़ा झटका था.

दिल्ली और अहमदाबाद के बीजेपी सूत्र इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि कांग्रेस विधायकों का एक वर्ग बीजेपी कैंडिडेट राजपूत के पक्ष में वोट करेगा और इससे पटेल हार जाएंगे. एक बीजेपी लीडर ने कहा, ‘हमें पूरा भरोसा है कि कई कांग्रेस एमएलए नहीं चाहते कि अहमद पटेल जीतें. वे उनसे और राहुल गांधी दोनों से काफी ऊबे हुए हैं. राज्यसभा चुनाव एक ऐसा मौका है जहां से वो साफ स्वर में यह संदेश दे सकते हैं. कांग्रेस के सबसे कद्दावर लीडर को यह समझना होगा कि उन्हें उनके गृह राज्य में कितना नापसंद किया जाता है. यह चुनाव उनके लिए मजे की चीज नहीं होगा.’

विधायकों की मौज-मस्ती राज्य के मतदाताओं को नागवार गुजरी है

कांग्रेस विधायकों के बेंगलुरु और आणंद के फाइव स्टार रिजॉर्ट में मजे करने की तस्वीरें ऐसे वक्त पर सामने आ रही हैं जबकि गुजरात के लोग बाढ़ की भयंकर मुश्किलों से गुजर रहे हैं. यह चीज राज्य के मतदाताओं को नागवार गुजर रही है. कर्नाटक के मंत्री डी के शिवकुमार के यहां इनकम टैक्स छापों में कैश के ढेर मिले हैं. शिवकुमार ही बेंगलुरु में गुजरात के विधायकों की मेजबानी कर रहे थे.

अहमद पटेल की हार, अगर वह मंगलवार को हो रहे गुजरात राज्यसभा चुनाव में हार जाते हैं तो यह एक आसान जीत या हार नहीं होगी. अगर वह हार जाते हैं तो आने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव में यह कांग्रेस के लिए अंत की शुरुआत होगी. गुजरात में कई लोगों के लिए इसका मतलब होगा कि नवंबर-दिसंबर में होने वाले चुनाव ज्यादा कड़े नहीं रहेंगे. केवल देखने वाली बात यह होगी कि बीजेपी कितने बड़े मार्जिन से कांग्रेस को असेंबली चुनाव में हराती है.