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गुजरात चुनाव 2017: सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति नहीं, परिवार की परंपरा निभा रहे हैं राहुल

राहुल गांधी ने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वे नरम हिंदुत्व की राजनीति कर रहे हैं लेकिन अगर वो कर रहे हैं तो फिर गुजरात में उनकी दाल नहीं गलने वाली

Darshan Desai

अगर लड़ाई आपने उस मैदान पर ठानी है जहां दुश्मन सबसे मजबूत है तो फिर आप चाहे जितनी ईमानदारी से लड़ें लेकिन गैर-बराबर जान पड़ती इस लड़ाई में आपने ऐड़ी-चोटी का जोर नहीं लगाया तो आपकी एक ना चलेगी. कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी के साथ भी शनिवार को कुछ ऐसी ही मुश्किल थी. वे मशहूर अक्षरधाम मंदिर पहुंचे और फिर दोपहर के बाद का समय उत्तरी गुजरात के प्रसिद्ध अंबाजी मंदिर में भजन-कीर्तन के बीच बिताया.

नरेंद्र मोदी के गुजरात में कांग्रेस का कोई नेता अपने दौरे की शुरुआत प्रसिद्ध मंदिरों से करे तो उसपर तोहमत लगाने के लिए झट से नरम हिन्दुत्व की राजनीति करने का जुमला उछाल दिया जाता है. हालांकि, राहुल गांधी ने स्थानीय लोगों से जो मेल-मुलाकात की इसमें ऐसा कोई संकेत नहीं दिया लेकिन अगर वे नरम हिन्दुत्व की ही राजनीति कर रहे हैं तो फिर गुजरात में उनकी यह दाल नहीं गलने वाली.


इसके पीछे सीधी सी बात ये है कि हिन्दुत्व को ढूंढ़ने वाले इस मामले में अपने आजमाए नुस्खे यानी नरेंद्र मोदी को तरजीह देंगे, उससे कम पर उन्हें संतोष नहीं होने वाला.

राजीव और सोनिया के नक्शे-कदम पर चल रहे हैं राहुल

राजनीति-विज्ञानी प्रोफेसर घनश्याम याद दिलाते हैं कि 'राहुल अगर मंदिरों मे जा रहे हैं तो इसमें कुछ भी नया नहीं है. उनकी दादी इंदिरा गांधी ने ऐसा किया था और बड़े सलीके से किया था, माला पहनी थी और सभी चरणों के स्पर्श किए थे. राहुल के मां-बाप राजीव और सोनिया ने भी यह किया और अब वे ऐसा कर रहे हैं.'

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दूसरे राजनीति विज्ञानी अच्युत याग्निक कहते हैं, 'सोनिया गांधी ने भी उत्तरी गुजरात में अपने चुनाव-प्रचार की शुरुआत अंबाजी मंदिर की यात्रा से की. दरअसल, राहुल स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा की अपनी पारिवारिक परंपरा का पालन कर रहे हैं.'

विश्लेषक कहते हैं कि यह नरम हिन्दुत्व नहीं बल्कि स्थानीय लोगों से हेल-मेल करने की तरकीब है क्योंकि राहुल की कोशिश अपने को आम नागरिक की छवि में ढालने की है. वे सड़क किनारे के ढाबे पर खाना खाते हैं, सरकारी गेस्टहाऊस में ठहरते हैं, एयरइंडिया और प्राइवेट एयरलाइन्स के तयशुदा वक्त पर उड़ान भरने वाले यात्री-विमानों से सफर करते हैं और उनके कंधे के झोले में उनका लैपटॉप भी होता है.

लेकिन पहली बार हुआ है ये

कांग्रेस के साधारण कार्यकर्ताओं और ओहदेदारों के लिए एक नई बात यह भी हुई है कि गांधी परिवार का कोई व्यक्ति किसी एक इलाके में लगातार तीन दिन तक रुक रहा है और वहां के देव-मंदिरों में जाकर आस-पास के जन-जीवन से परिचित होने की कोशिश कर रहा है. गुजरात के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और ओहदेदारों के लिए यह खासतौर से मानीखेज है.

राहुल गांधी ने देवमंदिरों की अपनी यात्रा की शुरुआत ऐतिहासिक द्वारिका नगरी के प्रसिद्ध द्वारिकाधीश मंदिर से की और यात्रा का समापन चोटिला के मशहूर चामुण्डा माता मंदिर से किया. चामुण्डा माता मंदिर में राहुल 47 मिनट में 900 सीढ़ियां चढ़ गए. पहाड़ी पर जमा स्थानीय लोग आपस में कयास लगा रहे थे कि राहुल इतनी सीढ़ियां चढ़ भी पाएंगे या नहीं. गुजरात के हर इलाके में तीन दिन की यात्रा के पहले दिन सौराष्ट्र में यह नजारा देखने को मिला. राहुल गांधी ने गुजरात का अपना चौथा दौरा शनिवार को शुरू किया था.

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अपनी यात्रा के अगले चरण में वे राजकोट के नजदीक कगवड के खोडलधाम मंदिर भी देव-दर्शन को गए. इस मंदिर के देव की पाटीदारों के बीच विशेष प्रतिष्ठा है. पाटीदार जुझारु नेता हार्दिक पटेल की अगुवाई में आंदोलन चला रहे हैं.

मंदिरों को तो कोई फायदा नहीं, लेकिन ये संदेश जरूर है

राहुल की यात्रा में सड़क किनारे के ढाबे पर रुकना, वहां चाय-नाश्ता करना और मौजूद लोगों से बातचीत करने को जो स्थान दिया गया है कुछ वैसा ही स्थान यात्रा के क्रम में आने वाले मंदिरों के देव-दर्शन को भी दिया गया है. प्रोफेसर घनश्याम शाह और अच्युत याग्निक दोनों का कहना है कि मंदिरों की यात्रा से राहुल को कोई चुनावी फायदा नहीं होगा लेकिन इस यात्रा के जरिए लोगों को यह संदेश दिया जा सकता है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष को स्थानीय लोगों की रीत-नीत की जानकारी है.

प्रोफेसर घनश्याम शाह का कहना है कि 'इससे दरअसल कोई फायदा नहीं होता, उल्टे आगे चलकर ऐसी बातों का घाटा होता है. चेहरे और देह की भावमुद्रा से जान पड़ता है कि ऐसी पहल के पीछे संकल्प बहुत कम है. आखिर यह दिखाना क्यों जरुरी है कि आप स्थानीय मूल्यों और रीत-नीत को जानते-पहचानते हैं?'

याग्निक का कहना है कि, 'अंबाजी मंदिर इंदिरा गांधी को बहुत पसंद था. वे अपनी यात्रा हमेशा यहीं से शुरु करती थीं. बाद में राजीव गांधी और फिर सोनिया गांधी ने भी ऐसा ही किया. अब राहुल गांधी भी वही कर रहे हैं तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है.'

याग्निक मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'मैं मजाक में अक्सर कहता हूं कि राहुल गांधी तकनीकी तौर पर गुजराती हैं क्योंकि उनके दादा गुजराती थे.'