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गुजरात चुनाव नतीजे 2017: मतदाताओं का GST पर मुहर, सरकार अब ग्रामीण संकट और बेरोजगारी पर ध्यान दे

गुजरात के मतदाता यह देखकर कि बीजेपी जीएसटी को लेकर अपनी गलती मान रही है और जनमत का ख्याल कर रही है, उसकी तरफ हो गए

S Murlidharan

बीजेपी की उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों मे शानदार जीत बाकी बातों के साथ इस बात का भी संकेत थी कि 8 दिसंबर, 2016 को 500 और 1000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण जो फैसला मोदी सरकार ने किया है, उस पर जनता ने मंजूरी की मुहर लगा दी है. उत्तर प्रदेश देश के गरीब राज्यों में एक है. मोदी के विरोधियों और कांग्रेस पार्टी ने नोटबंदी के फैसले को अपने निशाने पर लिया. तर्क दिया गया कि नोटबंदी के कारण गरीब जनता, खासकर किसानों और छोटे-मंझोले दर्जे के उद्योगों को लगभग दो महीने तक नकदी की किल्लत सहनी पड़ी. इस कारण उनके कामकाज को बहुत गहरी चोट पहुंची है.

मुख्य जोर इस बात पर था कि भारत की अर्थव्यवस्था का अनियोजित (अन-आर्गनाइज्ड) क्षेत्र नकदी के सहारे ही चलता है और नकदी की किल्लत होने के कारण गरीब जनता कारोबार के दायरे से बाहर हो गई. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह मोदी सरकार पर अपने बेधड़क हमले में सबसे आगे थे और उन्होंने नोटबंदी को ‘बिना सोच-समझ का फैसला’ करार दिया.


लेकिन यूपी की जनता ने नोटबंदी के फैसले पर अपने जनादेश से मंजूरी की मुहर लगायी, नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली का यह तर्क मजबूत हुआ कि (नोटबंदी का) फैसला, कड़वा भले हो लेकिन इसके जरिए काला धन दबाकर बैठे लोगों पर निशाना साधा गया है. दरअसल नोटबंदी के चक्कर में गरीबों को पिसना जरूर पड़ा लेकिन उन्होंने इस परेशानी को खुशी-खुशी स्वीकार किया, यूपी विधानसभा के चुनाव के नतीजों ने यह बात भी जताई.

मोदी सरकार एक और फैसला विरोधियों के हमले का निशाना बना. यह इसी साल 1 जुलाई से वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने का फैसला था. दरअसल कांग्रेस पार्टी और मनमोहन सिंह बिना थके यह तर्क देते रहे कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार में गिरावट आएगी क्योंकि नोटबंदी के तुरंत बाद जीएसटी पर अमल कर के मोदी सरकार ने दोहरी गलती की है.

वक्त रहते गलती सुधार ली जाती है तो बड़ा नुकसान होने से बच जाता है

गुजरात विधानसभा के चुनाव में सूरत और अहमदाबाद जैसे बड़े व्यापार केंद्रों को नजर में रखते हुए विपक्षी पार्टी ने जीएसटी के मुद्दे को खूब उछाला. बेशक जीएसटी के कारण व्यापार-व्यवसाय को शुरूआती तौर पर परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन सूरत और अहमदाबाद जैसे बड़े व्यापारिक केंद्रों पर बीजेपी को मिली शानदार जीत ने साबित कर दिया है कि जनता को यह फैसला भी मंजूर है.

यह बात तय है कि पेश आ रही व्यावहारिक दिक्कतों को मोदी सरकार ने अपनी नजर में रखा और इन दिक्कतों को दूर करने के लिए सुधार के उपाय किए. वक्त रहते गलती सुधार ली जाती है तो बड़ा नुकसान होने से बच जाता है. मोदी सरकार ने ठीक यही किया और गुजरात के मतदाता यह देखकर कि बीजेपी अपनी गलती मान रही है और जनमत का ख्याल कर रही है, उसकी तरफ हो गए.

व्यापार-व्यवसाय में माहिर गुजरात के तेज-तर्रार लोगों ने जीएसटी की दो बातों में अपना फायदा देखा- एक तो लोगों ने यह समझा कि जीएसटी के कारण अब उन्हें पहले की तरह टैक्स के ऊपर टैक्स अदा नहीं करना पड़ेगा. दूसरे शब्दों में कहें तो पहले की व्यवस्था में व्यापार के कई चरणों में कई तरह के टैक्स लगते थे और उसमें इस बात की पहचान नहीं रहती थी कि वस्तु या सेवा पर तो पहले ही टैक्स अदा किया जा चुका है.

दूसरे, गुजरात के मतदाताओं ने यह भी भांप लिया कि जीएसटी के कारण टैक्स की चोरी मुमकिन नहीं क्योंकि नई व्यवस्था कुछ इस तरह से बनाई गई है कि अपनी निगरानी आप ही हो जाती है, खरीद-बिक्री की सिलसिलेवार कड़ी के भीतर हर अगला व्यावसायी अपने पिछले वाले से कहता है कि- भाई, जरा टैक्स अदायगी की पर्ची दिखा दीजिए.

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बेनामी संपत्ति को भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिशाप कहा जाता है और यह टैक्स वसूली की राह में बहुत बड़ी बाधा है. मोदी सरकार अब पूरे जोर-शोर से बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई करेगी. अचल संपदा को आधार नंबर से जोड़ने की मुहिम को भी लोगों का समर्थन मिलने की संभावना है.

बेशक इन सबका फायदा उन्हीं मामलों में होना है जहां कोई संपदा किसी व्यक्ति की मिल्कियत में है. इसके बाद अलग से और कारगर तरीके से मोदी सरकार को शेल कंपनियों की मिल्कियत वाली अवैध जान पड़ती संपदा पर लगाम कसनी होगी.

गुजरात चुनाव में मिली जीत का जश्न मनाते कार्यकर्ता और समर्थक

बहुत संभव है 2019 में बीजेपी का फिर से सरकार में आना सुनिश्चित कर देंगे 

हो सकता है, मोदी सरकार 2014 के चुनावों में किए अपने सभी वादों पर खरा ना उतरे. लेकिन इस सरकार का पहला कार्यकाल भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन, काले धन पर कार्रवाई और अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा से जोड़ने जैसे बड़े योगदान के लिए याद किया जाएगा. यह सारे कदम ही बहुत संभव है 2019 में बीजेपी का फिर से सरकार में आना सुनिश्चित कर देंगे.

बहरहाल, बीजेपी को अभी साबित करना है कि वह सिर्फ काले धन पर कार्रवाई करने पर ही नहीं तुली है. उसे ग्रामीण संकट और बेरोजगारी की स्थिति को भी देखना है. उम्मीद की जानी चाहिए कि अभी से लेकर 2019 के चुनावों तक सरकार इन दो बड़ी समस्याओं के समाधान के लिए ठोस कदम उठाएगी.