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गुजरात चुनाव 2017: हार्दिक पटेल का कोटा 'डील' एक भयानक मजाक है

सुप्रीम कोर्ट के कम से कम दो ऐसे फैसले आए हैं, जो ये कहते हैं कि असाधारण हालात में 50 फीसदी आरक्षण के नियम से छूट दी जा सकती है, क्या गुजरात को भी इसका फायदा मिलेगा

Srinivasa Prasad

(संपादक की कलम से-गुजरात चुनाव में आरक्षण पर जोर-शोर से चर्चा हो रही है. कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी आरक्षण बड़ा सियासी मुद्दा बन गया है. इस मसले पर हमारी स्पेशल सीरीज की ये पहली किस्त है. )

अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण की वकालत करते हुए मंडल आयोग ने लल्लू और मोहन की मिसाल दी थी. यह रिपोर्ट 1980 में सरकार को सौंपी गई थी.  मंडल आयोग ने ये काल्पनिक किस्सा बयां करते हुए कहा था, 'लल्लू एक गरीब ग्रामीण लड़का है. उसका परिवार पढ़ा-लिखा नहीं है. वो पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखता है. लल्लू गांव के स्कूल में पढ़ता है. वहां पढ़ाई का स्तर बहुत खराब है. दूसरी तरफ, मोहन एक पढ़े-लिखे परिवार का लड़का है. वो शहर के पब्लिक स्कूल में पढ़ता है. मोहन को घर से काफ़ी मदद मिलती है. वो टीवी देख सकता है. उसके पास रेडियो है. वो पत्रिकाएं भी मंगा सकता है, ताकि वो अपनी जानकारी बढ़ा सके. हालांकि दोनों बच्चे बराबर के अक्लमंद हैं. मगर लल्लू, मोहन से मुकाबला नहीं कर सकता. क्योंकि माहौल उसके लिए हमवार नहीं है. इसलिए लल्लू जैसे लड़कों को आरक्षण मिलना चाहिए'.


आरक्षण की वकालत करने वाले मंडल न तो पहले शख्स थे और न आखिरी. वो उन तमाम लोगों में से एक थे जो काबिलियत को ही नौकरी और पढ़ाई का इकलौता पैमाना मानने वालों के मुखालिफ थे.

हार्दिक पटेल पर क्या यकीन करना चाहिए?

गुजरात में पाटीदारों को आरक्षण के तेज-तर्रार योद्धा हार्दिक पटेल चाहते हैं कि हम उनकी बात पर यकीन करें. हार्दिक का दावा है कि उनके पाटीदार समुदाय में लल्लू जैसे लड़कों की भरमार है, जो बुरे हालात की वजह से मोहन जैसे लड़कों से मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं.

हार्दिक पटेल को इस बात से जरा भी फर्क नहीं पड़ता कि अगर पाटीदारों को आरक्षण दिया गया तो ये सुप्रीम कोर्ट की 50 फीसदी आरक्षण की पाबंदी को खिलाफ होगा. कांग्रेस को भी इस बात से फर्क नहीं पड़ता. तभी तो पार्टी ने पाटीदार अनामत आंदोलन समिति को आरक्षण देने का वादा किया है, अगर पार्टी गुजरात में चुनाव जीत कर सरकार बनाती है तो.

कांग्रेस, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी को उनके गृह राज्य गुजरात में हराने को बेकरार है. तभी तो पार्टी ने हार्दिक पटेल को भरोसा दिया है कि वो पाटीदारों को इस तरीके से आरक्षण देगी जिससे सुप्रीम कोर्ट उसे खारिज न कर सके.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट और तमाम हाई कोर्ट के पुराने फैसलों को याद करें तो साफ लगता है कि कांग्रेस, हार्दिक पटेल और पाटीदारों को बेवकूफ बना रही है.

इधर कांग्रेस और पाटीदार एक-दूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं. उधर, आरक्षण पर उनके रुख की वजह से दूसरे राज्यों में भी ये मामला गर्मा रहा है.

कौन है आरक्षण का नया खिलाड़ी?

आरक्षण की पागलपन भरी रेस में ताजा खिलाड़ी के तौर पर आंध्र प्रदेश का नाम लिया जा सकता है. यहां मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने शनिवार को कापू समुदाय को पांच फीसद आरक्षण देने का वादा किया. इस फैसले से राज्य में कुल आरक्षण 55 फीसद हो गया है, जो सुप्रीम कोर्ट के तय किए 50 प्रतिशत से ज्यादा है.

पिछले कुछ हफ्तों में कर्नाटक और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों को भी आरक्षण का बुखार चढ़ गया है. महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों की निगाह भी कांग्रेस और हार्दिक पटेल की आरक्षण की राजनीति पर है.

इन सभी राज्यों में सरकारें आरक्षण का दायरा सुप्रीम कोर्ट की तय की हुई सीमा से आगे ले जाना चाहती हैं. वो ये भी चाहती हैं कि उनके फैसलों को अदालत में चुनौती न दी जा सके. ये सरकारें सोचती हैं कि अगर गुजरात ऐसा करके बच सकता है, तो उनके लिए भी आरक्षण का दायरा बढ़ाने का सुनहरा मौका है. साफ है कि गुजरात में जो भी हो रहा है उससे दूसरे राज्यों को भी आरक्षण का दायरा बढ़ाने के सुनहरे ख्वाब आने लगे हैं.

नायडू, चंद्रशेखर राव और सिद्धारमैया के दांव

आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2019 में होने हैं. यहां पर कापू समुदाय को आरक्षण देने वाला विधेयक सरकार जल्द ही राज्यपाल के पास भेजेगी. राज्यपाल इसे केंद्र को भेजेंगे. ये तय मानिए कि बीजेपी के करीबी नायडू केंद्र सरकार पर दबाव बनाएंगे कि वो इस विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाले, ताकि आरक्षण के इस फैसले को अदालतों में चुनौती न दी जा सके.

नौवीं अनुसूची के तहत आने वाले कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं हो सकती. यानी अदालतें उनके बारे में सुनवाई नहीं कर सकती. कर्नाटक में चुनाव पांच महीने बाद ही होने हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी ये कह रहे हैं कि वो आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 70 प्रतिशत कर देंगे. ताकि ओबीसी, एससी-एसटी की और जातियों को इसका फायदा मिल सके. वो बड़े जोर-शोर से ये दावा कर रहे हैं.

वहीं तेलंगाना में मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव आरक्षण का दायरा 50 फीसद से बढ़ाकर 60 फीसद करना चाहते हैं. ताकि वो एससी-एसटी और पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण दे सकें. सिद्धारमैया और चंद्रशेखर राव भी इसके लिए संविधान की नौवीं अनुसूची का सुरक्षा कवच इस्तेमाल करने की सोच रहे होंगे.

क्या है महाराष्ट्र का हाल?

महाराष्ट्र ने 2014 में मराठों को 16 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया था. वहीं, हरियाणा में सरकार ने जाटों और पांच दूसरी जातियों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का वादा 2016 में किया था. हालांकि इन राज्यों के हाई कोर्ट ने सरकार के कदम पर रोक लगा दी.

अब मामला दोनों ही राज्यों के पिछड़ा आयोग के पास है. राजस्थान में गुर्जरों को आरक्षण देने की कोशिश तीन बार नाकाम हो चुकी है. अभी पिछले ही महीने सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि आरक्षण 50 फीसद से ज्यादा नहीं हो सकता.

अगर इन तीनों राज्यों की चलती तो महाराष्ट्र में कुल आरक्षण 73 फीसद पहुंच जाता. वहीं हरियाणा में ये 67 फीसद और राजस्थान में 54 प्रतिशत हो जाता.

गुजरात की आरक्षण डील में गलत क्या है?

कांग्रेस के लिए कानून के जानकार कपिल सिब्बल ने हार्दिक पटेल से आरक्षण पर बात की थी. हार्दिक पटेल ने दावा किया था कि उन्हें संविधान की धारा 31बी और 46 के तहत आरक्षण का वादा किया गया है.

धारा 31बी के तहत आरक्षण का मतलब है कि पाटीदारों को आरक्षण का विधेयक पारित करके इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में रखा जाएगा. यानी इसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी. हालांकि इसे लागू करने में कुछ मुश्किलें आ सकती हैं

ये तभी हो सकता है जब-

-कांग्रेस गुजरात में विधानसभा चुनाव जीते और पाटीदारों को आरक्षण का विधेयक विधानसभा से पास करा ले.

-फिर केंद्र की मोदी सरकार इस विधेयक को संविधान की नौवीं अनुसूची में रखने को राजी हो जाए.

-आखिर में सुप्रीम कोर्ट ये मानने को तैयार हो जाए कि संविधान की नौवीं अनुसूची में रखे गए कानून, न्यायिक समीक्षा से परे हैं.

ये तीनों ही चीजें फिलहाल दूर की कौड़ी मालूम होती हैं.

संविधान की धारा 46, संविधान में दर्ज राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का हिस्सा है. ये रास्ता भी कानूनी अड़चनों से भरा है. अदालतों के पुराने फैसले, इस धारा के बेजा इस्तेमाल पर नाखुशी जता चुके हैं.

अब पाटीदारों को आरक्षण देने के लिए जो भी रास्ता अपनाया जाए, इतना तो तय है कि ये सुप्रीम कोर्ट के तय किए गए 50 फीसद आरक्षण के नियम से परे ही होगा. बहुत से राज्य इस सीमा को तोड़ने पर आमादा हैं. वो ये कोशिश नहीं करते हैं कि मौजूदा आरक्षण की दर के तहत ही दूसरे समुदायों को आरक्षण का फायदा दिया जाए.

बाकी समुदायों को इसके लिए राजी करने पर वो चुप्पी साध लेते हैं. सुप्रीम कोर्ट के कम से कम दो ऐसे फैसले आए हैं, जो ये कहते हैं कि असाधारण हालात में 50 फीसदी आरक्षण के नियम से छूट दी जा सकती है. ताकि बेहद पिछड़े समुदायों को आरक्षण का फायदा मिल सके.

लेकिन गुजरात के पाटीदारों से लेकर वो सभी जातियां, जिन्हें फिलहाल आरक्षण देने की बात हो रही है, वो ऐसी असाधारण हालात की शिकार नहीं लगतीं.

साफ है कि आज सिर्फ ये कहने से आरक्षण नहीं मिलेगा कि फलां समुदाय में लल्लू जैसे लड़के भरे पड़े हैं. कांग्रेस को ये पता है. लेकिन हार्दिक ऐसे जाहिर कर रहे हैं जैसे उन्हें ये बात नहीं मालूम.