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गुजरात चुनाव नतीजे 2017: राहुल गांधी चुनाव नहीं जीत पाए, लेकिन जीता है दिल?

राहुल के सामने अब बड़ी चुनौती यूपीए के साथी दलों को मनाना है

Syed Mojiz Imam

कांग्रेस के नए अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए विधानसभा चुनाव के नतीजे अच्छे रहे. गुजरात में कांग्रेस की संतुष्टि इस बात को लेकर है कि पहली बार पिछले 6 चुनावों के बाद इस बार कांग्रेस जमीन पर लड़ती दिखाई दे रही थी. कांग्रेस के नए राजनैतिक समीकरण के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किला बचाने के लिए धुआंधार रैलिया करनी पड़ी. परिणाम बीजेपी के पक्ष में रहा. लेकिन राहुल गांधी के लिए कई मायनों में ये नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले है.

बीजेपी के मुकाबले गुजरात में कांग्रेस का संगठन कमज़ोर था.राहुल गांधी ने पार्टी के नेताओ की मदद से कांग्रेस को मुकाबले मे लाकर खड़ा कर दिया. कांग्रेस के सांसद और पूर्व यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष राजीव सातव ने कहा, ‘अगर राहुल गांधी पहले से प्रचार की शुरूआत ना करते तो नतीजे और खराब हो सकते थे. ‘राहुल गांधी इस चुनाव में फाइटर की तरह उभर कर निकले और नतीजो की परवाह किए बिना काम करते रहे.


कांग्रेस के विरोधी शिवसेना ने भी उनकी तारीफ की है. कांग्रेस पार्टी के बाहर कार्यकर्ताओ का जोश बता रहा था कि राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के बाद पहले इम्तेहान में पास हो गए. हालांकि राहुल गांधी को डिस्टिन्क्शन की उम्मीद थी लेकिन वो नहीं मिला. कांग्रेस के कई नेताओ ने कहा कि राहुल गांधी ने गुजरातियों का दिल जीता है.राहुल गांधी ने भी गुजरात के जनता का धन्यवाद किया.राहुल ने कहा कि वो गुजरात और हिमाचल की जनता को धन्यवाद करते हैं जिन्होनें उनके प्रति इतना प्यार दिखाया है.

कार्यकर्ताओ में क्यों है उत्साह?

हिमाचल प्रदेश की हार से कांग्रेस की सत्ता सिर्फ पांच राज्यों मे सिमट गयी है. लेकिन कार्यकर्ता निराश नहीं हैं उनमें राहुल गांधी को लेकर जो संशय था वो कुछ हद तक दूर हुआ है. क्योंकि गुजरात चुनाव में कांग्रेस के नये अध्यक्ष के लिए एक लिट्मस टेस्ट भी था. कार्यकर्ता कह रहे कि जिस तरह राहुल गांधी ने लीड किया उससे ये आशा जगी है कि 2019 में कांग्रेस की स्थिति राहुल गांधी की अगुवाई में बेहतर हो सकती है.

राहुल गांधी गुजरात के चुनाव मे नए तेवर के साथ दिखे जो पार्टी के लिए फायदेमंद रहा. हालांकि राहुल गांधी मैदान नहीं मार पाए लेकिन पार्टी के भीतर अपने आप को साबित करने में कामयाब रहे. आसिफ जाह कांग्रेस के युवा नेता हैं जो गुजरात चुनाव में पार्टी का कामकाज कर रहे थे. आसिफ का कहना है कि  राहुल गांधी जनता से कनेक्ट  करने मे कामयाब रहे. राहुल गांधी ने बेरोजगारी जीएसटी नोटबंदी और किसानों का मुद्दा उठाया जिससे जनता का भरोसा राहुल गांधी पर बढ़ा है.

पार्टी के एक और नेता जो अहमदाबाद में कांग्रेस का काम कर रहे थे. परवेज़ आलम कहते है कि बतौर कांग्रेसी ऐसा लगता था कि प्रधानमंत्री का मुकाबला करना कांग्रेस के वश में नहीं है लेकिन इन नतीजो से ऐसा लगा है कि राहुल गांधी की अगुवाई में बीजेपी को मात दिया जा सकता है.

बतौर अध्यक्ष मज़बूत हुए राहुल

कांग्रेस के भीतर और बाहर भी राहुल गांधी को लेकर कई सवाल खडे किए जा रहे थे.खासकर निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित होने पर शहज़ाद पूनावाला ने खुलेआम सवाल उठाए. राहुल गांधी की राजनीतिक समझ पर अक्सर लोग उंगली उठाते रहे है. गुजरात के नतीजो ने राहुल गांधी को इन सब के बीच मज़बूत किया है. अगर नतीजे एकतरफा  बीजेपी के पक्ष में जाता तो राहुल गांधी पर सवाल उठना लाज़िमी था. गुजरात मे प्रचार का दारमोदार राहुल पर ही था.चुनाव के दौरान भी सेंटर स्टेज पर राहुल गांधी ही थे. पार्टी के प्रदेश के नेता राहुल गांधी के साथ दिखे ज़रूर लेकिन लाइमलाइट में राहुल ही रहे. बीजेपी ने भी राहुल गांधी को ही टारगेट किया चाहे वो सोमनाथ का मसला हो या फिर आरक्षण को लेकर पाटीदार आमानत आंदोलन के मसौदे की बात रही हो.

राहुल की है मोदी के साथ रेस

गुजरात चुनाव कांग्रेस के लिए संजीवनी तो नहीं बन पाए. लेकिन पार्टी को निराशा से बाहर लाने मे मददगार ज़रूर हुए है. आगे राहुल गांधी की चुनौती आसान नहीं रहने वाली है. सामने नरेन्द्र मोदी अमित शाह की जोड़ी है जिसने विपरीत परिस्थिति में बीजेपी को गुजरात में जीत दिला दी है. दोनों ही नेता 24 घंटे राजनीति के बारे में सोचते है. सटीक फैसले लेते हैं चाहे वो यूपी के चुनाव रहे हों, महाराष्ट्र में शिवसेना से अलग होकर विधानसभा और नगर निगम चुनाव में जाने का फैसला हो  या फिर दिल्ली में नगर निगम चुनाव में सभी मौजूदा पार्षदों का टिकट काटने का फैसला हो. सभी फैसले चुनाव की कसौटी पर खरे साबित हुए हैं. राहुल गांधी को इनकी सूझबूझ और एनर्जी लेवल की बराबरी करनी पड़ेगी.

आगे राह आसान नहीं

2014 के आम चुनाव के बाद बीजेपी ने कई चुनाव जीता. बीजेपी के संगठन में भी कई बदलाव देखने को मिला. लेकिन कांग्रेस में अब तक मामूली फेरबदल ही हो पाया है. कांग्रेस के अध्यक्ष नें  कहा है कि कांग्रेस मे जल्दी ही बदलाव होगा और नए लोगों को पार्टी में काम करने का मौका मिलेगा. राहुल गांधी को 2018 की शुरूआत में ही फेरबदल करना पड़ेगा क्योंकि 2019 में जाने मे वक्त ज्यादा नहीं बचा है. इस बीच तीन बड़े राज्यों राजस्थान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव है. कांग्रेस के पास नेताओ का अभाव नहीं है. राजस्थान को छोड़ दें तो बाकी दोनों राज्यों मे बीजेपी की सत्ता को 15 साल हो जाएगें.

कांग्रेस में नया उत्साह बढ़ाने के लिए राहुल गांधी को इन तीन राज्यों में तो ज़ोर लगाना ही पड़ेगा. साथ साथ लोकसभा चुनाव की तैयारी भी करनी पड़ेगी. नया गठबंधन भी बनाने की ज़िम्मेदारी बहुत हद तक राहुल के कंधो पर रहेगी. हालाकिं इस मामले में सोनिया गांधी राहुल गांधी का मार्गदर्शन करती रहेंगी. राहुल गांधी को बीजेपी के चाणक्य का मुकाबला करने के लिए सीनियर नेताओं का सहयोग लेना पड़ सकता है.

एनसीपी के नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि “कांग्रेस अगर उनके साथ होती तो नतीजे और अच्छे होते.“ ज़ाहिरन ये प्रफुल्ल का तंज़ था. राहुल गांधी के लिए शरद पवार और लालू प्रसाद जैसे सहयोगी नेताओ को डील करना भी चैलेंज है. ये लोग ऐन मौके पर ऐसे फैसले ले सकते है जो कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं. लालू ने साफ कहा है कि ये अभी तय नहीं है कि 2019 में चुनाव राहुल की अगुवाई में लड़ा जाएगा. राहुल गांधी को इन नेताओ को साथ लेकर चलने का सबक भी यूपीए 1-2 के कांग्रेस के सीनियर नेताओ के साथ बैठकर समझना पड़ेगा.

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं )