गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इस बार काफी उत्साह से कूद रही है. अहमद पटेल की जीत ने कांग्रेस में संजीवनी बूटी का काम किया है. गुजरात से लेकर दिल्ली में उत्साह और जोश तो है लेकिन क्या ये काफी होगा. क्या गुजरात में लहराएगा कांग्रेस का परचम?
राज्यसभा चुनाव में खासे संघर्ष और उठापठक के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल की जीत ने गुजरात कांग्रेस में नई जान फूंक दी है. राज्यसभा नतीजों के बाद वहां पार्टी में खासी सक्रियता बढ़ गई है.
इस साल के अंत में होने वाले गुजरात के विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने रणनीति बनानी शुरु कर दी है. इसी रणनीति के तहत कांग्रेस 1 सितंबर को गुजरात में बड़ी रैली का आयोजन कर रही है. इस रैली में जहां कांग्रेस अपना जलवा दिखाएंगी वहीं विपक्षी पार्टियों को एकजुट कर विपक्षी एकता की ताकत भी दिखाएंगी. किसान सत्याग्रह के नाम से इस रैली मे ज्यादातर विपक्षी नेता जुटेंगे.
कांग्रेस का मानना है कि ये उनके लिए सबसे बेहतर समय है जब वो गुजरात में विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात दे सकते हैं. बीजेपी की पूरी कोशिशों के बाद भी अहमद पटेल की जीत से कांग्रेस को ऐसा लगने लगा है कि ये वहीं समय है जिसका वो इंतजार पिछले 20 सालों से कर रही है. ये पहली बार है कि गुजरात में राज्य स्तर पर ना तो सरकार में और ना ही पार्टी में मजबूत नेतृत्व है.
साथ ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर देश की जिम्मेदारी होने की वजह से वो गुजरात में उतना ध्यान नहीं दे पाएंगे. ऐसे में कांग्रेस के लिए बीजेपी के स्थानीय नेताओं का सामना करना आसान होगा.
वर्तमान मुख्यमंत्री विजय रुपानी में मोदी वाला आकर्षण नहीं है, ना ही उनके पास रणनीति तय करने वाला अमित शाह जैसा कोई व्यक्ति है. ऐसे में कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में अपने बेहतर प्रदर्शन की पूरी संभावना लग रही है. पर क्या वाकई गुजरात में कांग्रेस में रास्ता साफ हो गया है. कांग्रेस के सामने अभी भी काफी चुनौतियां हैं-
अहमद पटेल की जीत का मामूली आंकड़ा
अहमद पटेल की जीत का आंकड़ा 0.49 फीसदी वोट का है. यही वो आंकड़ा है जिसके अंतर पर अहमद पटेल राज्यसभा की सीट जीतने में सफल रहे हैं. आधे वोट से मिली जीत ने कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी का काम तो किया लेकिन इस राज्यसभा चुनाव में कुछ ऐसे नए मोड़ भी आए जिन्हें कांग्रेस का नेतृत्व या तो देख नहीं रहा या फिर देख कर अनदेखा कर रहा है.
विधायको ने छोड़ा कांग्रेस का साथ
राज्यसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के कुल 57 विधायक थे. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला के पद और फिर पार्टी छोड़ने के साथ ही एक एक कर के छह विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. बाकी बचे 51 विधायकों में दो ने खुल कर कहा कि उन्होंने राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को वोट दिया है.
अपना वोट बचाने के लिए कांग्रेस ने 44 विधायकों को कर्नाटक की सैर पर भेज दिया था. कर्नाटक गए 44 विधायकों में से भी एक ने क्रॉस वोटिंग की थी. यानी कांग्रेस के पास 51 में से 43 विधायको का ही समर्थन मिला है. आने वाले चुनाव में इसका असर साफ दिखेगा.
गुजरात में विपक्षी एकता नहीं दिखी
राज्यसभा चुनाव को अगर हम सेमीफाइनल माने तो वहां पर एक बात और साफ दिखी. कांग्रेस को उम्मीद थी कि बीजेपी की सारी विपक्षी पार्टियां मिल कर कांग्रेस के उम्मीदवार को वोट देंगी. कांग्रेस ने राज्यसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता का दावा करते हुए माना था कि उनको एनसीपी, जेडीयू सरीखे पार्टियों का साथ मिलेगा. लेकिन राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के 14 विधायकों के साथ एनसीपी ने पलटी मार कर बीजेपी को वोट दिया था. ऐसे में विपक्षी एकता का कांग्रेस का दावा भी भरभरा कर गिर गया.
स्थानीय निकाय चुनाव में प्रदर्शन
कांग्रेस ने जिला पंचायत चुनावों में 31 में से 23 सीटों और पंचायत चुनावों में 193 में से 113 सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन शहरी मतदाताओं पर बीजेपी का असर है. अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वडोदरा, भावनगर और जामनगर में निगम चुनावों में बीजेपी ने न सिर्फ बड़ी जीत दर्ज की थी बल्कि छोटे शहरों के 56 में से 40 सीटों पर भी कब्जा कर लिया था.
विधानसभा के 182 सीटों में से 67 शहरी सीटों और 20 छोटे शहरी सीटों के साथ जीत अभी भी कांग्रेस की झोली से दूर ही दिखाई देती है. कांग्रेस ने दलित, आदिवासी और मुस्लिम वोट बैंक को अपने साथ बांधे रखने में सफलता जरुर पाई थी. लेकिन बीजेपी का साथ पटेल समुदाय ने खुलकर दिया था.
कांग्रेस के नेतृत्व पर सवालिया निशान
विधायको का पार्टी में रहते हुए कांग्रेस का साथ ना देना इस बात की ओर इशारा करता है कि वहां के विधायकों को अपने नेतृत्व पर भरोसा नहीं है. 57 में से 14 विधायकों ने पार्टी के विरुद्ध जाकर मतदान किया था. कांग्रेस का नेतृत्व अपने ही पार्टी के विधायकों और नेताओं में विश्वास पैदा करने में सफल नहीं हुआ.
गुजरात की बाढ़ का असर
गुजरात के बनासकांठा सहित दस जिले जब बाढ़ की तबाही झेल रहे थे तो कांग्रेस के विधायक कर्नाटक में थे. उनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिनका जनाधार ही इन्हीं बाढ़ग्रस्त इलाकों से है. वहां की लोगों की उम्मीद अपने विधायक से होगी जो कि पूरी नहीं हो पाई.
बीजेपी की तैयारी
बीजेपी गुजरात में पिछले 20 साल से सरकार पर काबिज है. ऐसे में संगठन के स्तर पर वो मजबूत तो है साथ ही गुजरात बीजेपी के लिए साख का सवाल है. ऐसे में बीजेपी गुजरात में पूरी ताकत लगा देगी. प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव प्रचार पहले से ही शुरु कर दिया था. सूरत और राजकोट में कुछ महीने पहले किए गए अपने रैली के द्वारा मोदी राज्य की जनता तक ये संदेश पहुंचाना चाह रहे थे कि गुजरात अभी भी उनके लिए महत्वपूर्ण है. और प्रदेश के प्रति अपने उत्तरदायित्व को हर संभव निभाएंगे.
कांग्रेस के लिए गुजरात विधानसभा का महत्व
साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद अगले साल कर्नाटक के चुनाव होने हैं जो कांग्रेस के शासन वाला इकलौता बड़ा राज्य है. इसके बाद 2019 की सबसे बड़ी लड़ाई लोकसभा का चुनाव है. कांग्रेस अगर गुजरात में अच्छा प्रदर्शन करती है और विधानसभा में अपने विधायकों की संख्या बढ़ाने में कामयाब रहती है तो राष्ट्रीय स्तर पर इसका अच्छा संकेत जाएगा. इससे कांग्रेस अपने सहयोगियों में ताकतवर बनकर उभरेगी और वो उसकी बात पहले से ज्यादा सुनेंगे.
ऐसे में जरूरी है कि कांग्रेस को गुजरात के लिए सही रणनीति बनानी होगी. अहमद पटेल की जीत के बाद बीजेपी हर तरह से गुजरात में कांग्रेस को हाशिए में लाने की कोशिश करेगी. ऐसे में कांग्रेस की बेहतर प्रदर्शन इस पर बहुत निर्भर करेगा कि कांग्रेस अपने कार्यकर्ता से कितनी जुड़ती है. 20 साल से गुजरात में राज कर रही बीजेपी को लेकर गुजरात में विरोध की लहर को भी कांग्रेस को अपने पक्ष में भुनाना होगा.
गुजरात विधानसभा चुनाव दोनों बीजेपी और कांग्रेस के लिए मायने रखता है. बीजेपी के लिए साख का सवाल है तो कांग्रेस के लिए अपनी जमीन को मजबूत करने का एक मौका है. ऐसे में कांग्रेस को ये एहसास होना चाहिए कि राज्यसभा की जीत ने मनोबल को बढ़ाया है लेकिन अभी जमीनी स्तर पर बहुत काम करने की जरुरत है.