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गुजरात चुनाव परिणाम 2017: मोदी के करिश्मे का कोई जवाब नहीं

गुजरात की जीत ने साफ कर दिया है कि मोदी का जादू अभी बरकरार है और इससे उबरने के लिए कांग्रेस को कड़ी मेहनत करनी होगी

Sanjay Singh

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिन में ठीक 10 बजकर 45 मिनट पर संसद पहुंचे, उनके चेहरे से खुशी जाहिर हो रही थी. वे कार से उतरे, अपना हाथ लहराया और विजय का निशान बनाया जो हिमाचलप्रदेश और गुजरात के चुनाव के नतीजों का संकेत था. उन्होंने कोई बयान (साउंड बाइट) नहीं दिया.

चुनाव में मिली जीत के बाद वे कभी मीडिया से बातचीत के लिए उतावले नहीं हुए. वे ट्वीट करते हैं लेकिन फौरी तौर पर आमने-सामने की बातचीत नहीं करते. अपनी कामयाबी के बारे में बढ़-चढ़कर बोलने से बचते हैं. यही उनकी शैली है.


वे पहले मीडिया में मुद्दे पर भरपूर बातचीत हो लेने देते है. देश में बहस-मुबाहिसे के जो अन्य मंच हैं जैसे कि चाय की दुकान पर चलने वाली चर्चा, तालुका या प्रखंड स्तर पर होने वाली बातचीत या फिर गांव के चौपाल की बतकही-इन सारी जगहों पर जब मुद्दे पर बात हो चुकी होती है तब प्रधानमंत्री को जो कहना होता उसे पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक में कहते हैं. इसके बाद ही जीत का जश्न मनाते और आगे की चुनौतियों के बाबत बताते हैं.

ये जीत मोदी के नाम

दिसंबर 2017 के गुजरात चुनाव की अहमियत मुकाबले में खड़े दोनों दल, सत्ताधारी बीजेपी और चुनौती देने वाली कांग्रेस के लिए, हार या जीत से परे कहीं और आगे जाकर ठहरती है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह का अपना गृह-प्रदेश है और पार्टी बीते 22 सालों से सत्ता में है. जहां तक कांग्रेस का सवाल है, गुजरात के चुनाव ऐसे वक्त में हुए जब 19 वर्षों से पार्टी की कमान संभाल रही मां सोनिया गांधी की जगह बेटे राहुल गांधी को पार्टी के अध्यक्ष पद पर बैठाया गया. हालांकि राहुल की नाकामियों का सिलसिला जारी था.

आखिर यह बात साबित हुई कि मोदी इकलौते अपने करिश्मे के बूते कोई चुनाव जीत सकते हैं. चुनाव के नतीजे कह रहे हैं कि बीजेपी ने हिमाचल प्रदेश में दो तिहाई बहुमत से जीत हासिल की है. गुजरात में अपनी सत्ता बरकरार रखी है. इन नतीजों ने निस्संदेह ये साबित किया है कि मोदी का निजी आकर्षण बरकरार है, वे बेमिसाल है और लोगों को मोदी की काम कर दिखाने की क्षमता तथा नेता के रूप में उनकी ईमानदारी पर भरोसा है.

गुजरात में बीजेपी की जोरदार जीत ये संकेत देती है कि बीजेपी को लेकर लोग भले ही शुरुआती तौर पर पसोपेश में थे लेकिन मोदी मतदाताओं को अपनी तरफ मोड़ सकते हैं और उनसे अपने लिए और पार्टी के लिए वोट डलवा सकते हैं. बीते चार दशक में, कोई और नेता इस किस्म की कूबत और करिश्मा नहीं दिखा सका है.

मोदी ने तैयार की नई राह

गौर करने की एक बात यह भी है कि गुजरात और खासकर नरेंद्र मोदी बीजेपी के लिए नई राह खोलने वाले साबित हुए हैं. इससे पहले बीजेपी चुनाव जीत जाती थी, सरकार बना लेती थी लेकिन अगले चुनाव में उसके सत्ता में आने का भरोसा नहीं रहता था.

यहां तक कि बीजेपी ने अपने बूते 1995 में जो सरकार बनाई वह अंदरूनी खींचतान की वजह से तीन साल के भीतर गिर गई. लेकिन लोगों ने बीजेपी को 1998 में फिर चुनाव में सरकार बनाने का जनादेश दिया. अक्टूबर 2001 में नरेंद्र मोदी के बागडोर संभालने के बाद प्रदेश में बीजेपी की सरकार को स्थिरता हासिल हुई और पार्टी सूबे में उनके नेतृत्व में एक के बाद एक चुनाव जीतती गई.

आज के चुनावी नतीजों ने साबित कर दिया है कि नरेंद्र मोदी और बीजेपी गुजरात में अपराजेय हैं. उन्होंने पार्टी के जनाधार और संगठन की ताकत को नए सिरे से गढ़ा. इस काम में पूरी ऊर्जा लगाई और पार्टी के कार्यकर्ताओं का सुशासन के नए तंत्र के सहारे मनोबल ऊंचा बनाए रखा.

यह जीत बीजेपी के लिए कहीं ज्यादा मधुर कहलाएगी क्योंकि यह जीत उस वक्त हासिल हुई है जब माना जा रहा था कि जीएसटी के अमल में आई अड़चनों के कारण व्यापार-व्यवसाय करने वाले गुजरात के समुदाय नाराज हैं. गुजरात भारत का सबसे ज्यादा शहरी सूबा है और यहां व्यापारी समुदाय की मौजूदगी ज्यादा सघन है.

अगर जीएसटी को लेकर नाराजगी वास्तविक होती या फिर राष्ट्रीय मीडिया में जिस तरह का हल्ला मचा वह सच होता तो फिर गुजरात में लोग बीजेपी को फिर से 2022 तक के लिए सत्ता की बागडोर नहीं थमाते. साल 2022 तक के लिए सत्ता में होने का मतलब है, पार्टी ने एक कीर्तिमान बनाया क्योंकि 1995 से गुजरात में बीजेपी शासन में है और 2022 में सत्ता में होते वह 27 साल पूरे कर लेगी.

खत्म हुई नोटबंदी की बहस

तथ्य ये है कि यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी की शानदार जीत और स्थानीय निकाय के चुनावों में दमदार प्रदर्शन के साथ नोटबंदी पर चल रही बहस दम तोड़ चुकी थी लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष ने फिर भी नोटबंदी को एक मुद्दा बनाया. इसे मुद्दा क्यों बनाया यह तो वही बेहतर जानते होंगे. उन्होंने जीएसटी को 'गब्बर सिंह टैक्स' का नाम दिया और मान लिया कि इससे उन्हें बीजेपी पर बढ़त हासिल होगी.

बेशक जीएसटी जिस तरीके से लागू हुआ उसे लेकर गुजरात के व्यापारी समुदाय में कुछ नाराजगी थी लेकिन सूरत के कपड़ा और हीरा के व्यापारियों की नाराजगी की रिपोर्ट को बहुत बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया और कांग्रेस इस चक्कर में आ गई. राहुल और कांग्रेस ये नहीं समझ पाए कि मोदी सरकार ने जीएसटी के ढांचे में सुधार करके एक अलग रूख अपना लिया है और व्यापारी समुदाय की नाराजगी को दूर करने के लिए और भी ज्यादा कुछ करने का वादा किया जा रहा है.

चुनाव के नतीजों ने नोटबंदी और जीएसटी पर चली बहस को हमेशा के लिए मोदी के पक्ष में सुलझा दिया है. याद रहे कि जीएसटी पर अमल के बाद पहली बार यूपी के नगर निकाय के चुनाव हुए और बीजेपी ने इसमें जीत दर्ज की.

इसके बाद अब बीजेपी ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश का भी चुनाव जीत लिया है. लिहाजा, पूर्वोत्तर के तीन राज्यों और इसके बाद कर्नाटक में होने जा रहे चुनाव में बीजेपी पर हमला बोलने के लिए राहुल गांधी को कोई और मुद्दा तलाशना होगा.

कांग्रेस भी खुश!

कांग्रेस के नेता पार्टी के प्रदर्शन से बहुत खुश नजर आ रहे हैं. टीवी पर जारी बहसों में कांग्रेस के नेताओं ने अलग-अलग चैनलों पर पार्टी की जमकर तरफदारी की. उन्होंने कहा कि गुजरात में कांग्रेस की सीटें पहले की तुलना में बढ़ गई हैं और वोट शेयर भी बढ़ा है. लेकिन यहां एक दिक्कत है.

अगर कांग्रेस सचमुच 2019 के चुनाव और इन चुनावों से पहले मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में होने वाले विधानसभा के चुनावों में गंभीरता से मुकाबले में उतरना चाहती है तो उसे अपनी रणनीति और प्रदर्शन को लेकर संजीदगी के साथ आत्मपरीक्षण करना चाहिए.

गुजरात में बरकरार है मोदी मैजिक. समर्थकों ने जाहिर की खुशी (फोटो: पीटीआई)

कांग्रेस का वोटशेयर गुजरात में थोड़ा सा बढ़ गया है तो इसलिए कि हार्दिक पटेल और पाटीदारों का उसे साथ मिला, ये नहीं माना जा सकता कि कांग्रेस की लोकप्रियता बढ़ी है. कांग्रेस को सबसे ज्यादा बढ़त सौराष्ट्र के इलाके में मिली है. सौराष्ट्र में पाटीदार अधिक हैं और इस इलाके में हार्दिक का असर भी सबसे ज्यादा है.

पाटीदारों की वजह से बढ़ा कांग्रेस का वोट शेयर 

याद रहे कि इन चुनावों में अच्छी-खासी तादाद में पाटीदारों ने बीजेपी के खिलाफ वोट डाला है और उनका वोट अनचाहे में कांग्रेस को मिला है क्योंकि उनके पास इसके सिवा और कोई विकल्प नहीं था. बीजेपी ने अपनी गलती समझी है कि आंदोलनकारी भीड़ पर गोलियां चलीं और पाटीदार समुदाय के नौजवान लड़के लड़कियों के खिलाफ सैकड़ों मामले दर्ज हुए.

पार्टी का नेतृत्व पाटीदार समुदाय के विश्वास को जीतेने की जी-तोड़ कोशिश कर रहा है और एक बात यह भी है कि पाटीदार समुदाय का एकमुश्त समर्थन कांग्रेस को नहीं मिला है. पार्टीदार समुदाय के वोट बंटकर पड़े.

हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर को लुभाने के चक्कर में कांग्रेस ने चाहे बेसोचे या फिर रणनीति के तहत पार्टी के बाहर के इन नौजवान नेताओं को हद से ज्यादा प्रचार दिलवा दिया. पार्टी ने इन्हें नए नायक की तरह खड़ा किया. वे गुजरात चुनावों के नए उभरते चेहरे बने और इस चक्कर में कांग्रेस की अगली और उसके तुरंत पीछे की पांत के नेता एकदम हाशिए पर चले गए.

इस बात पर कोई शक नहीं किया जा सकता कि जिन मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट दिया है उनके मन में राहुल गांधी के लिए कोई आकर्षण नहीं है. गुजरात का यह चुनाव हमेशा इस बात के लिए भी याद किया जाएगा कि इसमें कांग्रेस अध्यक्ष ‘गैर-हिन्दू’ से ‘शिवभक्त-जनेऊधारी हिन्दू पंडित राहुल गांधी’ बने.

इसमें कांग्रेस को कोई चुनावी बढ़त हासिल नहीं हुई. हुआ बस यह कि राहुल गांधी मुकाबले एक ऐसे मैदान की तरफ बढ़ते नजर आए जहां नियम अमित शाह और नरेंद्र मोदी से तय होते हैं.