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गुजरात चुनाव 2017: हार-जीत से नहीं पड़ता फर्क, लड़ाई जारी रहेगी: जिग्नेश मेवानी

उना की घटना के बाद उनके आंदोलन ने ही जिग्नेश को एक नई पहचान दी थी, चुनाव जीतने से ज्यादा उस पहचान को बरकरार रखने पर जिग्नेश का ज्यादा जोर दिख रहा है

Amitesh

अहमदाबाद से करीब 140 किलोमीटर की दूरी पर पालनपुर हाइवे पर पालनपुर से महज सात किलोमीटर पहले जिग्नेश मेवानी के रोड शो की तैयारी चल रही है. रोड शो के लिए उनके समर्थक सुबह-सुबह जमा होने शुरू हो गए हैं.

बनासकांठा जिले की वडगाम सुरक्षित सीट से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे जिग्नेश मेवानी को सुबह दस बजे से ही काडोदर गांव से बडगांव गांव तक रोड शो करना था. लेकिन, सुबह नौ बजे ही जिग्नेश के पास बगल के गांव में किसी व्यक्ति की मौत की सूचना आती है. जिग्नेश रोड शो शुरू करने से पहले उस परिवार के पास जाकर दुख व्यक्त करते हैं और फिर वापस काडोदर पहुच कर अपने रोड शो की शुरुआत करते हैं.


जिग्नेश को देखकर उनकी सरलता का एहसास होता है, जिसमें वो आम-आदमी और अपने समर्थकों के साथ खुले दिल से और सहजता से बात कर रहे हैं. खुली जिप्सी में सड़क किनारे खड़े लोगों का अभिवादन स्वीकार करते हुए जिग्नेश अपने गाड़ियों के लंबे काफिले के साथ लगभग 11 बजे रोड शो के लिए चल पड़ते हैं.

हम आंदोलनकारी, जनता की लड़ाई से उभरे हैं

देखने में दुबले-पुतले लेकिन जेएनयू का वहीं पुराना अंदाज जिसमें जिग्नेश गुजरात के बाकी नेताओं से अलग जींस और कुर्ता में ही दिख रहे हैं. फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान जिग्नेश कहते हैं ‘मूलत: हम आंदोलनकारी हैं, हम जनता की लड़ाई से उभरे हैं और वहीं हमारी सही जगह भी है. लेकिन, लगातार दलित समाज के लोगों और दूसरे लोगों की तरफ से आ रहे कॉल के बाद हमने चुनाव लड़ने का फैसला किया, ताकि जनता से जुड़े मुद्दों को नॉन कॉम्प्रोमाइजिंग पोजिशन में हम उठाते रहें.’

हालांकि जिग्नेश आम राजनेताओं से बिल्कुल अलग जीत के दावे किए बगैर कहते हैं कि ‘इस चुनाव में जीते या हारे हमारी लड़ाई पहले की तरह ही सड़कों पर जारी रहेगी.’

जिग्नेश मेवानी के रोड शो में जेएनयू के उनके पुराने साथी भी दिख रहे हैं. जेएनयू छात्र संगठन से जुड़े कुछ लोग इस रोड शो के दौरान मिल गए जो जिग्नेश के साथ कैंप कर रहे हैं. वडगाम में दूसरे चरण में 14 दिसंबर को होने वाले चुनाव के बाद ही जेएनयू के साथी वापस दिल्ली लौटने की बात कर रहे हैं.

जेएनयू के स्कूल ऑफ लैंग्वेज में जेएनयू स्टूडेंट यूनियन की कन्वेनर अदिति चटर्जी कहती हैं कि जो ‘दलितों के मुद्दे हैं वो बिल्कुल सही हैं. फासीवादी ताकतों ने जो यहां किया है, उसके खिलाफ आवाज बुलंद करने हम यहां आए हुए हैं.’

जेएनयू के साथी भी जिग्नेश की कर रहे मदद

भीम आर्मी से जुड़े प्रदीप नरवाल का कहना है कि हम तो जिग्नेश का साथ देने यहां आए हैं. अदिति और प्रदीप के अलावा जेएनयू के पुराने स्टूडेंट्स और जिग्नेश के कई दोस्त उनके रोड शो के दौरान मिल गए जो लगातार जिग्नेश की जीत का दावा कर रहे हैं. खालिद सैफी, रिजवान और सारिक तीनों जेएनयू के पुराने स्टूडेंट रहे हैं जो इस बार जिग्नेश को जीत दिलाने के लिए दिल्ली से वडगाम पहुंचकर कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

रोड शो के दौरान बीच-बीच में नारे भी लग रहे हैं. नारे भी जेएनयू के ही स्टाइल में. ‘कहां पड़े हो चक्कर में, कोई नहीं है टक्कर में.’ इस नारे के साथ जिग्नेश हाथ हिलाकर अभिवादन स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते हैं. वडगाम सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे जिग्नेश मेवानी को कांग्रेस ने भी समर्थन दिया है और आप ने भी. जिग्नेश के समर्थकों को उम्मीद है कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे इस सीट पर उनकी जीत हो जाएगी.

दलित-मुस्लिम गठजोड़ लगाएगा नैया पार

फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान जिग्नेश दलित-मुस्लिम गठजोड़ की वकालत करते नजर आ रहे हैं. जिग्नेश का कहना है कि ‘हम दलित-मुस्लिम गठजोड़ को एक्सप्लोर करेंगे.’ उनके इस दावे की झलक उनके रोड शो में दिख भी रही है. जहां बड़ी तादाद में दलितों के साथ मुस्लिम समाज के लोग दिख रहे हैं.

जिग्नेश मेवानी के निशाने पर बीजेपी आलाकमान है. उनके तेवर से लग रहा है कि वो हर हाल में बीजेपी के खिलाफ अपनी आवाज बुंलद करते रहेंगे. भले ही निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हों. लेकिन, उनकी लड़ाई बीजेपी से ही है.

जिग्नेश गुजरात के विकास मॉडल पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. उनका आरोप है कि अगर गुजरात मॉडल डिलीवर हुआ होता तो आज दो साल से गुजरात की जनता सड़क पर नहीं होती. उनकी नजर में बुलेट ट्रेन से ज्यादा अहमियत गांवों में बेसिक सुविधाओं पर है.

बीजेपी के दावे के उलट वो लगातार गांवों में बिजली ठीक से ना मिलने और बडगाम में किसानों की पानी की किल्लत को लेकर सरकार से सवाल पूछ रहे हैं.

सबका साथ-सबका विकास नहीं सबका त्रास-सबका विनाश

जिग्नेश ने सबका साथ-सबका विकास के नारे की हवा निकालते हुए अब नया नारा दिया है, सबका त्रास-सबका विनाश. जिग्नेश का आरोप है ‘बीजेपी सरकार दलित विरोधी भी है, मुस्लिम विरोधी भी. आदिवासी विरोधी है तो पाटीदार विरोधी भी. युवा विरोधी है तो महिला विरोधी भी.’

पाटीदार आंदोलन के दौरान 14 पाटीदारों के मारे जाने, थानागढ़ में तीन दलितों की हत्या और कोलू के जंगल में आदिवासी समाज के लोगों पर गोलियां चलाए जाने को जिग्नेश सरकार की जनविरोधी नीति का पर्याय मान रहे हैं.

लेकिन, जिग्नेश मेवानी इस बात को मानते हैं कि थोड़ा-बहुत अंतर्विरोध हार्दिक, अल्पेश और उनमें है. फिर भी इसको भुलाकर वो बीजेपी के खिलाफ अभियान को बेहद जरूरी बता रहे हैं.

फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत के दौरान जिग्नेश का कहना है ‘छोटा-मोटा कंट्राडिक्शन है. लेकिन, हम तीनों को पता है कि मुख्य कंट्राडिक्शन फासिस्ट लोगों के साथ है जो इस वक्त सत्ता में हैं.’

बीजेपी के विरोध का भी करना पड़ रहा है सामना

हालांकि जिग्नेश मेवानी का यह अंदाज बीजेपी नेताओं को नहीं भा रहा. अहमदाबाद में बीजेपी के किसी नेता ने तो यहां तक कह दिया कि जिग्नेश की हार निश्चित है. जिग्नेश को लेकर बीजेपी के विरोध की झलक भी रोड शो के दौरान भी दिख रही है.

जब जिग्नेश का काफिला आगे बढ़ता है तो करीब चार किलोमीटर की दूरी पर लगभग 12 बजे ‘छापी’ में बीजेपी के समर्थक रोड शो के दौरान बीजेपी का झंडा लेकर चले आते हैं. मोदी-मोदी के नारे लगाते हुए बीजेपी के समर्थक काले झंडे भी दिखाते हैं.

छापी के रहने वाले बीजेपी समर्थक मेघराज भाई चौधरी जिग्नेश के खिलाफ अपनी भड़ास निकालते हुए कहते हैं कि ‘हम जिग्नेश की नीति से बिल्कुल सहमत नहीं हैं.’ देवेंद्र भाई जेठवा का कहना है कि ‘कुछ भी हो जाए वडगाम से बीजेपी की ही जीत होगी.’ जिग्नेश को लेकर जेठवा के मन में भी नफरत दिख रही है जो बातचीत के दौरान सामने आ जाती है.

फटे हुए विकास को सिलना है

हालांकि विरोध के बावजूद जिग्नेश का रोड शो जारी रहता है. छापी से उनका रोड शो वडगाम होते हुए कई और गांवों में जाता है. अपनी खुली जिप्सी से ही जिग्नेश अलग-अलग गांवों में सभा करते हुए जाते हैं. जिग्नेश मेवानी रोड शो के दौरान लोगों से अपील करते हैं ‘फटे हुए विकास को सिलना है. इसलिए सिलाई मशीन को वोट कीजिए.’ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे जिग्नेश का चुनाव चिन्ह सिलाई मशीन है.

लेकिन, रोड शो करने पहुंचे जिग्नेश मेवानी को शाम 5.45 से लेकर 6.30 तक काफी मगजमारी के बावजूद सेद्रासन गांव में इंट्री नहीं मिल पाई. गांव वालों ने शर्त रख दी थी कि जय श्री राम का नारा लगाए बगैर गांव में इंट्री नहीं होने देंगे.

लेकिन, बाकी गांवों में मौजूद लोगों से उनकी अपील मौजूदा सरकार को उखाड़ फेंकने की है. सोमवार को जिग्नेश के रोड शो के अगले ही दिन वडगाम पहुंचे गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने भी जिग्नेश को घेरने की पूरी कोशिश की.

देश विरोधी लोग आ रहे जिग्नेश के प्रचार मेंः रूपाणी

रूपाणी ने अपनी रैली में कहा कि कन्हैया जैसे देश विरोधी लोगों ने आतंकवादी अफजल गुरु के समर्थन में नारे लगाए थे. ऐसे लोग भी जिग्नेश के लिए प्रचार में आने वाले हैं जिसका जवाब वो वडगाम की जनता को दें और जनता उनसे सवाल भी पूछे.

लेकिन, बातचीत के दौरान जिग्नेश कहते हैं कि मोदी-शाह की रैली से ज्यादा भीड़ हार्दिक पटेल की रैली में हो रही है. यह एक संकेत है. संकेत को पकड़ने की कोशिश जिग्नेश की तरफ से हो रही है. लेकिन, निर्दलीय खड़ा होकर जिग्नेश संकेत दे रहे हैं कि वो किसी से बंधे नहीं हैं. किसी पार्टी से जुड़कर उसके साथ बंधने के बजाय वो खुलेपन के साथ सड़क पर संग्राम के लिए तैयार दिख रहे हैं.

निर्दलीय जीतने के बावजूद उनके पास वो मौका होगा, जिसमें उन मुद्दों को लेकर वो फिर से जनता के बीच पहुंच सकते हैं. सरकार पर दवाब बना सकते हैं जैसा कि उना की घटना के बाद किया था. उना की घटना के बाद उनके आंदोलन ने ही जिग्नेश को एक नई पहचान दी थी. चुनाव जीतने से ज्यादा उस पहचान को बरकरार रखने पर जिग्नेश का ज्यादा जोर दिख रहा है.