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गुजरात चुनाव: क्या बदले माहौल का फायदा उठा पाएगी कांग्रेस?

कांग्रेस को उम्‍मीद है कि उसकी अपनी टीम पटेल, ठाकोर और मेवानी के समर्पित समर्थकों से मिलकर मतदान के दिन ऐसा कर गुजरेगी कि कांग्रेस एक बार फिर गुजरात के सत्‍ता के गलियारों में दाखिल हो जाए

Sandipan Sharma

एबीपी-सीएसडीएस के ताज़ा चुनाव पूर्व सर्वेक्षण से वही बात पुख्‍ता होती है जिसे पिछले दो हफ़्ते से गुजराती समाज के लोगों को मथ कर रख दिया है और वो बात है- कांग्रेस आवे छे (कांग्रेस सत्‍ता में लौट रही है).

सर्वेक्षण से पता चलता है कि चुनावी बयार कांग्रेस के पक्ष में है. अगस्‍त महीने से कांग्रेस ने तकरीबन 14 फ़ीसदी अधिक वोटरों का समर्थन हासिल कर लिया है. इससे अनुमान है कि अब बीजेपी और कांग्रेस में वोट का बंटवारा 43 -43 फीसदी की बराबरी पर आ गया है. अगस्‍त तक कहानी कुछ और थी. उस समय अंदाजा था कि बीजेपी का वोट शेयर 59 फीसदी है और वह 182 सीट वाली गुजरात विधानसभा में 144-152 सीटें हासिल कर सकती है. पर नया आंकड़ा कहता है कि बीजेपी इस दौड़ में आधी सीटों पर ही सिमट सकती है.


कांग्रेस ने कैसे बदला माहौल

कांग्रेस ने राजनीति की शतरंज में चार चालें बहुत सोच समझ कर चलीं जिससे शह-मात के इस खेल में बढ़त बना सके. पहला कदम पार्टी की उस छवि को बदलने का उठाया गया जिसमें उसे हिंदू विरोधी समझा जाता है. दूसरा कदम ये उठाया गया कि चुनावी समर में बाहरी लोगो का प्रवेश रोक दिया गया. तीसरा, चुनाव लड़ने के पारंपरिक तरीके यानी एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक जाया गया और चौथा कदम ये उठाया गया कि नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी पर निशाना बनाने की छूट दी गई और हार्दिक पटेल को प्रधानमंत्री के सामने उतार दिया गया.

राहुल गांधी को जानबूझ कर नरम हिंदुत्‍व का पैरोकार बना कर पेश किया गया. पार्टी के सर्वोच्‍च रणनीतिकारों की हुई बैठक में फैसला किया गया कि बीजेपी को अकेले ही हिंदुत्‍व की मलाई खाने देने से रोकना होगा. इस बैठक में राहुल के साथ कांग्रेस के गुजरात प्रभारी अशोक गहलौत भी शामिल हुए थे.

कांग्रेस की हिंदू विरोधी छवि को तोड़ने के लिए तय किया गया कि पार्टी राहुल को हिंदू श्रद्धालु की तरह पेश करेगी और दंगों व गोधरा की बातों से दूरी बरतेगी. यह भी तय हुआ कि मुसलमानों से कहा जायेगा कि वे अपने पहचान पर जोर नहीं देते हुए सहभागिता करें.

बीजेपी हिंदुत्व के नाम पर वोट बटोरने में माहिर लेकिन सोशल इंजीनियरिंग में फेल

इस बात की दलील बहुत साधारण है. बीजेपी हिंदुत्‍व के नाम पर वोट बटोरने के खेल में माहिर है लेकिन जब सवाल सोशल इंजीनियरिंग का आता है तो पार्टी बगलें झांकने लगती है. तब पता चलता है कि उसके पास इसकी कोई ठोस रणनीति नहीं है. यह सबक उसने उत्‍तर प्रदेश में मिली जीत और बिहार में मिली हार से सीखा है. इसलिए कांग्रेस ने फैसला किया है कि वह अपनी हिंदू विरोधी छाप को छुड़ाएगी और जाति व समुदाओं का मिला जुला इंद्रधनुष बनाएगी.

बीजेपी को हिंदुत्‍व की पीठ पर सवारी करने का खुले मौके को अब कांग्रेस साधने की कोशिश में है. वो खुद को भी इस सवारी के दावेदार के रूप में पेश कर रही है. सीएसडीएस का सर्वे दिखाता है कि कांग्रेस ने बीजेपी के वोट बैंक जिसमें आदिवासी, कारोबारी और पाटीदार शामिल हैं, उनमें गहरी सेंध लगा दी है. ये वोटर बीजेपी के समर्थन देने की आवाज को फिलहाल अनसुना किए हुए हैं.

मोदी के बयानों का माकूल जवाब दे रही है कांग्रेस

कांग्रेस की रणनीति में एक अहम बदलाव ये भी आया कि अब मोदी के बयानों और दावों को अब यूं ही जाने नहीं दिया जाता है. उनके हर बयान की पूरी जांच पड़ताल होती है और माकूल जवाब दिया जाता है. ऐसा करने के क्रम में पार्टी को अहसास हुआ कि जवाबी एक्‍शन में राहुल जरा फीके पड़ते हैं इसलिए उन्‍हें इस मोर्चे से हटा कर हार्दिक पटेल को वहां फिट कर दिया गया और सोशल मीडिया को कमान सौंपी गई. अब हार्दिक एक आग उगलू नेता की छवि वाले हैं और वे संघ स्‍टाइल में फाइट करने में उस्‍ताद हैं.

ये रणनीति सौराष्‍ट्र और दक्षिण गुजरात में हुई राजनीतिक रैलियों में जाहिर भी हुई है. मोदी के खिलाफ दो मोर्चे खोले गए हैं. पहले मोर्चे में कांग्रेस सोशल मीडिया के जरिए प्रधानमंत्री पर हल्‍ला बोलती है और दूसरे मोर्चे पर हार्दिक पटेल को लगाया गया है. वो अपनी खास तेजतर्रार शैली में हमला करते हैं. कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि 1979 में जब उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी मोरबी आई थीं तो उन्‍होंने नाक पर रूमाल रख रखा था क्‍योंकि उन्‍हें मरे हुए लोगों से बदबू आती थी.

कांग्रेस ने फौरन ही इसका पलटवार करते हुए स्‍थानीय पत्रिकाओं में छपे वो फोटो जारी किए जब आरएसएस कार्यकर्ताओं ने अपने मुंह भी ढक रखे थे. उसी वक्‍त हार्दिक हमलावर हो गए और प्रधानमंत्री को निशाना बनाते हुए पूछा कि  मोदी जी उस घटना के समय त्रिवेंद्रम में थे, वो क्‍या वहां से ‘’दौड़कर’’ मोरबी पहुंच गए थे. इस घटना में एक बांध के टूटने से हजारों लोग मारे गए थे.

प्रधानमंत्री के हर एक दावे पर भरोसा करने से बचे

तो इस तरह से राहुल गांधी बीजेपी और उसकी नीतियों को निशाना बनाते हैं और हार्दिक प्रधानमंत्री को. हार्दिक ने अपने भाषण में प्रधानमंत्री को चुनौती देते हुए उनके विकास के दावों को खारिज कर दिया और गुजरातियों को चेताया कि प्रधानमंत्री के हर एक दावे पर भरोसा करने से बचना चाहिए.

हार्दिक ने ‘गुलाम मानसिकता’ से निजात पाने का आह्वान करते हुए कहा कि लोगों को बीजेपी की बातों पर सवाल करना चाहिए. शुरू में प्रधानमंत्री ने अपने चुनाव प्रचार में हार्दिक की अनदेखी की तो हार्दिक ने इसका फायदा उठाया. ऐसी स्थिति में हार्दिक पटेल के पास वह मौका है कि वह बातों को अपने हिसाब से पेश कर सकें क्योंकि सामने से कोई प्रतिरोध आना नहीं.

देखने वाली बात यह होगी कि कांग्रेस अपने रणनीति में आए बदलाव को कैसे लागू करती है

अब कांग्रेस की चुनावी जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि वह कितने जोरदार ढंग से अपनी रणनीति में आए बदलाव को लागू कर पाती है. इस साल दूसरे नेताओं को चुनावी रैलियों में भाषण देने के काम पर लगाने के बजाए कहा गया है कि वे एक दर से दूसरे दर पर जाएं, लोगों से बातचीत करें और वोट वाले दिन बूथ प्रबंधन करें. रैलियों को आयोजित करने का जिम्‍मा, वोटरों की बात सुनना और सुनाने का काम राहुल, पटेल, ठाकोर और जिग्‍नेश मेवानी को सौंपा गया है. जबकि पुराने धुरंधरों से कहा गया है कि वे वोटरों तक पहुंचे और ये सुनिश्चित करें कि लोगों का गुस्‍सा बैलेट पेपर पर निकल कर आए.

कांग्रेस के भीतर डर इस बात का है कि उसके कार्यकर्ता बीजेपी की तरह समर्पित नहीं हैं. कुछ घंटो के मतदान के बाद वे बूथ का कामधाम छोड़कर घर चले जाते हैं. बीजेपी के पास इस बात का लाभ है कि उसके पास कार्यकर्ताओं की फौज है और तकनीक के मामले में वे उन्‍नीस पड़ते हैं जिससे वोटरों से संपर्क बनाने में वो बेहतर हैं.

कांग्रेस को उम्‍मीद है कि उसकी अपनी टीम पटेल, ठाकोर और मेवानी के समर्पित समर्थकों से मिलकर मतदान के दिन ऐसा कर गुजरेगी कि कांग्रेस एक बार फिर गुजरात के सत्‍ता के गलियारों में दाखिल हो जाए.