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जीएसटी: सचिन ने कांग्रेस की बात सीरियसली ले ली

जीएसटी लागू होने जैसे महत्वपूर्ण मौके पर संसद में सचिन तेंदुलकर की नामौजूदगी अखरती है

Arun Tiwari

30 जून की रात संसद के सेंट्रल हॉल में देश के लगभग सभी गणमान्य लोग मौजूद थे. लगभग सभी महत्वपूर्ण लोग मौजूद थे चाहे वो राज्यसभा के सांसद हों या लोकसभा के. कांग्रेस ने एक दिन पहले जीएसटी का बहिष्कार कर दिया था, इस वजह से उसके सांसद तो संसद में नहीं दिखाई दिए लेकिन उनके कई सहयोगी दलों के नेता पूरी शिद्दत के साथ वहां दिख रहे थे.

अखर रही थी तो क्रिकेट के 'भगवान' सचिन तेंदुलकर की नामौजूदगी. हालांकि भगवान तो यत्र तत्र सर्वत्र होते हैं लेकिन वैसे भगवानों को भारत रत्न नहीं मिलते और न ही वह राज्यसभा में नामित किए जाते हैं.


यूपीए शासन काल के दौरान सचिन को भारत रत्न दिए जाने को लेकर लंबी बहस चली थी. बहुत सारे लोग उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने के पक्ष में थे कुछ मुखर विरोध में.

2013 में सचिन के संन्यास के बस थोड़ी ही देर बाद ये पुरस्कार दिए जाने की घोषणा कर दी थी. सचिन ये पुरस्कार पाने वाले देश के सबसे कम उम्र के शख्सियत थे और पहले खिलाड़ी थे जिन्हें यह पुरस्कार मिला.

सचिन को जबसे ये पुरस्कार मिला हर कुछ समय बाद उन्हें मिले पुरस्कार के औचित्य पर सवाल उठते रहते हैं. हालांकि भारतीय क्रिकेट के लिए उनके योगदान पर कोई सवाल नहीं खड़े किए जा सकते हैं.

सचिन जो ठान लेते हैं वही करते हैं

राज्यसभा के सांसद रहने के दौरान सचिन अपनी मौजूदगी के सवाल से गुजरते तो रहते ही हैं. उनके बारे में एक कहावत मशहूर है कि सचिन जो ठान लेते हैं वही करते हैं. उन्हें दुनिया की आलोचनाओं का ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है. शायद इसीलिए उन्होंने सारी आलोचनाओं के बावजूद पद लेना तो मुनासिब समझा लेकिन जब संसद में मौजूदगी की बात आती है तो फिर उसी क्रिकेटिंग स्पिरिट पर आ जाते हैं. जैसे क्रिकेट खेलते हुए सिर्फ ये ख्याल रखते थे कि ज्यादा रन कैसे बनाने हैं.

30 जून को भी जब देशभर से सारे सांसद अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे थे तो सचिन तेंदुलकर गायब रहे. सचिन राज्यसभा के नामित सांसद हैं. उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा सांसद बनाया था. तो भले ही कांग्रेस की साथी पार्टियों ने संसद में अपने चेहरे दिखाए हों लेकिन सचिन ने पूरी ईमानदारी के साथ कांग्रेस के साथ अपनी सॉलिडैरिटी दिखाई और न आने का फैसला लिया. ये भी उनके खेल जीवन में अपनाई गई 'अराजनीतिक छवि' के जैसा फैसला ही है.

अभी तक देश में तीन बार ही संसद के सेंट्रल हॉल में आधी रात को जश्न मना है. पहली बार 15 अगस्त 1947 की रात को उसके बाद आजादी के 25 साल पूरे होने पर 1972 में फिर उसके बाद 50 साल होने पर 1997 में. ये चौथा मौका था जब इस तरह का बड़ा आयोजन हुआ.

देश के आर्थिक विकास में मील का पत्थर साबित होगा

जीएसटी से देश की आर्थिक दशा और दिशा बदलने की बात बीजेपी कर रही है. पीएम नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने लंबे भाषण देकर देश को समझाने की कोशिश की कि कैसे जीएसटी देश के आर्थिक विकास में मील का पत्थर साबित होगा. राष्ट्रपति ने भी इसपर अपनी सहमति जताई लेकिन क्रिकेट के 'भगवान' सचिन ने एक सामान्य मैच के बराबर भी अहमियत इस आयोजन को नहीं दी.

उनके लिए जीएसटी लागू होने के दिन का महत्व चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल से भी कम हो गया.

जब चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल हो रहा था तो मैदान में मौजूद सचिन पर बार-बार कैमरा फोकस कर जा रहा था. सचिन की किसी भी जगह मौजूदगी के मायने होते हैं. वो देश के करोड़ों युवाओं के आदर्श के तौर पर देखे जाते हैं.

इतने महत्वपूर्ण अवसर पर उनकी मौजूदगी से जीएसटी जैसे कानून को और बल मिलता. लेकिन इस मौके को सचिन ने एक खराब बॉल की तरह छोड़ दिया जो सीधा विकेटकीपर के हाथों में चली जाती है. शायद सचिन ने कांग्रेस पार्टी के बॉयकॉट को सबसे ज्यादा सीरियसली ले लिया है. या कह सकते हैं अराजनीतिक रहते हुए बेहतर राजनीतिक कदम उठाया है.