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कालेधन पर चुनाव आयोग तक शिकायत लेकर पहुंचे गोविंदाचार्य

गोविंदाचार्य ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मिलने के बाद फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत की.

Amitesh

बीजेपी के पूर्व संगठन महासचिव और आरएसएस विचारक के एन गोविंदाचार्य ने चुनाव सुधार की दिशा में कड़े कदम उठाने की मांग की है. उनका कहना है कि चंदे की आड़ में कालेधन को सफेद करने की सियासी दलों की कोशिशों पर लगाम लगाने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि दूसरों को पारदर्शिता का पाठ पढ़ाने वाले सियासी दल अगर खुद उदाहरण पेश करें तो सही मायने में सुधार हो सकता है. गोविंदाचार्य ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मिलने के बाद फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में अपनी बातें खुलकर रखीं.


फ़र्स्टपोस्ट: चुनाव आयोग में जाकर आज अापने बात की है, मुख्य रूप से आपकी क्या मांगें हैं?

गोविंदाचार्य: मैंने कहा कि राजनीतिक दल जितना ज्यादा पेमेंट डिजिटल तरीके से करेंगे, उतनी ही ज्यादा पारदर्शिता आएगी. सामान्य जन को इस दिशा में आगे ले जाने के साथ-साथ खुद को भी इस दिशा में आगे ले जाने की कोशिश करें.

इसमें चुनाव आयोग की भूमिका तो बनती है. वे रिजर्व बैंक, मंत्रालय और राजनीतिक दलों को इस दिशा में निर्देशित करें. खासतौर से राजनीतिक दल ई- डोनेशन लेते हुए इंसेंटिव का लाभ लें. अगर वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक और इनकम टैक्स को इस दिशा में निर्देश दिए जाएं तो ये लोकतंत्र के लिए हितकर होगा.

20,000 रुपए से कम के डोनेशन में कोई पूछताछ न हो, यह तो ठीक है लेकिन जब कोई राजनीतिक दल ये कहे कि एक करोड़ रुपए की राशि डोनेशन में हजार या उससे ज्यादा लोगों से मिली है जिन्होंने 20,000 से कम रुपये के चंदे दिए हैं, तो फिर उन राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे साबित करें कि आखिरकार इसका सोर्स क्या है और जबतक इस पर पूछताछ न हो जाए तबतक इन दलों को टैक्स में छूट नहीं मिलनी चाहिए.

हमने तीसरी बात यह कही है कि 15 लाख रुपए के करेंट एकाउंट की जांच भी होनी चाहिए. ये तीनों ही बातें चुनाव आयोग के सामने हमने रखी हैं जिसको लेकर चुनाव आयोग को फैसला करना चाहिए.

फ़र्स्टपोस्ट: सबसे बड़ी बात है कि 20,000 रुपए से कम की रकम के स्रोत बताने की जरूरत नहीं होती, लिहाजा गड़बड़ी और हेराफेरी की संभावना बनी रहती है.

गोविंदाचार्य: मेरा यही कहना है कि एक आदमी 20,000 से कम जमा करे तो मान लिया जा सकता है, लेकिन एक राजनीतिक दल कहे कि एकमुश्त इतनी बड़ी रकम 20,000 रुपए से कम के चंदों की है तो विश्वास नहीं होता. इसलिए जरूरी है कि टैक्स की छूट देने में इसकी जांच भी हो. साथ ही राजनीतिक दल भी जांच की परिधि में आयें ये लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है.

फ़र्स्टपोस्ट: चुनाव आयोग ने करीब 200 पार्टियों की मान्यता को लेकर सवाल खड़ा किया है. तो क्या सियासी पार्टियों के माध्यम से भी मनी लॉन्ड्रिंग और इस तरह की गतिविधियों के जरिए कालेधन को सफेद किया जाता है?

गोविंदाचार्य: यह स्वाभाविक है. अगर 200 के करीब राजनीतिक दल चिह्नित किए गए हैं तो हमारा आग्रह है कि राजनीतिक दलों को इस तरह का निर्देश देना चाहिए. यह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी भी है और निर्देश देना उनके अधिकार क्षेत्र में भी है.

फ़र्स्टपोस्ट: चुनाव आयोग से क्या भरोसा मिला है आज की मुलाकात के बाद?

गोविंदाचार्य: चुनाव आयोग के लोगों ने हमारी तीनों बातों पर चिंता व्यक्त की. हमारी बातें सुनी और जो हमने ज्ञापन में दिया है, उन कानूनी मुद्दों पर विचार कर आगे की कार्रवाई करने की बात कही है.

फ़र्स्टपोस्ट: नोटबंदी के बड़े एलान को प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी के दूसरे नेता कालेधन के खिलाफ बड़ी लड़ाई के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. इसका विरोध करने वाले लोगों को मोदी कालामन वाला बता रहे हैं. क्या आपको लगता है कि कालेधन को सफेद करने के काम में बीजेपी भी लगी है?

गोविंदाचार्य: किसी राजनीतिक दल की आलोचना में रुचि नहीं रखता हूं. केवल इतना ही कहूंगा कि हर दल को पारदर्शिता की तरफ खुद आगे आना चाहिए. इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष का कोई भेद नहीं होता.

फ़र्स्टपोस्ट: क्या भारत में चुनावी चंदे को लेकर ज्यादा पारदर्शिता बरतने की जरूरत है, जैसा कि इनदिनों चर्चा चल रही है कि चुनाव लड़ने का खर्च चुनाव आयोग ही दे ताकि चुनावों में कालेधन के इस्तेमाल पर लगाम लगे.

गोविंदाचार्य: मुझे लगता है कि चुनाव आयोग को और अधिकार दिए जाने की भी जरूरत है. जैसे मैनिफेस्टो के प्रति कमिटमेंट को मैंडेटरी बनाया जाए, राजनीतिक दलों के सांगठनिक चुनाव को चुनाव आयोग की निगरानी में किया जाए, जिसका हम समय-समय पर इसके लिए चुनाव आयोग से बात भी करते हैं.

फ़र्स्टपोस्ट: आपने क्या-क्या कानूनी पहलू चुनाव आयोग के सामने रखे?

गोविंदाचार्य: हमने कहा कि चुनाव आयोग केवल मूकदर्शक न रहे. चुनाव आयोग राजनीतिक दलों का नियमन करने वाली एक रेगुलेटरी अथॉरिटी के रूप में स्थापित की गई है. इसलिए अपने अधिकारों पर आग्रह करना चुनाव आयोग का कर्तव्य है.

फ़र्स्टपोस्ट: नोटबंदी के लागू होने के बाद आपने कहा था कि अभी हम आकलन कर रहे हैं. लगभग 50 दिन होने वाले हैं, ऐसे में नोटबंदी के बाद के प्रभाव का आकलन कैसे कर रहे हैं?

गोविंदाचार्य: मैं मानता हूं कि जनता में इस दिशा में इच्छाशक्ति बनी है. कहीं न कहीं इसका लाभ मिला है तभी तो लोग इस तरह लाइन में लगे हैं. जनता की मूल शक्ति का एक उदाहरण तो मिलता है, लेकिन आगे की एक लड़ाई है काली सम्पदा, दूसरा पहलू है काली मुद्रा, तीसरा पहलू है जाली नोट और चौथा पहलू है ई- इकॉनमी.

ई- इकॉनमी का अभी की नोटबंदी से कुछ खास मतलब नहीं है. यह लड़ाई तो काली मुद्रा के खिलाफ मुख्य रूप से है. अब इस लड़ाई की सफलता और जीत-हार से मनोवैज्ञानिक रूप से इस लड़ाई को चलाने में बल मिलेगा. जनता भी चाहती है कि इसका लाभ मिले. दूसरी बात है कि आखिर बैंकिंग माध्यमों से कितना काला धन सफेद हो गया. तीसरी बात है कि बैंकिंग सिस्टम को और बेहतर कैसे बनाया जाए, ये सीखने की जरूरत है.