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गोवा चुनाव 2017: लक्ष्मीकांत पारसेकर के लिए आर-पार की लड़ाई

पारसेकर को जहां बीजेपी को चुनाव में जीत दिलवाने की चुनौती है वहीं मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी उन्हें अपनी दावेदारी मजबूत रखनी होगी

David Devadas

गोवा के मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर के लिए इस बार का विधानसभा चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. प्रदेश की 40 विधानसभा सीटों पर 4 फरवरी को मतदान होना है और 11 मार्च को वोटों की गिनती.

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि चुनाव के नतीजे के बाद केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर गोवा लौट सकते हैं. शाह का साफ इशारा था कि गोवा में विधानसभा चुनाव में जीतने पर पर्रिकर को प्रदेश की कमान सौंपी जा सकती है.


ऐसे में पारसेकर के लिए दोहरी चुनौती है. उन्हें बीजेपी को चुनाव में जीत दिलवाना होगा तो साथ ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी अपनी दावेदारी मजबूत रखनी होगी.

वैसे कार्यकाल के लिहाज से देखें तो लक्ष्मीकांत पारसेकर का मुख्यमंत्री का कार्यकाल करीब डेढ़ साल का ही है, लेकिन गोवा में बीजेपी की पांच साल से सरकार है. ऐसे में पारसेकर को एंटी-इनकमबेंसी फैक्टर से भी निपटना होगा. खासकर उन चुनावी वादों से, जो बीजेपी ने कभी जनता से किए थे.

(फोटो: फेसबुक से साभार)

फर्स्टपोस्ट डॉटकॉम के संवाददताता डेविड देवदास से खास बातचीत में लक्ष्मीकांत पारसेकर ने बताया कि अधिकतर चुनावी वादे बीजेपी (मनोहर पर्रिकर और नायक की सरकार) पूरे कर चुकी है. इसका फायदा पार्टी को इस बार भी विधानसभा चुनाव में मिलेगा. वैसे वे बेहद साफगोई से यह भी बताते हैं कि मनोहर पर्रिकर और श्रीपदजी धरातल से जुड़े नेता हैं और उनसे वरिष्ठ भी.

जब उनसे सवाल किया गया कि इस बार चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मनोहर पर्रिकर में से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा? पारसेकर ने जवाब दिया, टीम वर्क से ही बीजेपी जीतेगी. मनोहर पर्रिकर, श्रीपदजी और प्रधानमंत्री मोदी की छवि से पार्टी को फायदा होगा. पारसेकर मोदी सरकार को गोवा में पुल के लिए 300 करोड़ का फंड जारी करने पर शुक्रिया अदा करने से नहीं चूकते हैं.

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर गोवा की राजनीति को छोड़कर दिल्ली नहीं आना चाहते थे

एंटी-इनकमबेंसी फैक्टर

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पर्यावरण सहित कुछ वादे जनता से किए थे. इस कड़ी में अवैध खनन पर रोक लगी, लेकिन कुछ फैसले अभी भी अटके हुए हैं. ऐसे में पारसेकर का कहना है कि सरकार ने विकास और पर्यावरण को लेकर संतुलित रवैया अपनाया है.

दूसरा सबसे अहम मुद्दा है कैथोलिक चर्च और बीजेपी के साथ रिश्ते का. पांच साल पहले मनोहर पर्रिकर ने भ्रष्टाचार और पर्यावरण का मसला उठाकर कांग्रेस को मजबूती से घेरा था. इस वजह से चर्च का भी बीजेपी को साथ मिला था.

जब उन अधूरे चुनावी वादे और विपक्ष के कैंपेन- 'यू-टर्न गवर्नमेंट' के बारे में पूछा गया तो पारसेकर ने दावा किया कि अधिकतर चुनावी वादे पूरे कर लिए गए हैं. एक-दो चीजें ऐसी हैं, जो हम पूरा नहीं कर पाए.

(फोटो: फेसबुक से साभार)

अपनी उपलब्धियों का जिक्र करते हुए पारसेकर बेहद उत्साहित हो जाते हैं. खासकर हेल्थ इंश्योरेंस कवर को लेकर, जिसका तो चुनावी घोषणापत्र में भी जिक्र नहीं था. इसमें हर परिवार को चार लाख रुपए का बीमा कवर है. बीमा की राशि सरकार अदा करती है. बाद में इस स्कीम को भारतीय जनसंघ के दिग्गज नेता दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर कर दिया गया.

हालांकि, सियासी धरातल पर बीजेपी की इस हेल्थ स्कीम का कोई खास फायदा नजर नहीं दिखता. यहां तक कि पारसेकर की विधानसभा सीट मेंड्रम में भी कोई इस पर बात करते नहीं मिला. यह कुछ हालिया अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की तर्ज में बेहद चर्चित ओबामा हेल्थकेयर जैसा है.

चुनावी लड़ाई

वैसे लक्ष्मीकांत पारसेकर के लिए इस बार चुनावी लड़ाई बेहद अहम है. यही वजह है कि वह अपनी ही विधानसभा क्षेत्र मेंड्रम में अच्छा-खासा वक्त गुजार रहे हैं. कभी-कभी तो रात 11 बजे तक. उन्हें पता है, इस बार की लड़ाई आर-पार की है.

इस बार आम लोगों में चुनाव को लेकर कोई खास उत्साह भी नहीं है. किसी भी दल के चुनाव प्रचार में वो जोश नहीं दिख रहा है. सिर्फ आम आदमी पार्टी के जुलूस में ठीक-ठाक प्रचार देखने को मिला, जिनमें कुछ गाड़ियों पर 'आप' के कार्यकर्ता हुंकार भर रहे थे.

(फोटो: फेसबुक से साभार)

सियासी सफर के बारे में लक्ष्मीकांत पारसेकर 1980 को याद करते हैं जब उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी. इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार चुनाव जीतते गए. इसमें तीन बार मंड्रेम लगातार विधानसभा सीट से जीत भी शामिल है. मंड्रेम में पारसेकर की सबसे बड़ी उपलब्धि सियोलिम, मोरजिम और अराम्बोल को पुल से जोड़ना है. इससे यहां पर्यटन को नई उड़ान मिली.

ऐसे में लक्ष्मीकांत पारसेकर के सामने गोवा में बीजेपी की जीत के अलावा खुद को चौथी बार मेंड्रम में फतह करना भी है. वैसे इस बार सियासी मुश्किलें कुछ ज्यादा ही है. कांग्रेस पारसेकर को घेरने के लिए पूरी कोशिश में है. महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी और आम आदमी पार्टी भी पूरा जोर लगा रही है. इसका फैसला 11 मार्च को हो ही जाएगा, जब वोटों की गिनती होगी.