view all

गुजरात चुनाव 2017: गांधीनगर के आर्चबिशप की चिट्ठी बीजेपी के खिलाफ ध्रुवीकरण की ओछी कोशिश

चर्च जिस घटिया तरीके से मोदी और बीजेपी के खिलाफ सामने आया है उससे अब यह संभावना है कि बीजेपी ईसाई चर्च का जिक्र बिना किसी दुराव-छुपाव के करेगी

Sanjay Singh

गुजरात के चुनावी अखाड़े में चल रही उठा-पटक की कवायद एकबारगी हद दर्जे की सांप्रदायिक हो गई है. गांधीनगर के आर्चडायोसेस (प्रधान पादरी) आर्चबिशप थॉमस मैकवॉन ने 'देश पर हुकूमत कायम' करने से रोकने की बात कहते हुए 'राष्ट्रवादी ताकतों' (बीजेपी) को हराने का निर्देश जारी किया है. निर्देश के मुताबिक 'गुजरात विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव के नतीजों से बहुत फर्क पड़ता है.'

इसके बाद निर्देश में कहा गया है कि चर्च को ईसाई धर्म पर आस्था रखने वाले लोगों के मतदान के पैटर्न पर असर डालने के लिए हर मुमकिन कोशिश करनी होगी ताकि कांग्रेस की जीत पक्की की जा सके. हालांकि निर्देश में यह बात संकेत के रूप में कही गई है. सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया है. चर्च ने जो निर्देश जारी किया है उसमें कांग्रेस के उम्मीदवार का संकेत करने के लिए कहा गया है— ‘वह जो भारत के संविधान पर विश्वास करे और बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य का सम्मान करता हो.'


जब फर्स्टपोस्ट ने आर्चबिशप से फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने स्वीकार कि यह चिट्ठी मैंने ही लिखी है और कहा, 'जब भी चुनाव होते हैं हम, लोगों के दिशा-निर्देश के नाते चिट्ठी लिखते हैं. मेरे मन में किसी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है.' उन्होंने कहा कि 'राष्ट्रवादी ताकतों' से उनका आशय बीजेपी से कत्तई नहीं है लेकिन उन्होंने 'राष्ट्रवादी ताकत' की परिभाषा करते हुए कहा कि जो लोग देश और उसके संविधान की रक्षा करते हैं उनकी तुलना में ऐसे लोग बड़ी संकुचित सोच के होते हैं.

फर्स्टपोस्ट ने उनसे पूछा कि क्या आप कांग्रेस को देश और संविधान की रक्षा करने वाली पार्टी मानते हैं या फिर आप मोदी की गिनती अपने 'राष्ट्रवादी ताकतों' में करते हैं तो उनका जवाब था कि मैं किसी पार्टी या व्यक्ति का नाम नहीं ले रहा, मैं तो बस इन चुनावों में सही आदमी और अच्छा नेता चुनने की अपील कर रहा हूं. आर्चबिशप यह भी नहीं मानते कि उनकी चिट्ठी सांप्रदायिक तेवर वाली है. उनका मानना है कि चिट्ठी उनके धर्मोपदेश का ही हिस्सा है.

देश की मौजूदा राजनीति में किसे 'राष्ट्रवादी ताकत' कहकर पुकारा जाता है, यह बात सभी जानते हैं सो इसपर विवाद की कोई गुंजाइश नहीं है. यह बात यकीनी तौर पर कही जा सकती है कि राष्ट्रवादी ताकत शब्द का इस्तेमाल सोनिया गांधी-राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस के लिए कभी नहीं किया गया.

आखिर चिट्ठी में लिखा क्या है?

यहां पहले जरूरी होगा ये जानना कि गांधीनगर के आर्चबिशप थॉमस मैकवॉन ने 'इमिनेन्सेज, ग्रेसेज एंड लॉर्डशिप्स (स्वनामधन्य, महामना और महाशय)' के संबोधन के साथ लिखी चिट्ठी में कहा क्या है. चिट्ठी में आता है:

'गुजरात चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है. इस चुनाव के नतीजे बड़े अहम हैं और उनका अच्छा-बुरा असर हमारे प्यारे मुल्क पर दूर-दूर तक पड़ेगा. इस चुनाव के नतीजे हमारे देश का भविष्य तय करेंगे. हम जानते हैं कि देश का धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताना-बाना दांव पर लगा है. मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. संविधान ने जो अधिकार दिए हैं उन्हें कुचला जा रहा है. कोई भी एक दिन ऐसा नहीं गुजरता जब हमारे चर्च, चर्च के कर्मचारियों, ईसा के धर्म पर आस्था रखने वालों या हमारी संस्थाओं पर हमला ना हो. अल्पसंख्यकों, ओबीसी (अन्य पिछड़ी जातियों), पिछड़ी जातियों (बीसी), गरीब आदि में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है. राष्ट्रवादी ताकतें देश को अपनी मुट्ठी में कर लेने के हद तक आ पहुंची हैं. गुजरात विधानसभा के चुनाव के नतीजों से पक्के तौर पर फर्क पड़ सकता है.'

चिट्ठी में आर्चबिशप सिर्फ ईसाइयों से ही नहीं बल्कि अल्पसंख्यकों, ओबीसी, बीसी तथा गरीबों से कांग्रेस के पक्ष में और बीजेपी के विरोध में आश्वासन चाह रहे हैं. उन्हें जरा भी भान नहीं है कि इससे मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो सकता है, हालत बहुसंख्यक (हिन्दू) बनाम अल्पसंख्यक (मुसलमान-ईसाई) की हो सकती है. आर्चबिशप अपनी चिट्ठी में यह कहते हुआ जान पड़ते हैं कि देश में सिर्फ सवर्ण और धनी लोग ही सुरक्षित हैं और वही राष्ट्रवादी ताकतों के समर्थक हो सकते हैं. आर्चबिशप ने एक सीधा-सरल फार्मूला बनाकर लोगों को आगाह किया है कि उन्हें किसको वोट देना है.

चिट्ठी में कहा गया है: ‘गुजरात सूबे के आर्चबिशप आपसे विनती करते हैं कि आप अपने गिरजों और कान्वेंट में प्रेयर (प्रार्थना-सभा) का आयोजन करें ताकि हमलोग गुजरात विधानसभा के लिए ऐसे लोगों को चुन सकें जो भारतीय संविधान के विश्वासी हों और हर मनुष्य का बिना किसी भेदभाव के सम्मान करते हों.’

राष्ट्रवादी ताकतों को दोरोर रखने की बात कही

आर्चबिशप ने यह भी कहा है कि चर्च ने किस तरह पूरी दुनिया को संकट से उबारा है और अब वक्त गुजरात तथा भारत को बचाने का है. पत्र के मुताबिक: ‘व्यक्ति, परिवार, समुदाय और गिरजाघर के दायरे में पवित्र पुस्तक के पन्नों का पाठ करना बहुत मददगार साबित होगा. पवित्र पन्नों का पाठ हमेशा से सुरक्षा-कवच जैसा साबित हुआ है. इतिहास इस बात का गवाह है. पवित्र पन्नों के पाठ ने लेपान्टो की लड़ाई में युरोप को बचाया था, तब यूरोप पर विधर्मी कब्जा करना चाहते थे. बीते वक्त में बहुत से देशों में कम्युनिस्ट सरकारें और तानाशाह माता मरियम के हिफाजती हाथों के असर से धराशाई हुए हैं. पवित्र पन्नों के पाठ के कारण पोलैंड में गर्भपात की घटनाएं 30 फीसद से घटकर 4 प्रतिशत पर आ गई हैं. पवित्र पन्नों का पाठ हमारे देश की भी राष्ट्रवादी ताकतों से हिफाजत करेगा!’

‘यहां तक कि गेटसेमनी के बागीचे में प्रार्थना करते वक्त हमारे पैगम्बर ने भी अपने शिष्यों से नजर रखने और प्रार्थना करने के लिए कहा. आइए, हम अपने मसीहा की सलाह पर पूरी संजीदगी से अमल करें. आईए, हम प्रभु ईशू पर ईमान लाएं और उनसे मदद मांगे! हम माता मरियम को अपने हृदय में रखें क्योंकि हमें उनका बहुत सहारा है!”

जो लोग ईसाई धर्म की मान्यताओं से परिचित नहीं और गेटसेमनी के बगीचे में प्रभु ईशू की प्रार्थना की अहमियत से अनजान हैं उन्हें नीची लिखी बातों पर गौर करना चाहिए.

गेटसेमनी का बागीचा येरुशलम में माऊट ऑफ ऑलिव की ढलान पर है. सूली पर चढ़ाए जाने से ऐन पहले की रात ईसा मसीह अपने शिष्यों के साथ इसी जगह पर गए और प्रार्थना की थी. इसी जगह ईसा मसीह और उनके शिष्य अक्सर रात में डेरा डालते थे. माना जाता है कि इस कुदरती गुफा में ईसा मसीह ने प्रार्थना की और उनके शिष्य सोए हुए थे.

पीएम मोदी और अमित शाह के खिलाफ जहर उगलती है यह चिट्ठी

बीते 21 नवंबर को जारी किए गए निर्देश या कह लें कि चिट्ठी अपने नजरिए में साफ तौर पर सांप्रदायिक है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अगुवाई वाली बीजेपी (चिट्ठी में सांकेतिक तौर पर राष्ट्रवादी ताकत जैसे शब्द का प्रयोग किया गया है) के खिलाफ यह चिट्ठी जहर उगलती है. गुजरात के बारे में पहले से ही धारणा बनी चली आ रही है वहां का मिजाज सांप्रदायिक है. ऐसे में जाहिर है, चिट्ठी निश्चित ही बहुसंख्यक हिन्दुओं के मन में आक्रोश पैदा करेगी.

यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि बीजेपी इसे अपने चुनाव-अभियान में बड़ा मुद्दा बनाएगी. साल 2002 में मोदी ने तब के मुख्य चुनाव आयुक्त जेम्स माइकल लिंगदोह का पूरा नाम लिया था. बीजेपी का आरोप था कि दंगों के बाद के वक्त में हुए गुजरात चुनाव को लिंगदोह ने जानते-बूझते रोककर रखा ताकि वे अपने समधर्मी सोनिया गांधी और उनकी पार्टी को फायदा पहुंचा सकें. लेकिन तब जनसभाओं में जेम्स माइकल लिंगदोह का जिक्र या उनके ऊपर टीका-टिप्पणी इशारे-इशारे में हुआ करती थी.

भले सीधे तौर पर नाम ना लिया गया हो लेकिन चर्च जिस घटिया तरीके से मोदी और बीजेपी के खिलाफ सामने आया है उससे यह संभावना बलवान होती है कि कांग्रेस और राहुल गांधी को निशाने पर लेते समय बीजेपी ईसाई चर्च का जिक्र बिना किसी दुराव-छुपाव के एकदम सीधे साफ लफ्जों में करेगी.

गुजरात के 2017 के चुनाव को लेकर बीजेपी जो चाहती थी वह आर्चबिशप थॉमस मैकवॉन की चिट्ठी और कांग्रेस के युवा-वाहिनी के ट्वीट जिसमें मोदी को चायवाला बताया गया था, ने कर दिखाया था. चुनावी माहौल पर अब भावनाओं की रंगत जोर मारने लगी है. गुजरात और शेष भारत अब दम साधे उस घड़ी के इंतजार में है जब आने वाले कुछ दिनों में नरेंद्र मोदी अपने राज्य में पहली चुनावी सभा को संबोधित करेंगे.