view all

बीजेपी-शिवसेना की दोस्ती का युग का अंत !

शिवसेना ने बीजेपी से अलग होकर बीएमसी और भविष्य के सभी चुनाव लड़ने का ऐलान किया है

Amitesh

शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने मुंबई में एक रैली के दौरान बीजेपी के साथ 22 साल पुराने अपने गठबंधन को तोड़ने का ऐलान कर दिया. उद्धव ठाकरे ने कहा ‘शिवसेना के 50 साल के इतिहास में 25 साल गठबंधन के चलते बर्बाद हो गए हैं. हम सत्ता के लालची नहीं हैं. बीजेपी के पास हमारे सैनिकों से लड़ने की चुनौती नहीं है. इसलिए उन्होंने गुंडों को काम पर रखा है. लड़ाई अब शुरू हो चुकी है’.

बीजेपी के साथ अपने बरसों पुराने रिश्ते को लेकर उद्धव ठाकरे पाश्चाताप करते दिख रहे हैं. शायद इस दर्द को भुला नहीं पा रहे है कि जो बीजेपी राज्य में अबतक उनकी पिछलग्गू बनकर रहती थी, अब उनको ही पिछलग्गू बनने पर मजबूर कर रही है.


लेकिन, अब बहुत हुआ. कम से कम उद्धव के बयान से तो यही लगता है. बीजेपी के खिलाफ एक नए जंग का ऐलान कर शिवसेना अध्यक्ष ने अपने शिवसैनिकों को संदेश दे दिया है कि वो बृहन्मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी के चुनाव के लिए तैयार हो जाएं.

मुंबई में बीएमसी चुनाव से ठीक पहले एक बैठक को संबोधित करते उद्धव ठाकरे (फोटो: पीटीआई)

लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर बेहतर प्रदर्शन करने वाली शिवसेना को जिस तरह से विधानसभा चुनाव में बीजेपी से मुंह की खानी पड़ी. उसके बाद शिवसेना के लिए बीएमसी पर अपनी पकड़ बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती है. इसके लिए ही उद्धव ठाकरे ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया है.

इस बार उद्धव के लिए भी यह लड़ाई बड़ी है. उद्धव ठाकरे इस बात को समझ रहे हैं कि बाला साहब ठाकरे के नहीं रहने के बाद शिवसेना को मजबूत बनाए रखना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है और अगर बीएमसी पर कब्जा नहीं रहा तो फिर हाथ से सबकुछ फिसल जाएगा.

बीएमसी में 1997 से है गठबंधन

शिवसेना और बीजेपी का 1997 से ही बीएमसी चुनाव के लिए गठबंधन है. तब से दोनों ही दलों का गठबंधन लगातार बीएमसी की सत्ता पर काबिज है. लेकिन, इस दौरान शिवसेना की ताकत घटी है.

227 सदस्यों वाली बीएमसी में शिवसेना के पास 1997 में जहां 103 सीटें थी. वहीं, 2012 में ये घटकर महज 75 रह गई है. पिछली बार यानि 2012 में बीजेपी के पास 31 सीटें थी. बीजेपी ने 65 सीटों पर चुनाव लड़ा था. शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर बीएमसी पर कब्जा किया था.

आखिर गठबंधन में दरार क्यों

बीएमसी का सालाना बजट लगभग 38000 करोड़ रूपए का है. यह बजट कई राज्यों के बजट से भी ज्यादा है. ऐसे में बीएमसी पर सभी पार्टियों की नजर रहती है. शिवसेना ने लगातार बीएमसी पर अपना कब्जा रखा है लेकिन, पहले केंद्र और फिर महाराष्ट्र की सत्ता में आई बीजेपी की नजरें अब बीएमसी पर आ टिकी हैं जिसे शिवसेना किसी भी सूरत में पचाने को तैयार नहीं है.

(फोटो: फेसबुक से साभार)

इसकी झलक सीटों के बंटवारे के फेल होने से भी पता चलता है. बीजेपी शिवसेना से इस बार 227 में से 114 सीटें यानि लगभग आधी सीटें मांग रही थीं. बीजेपी की तरफ से लोकसभा और विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन का हवाला देकर ज्यादा सीटों की मांग की जा रही थी.

खासतौर से बीजेपी शिवसेना से उन 40 सीटों की मांग कर रही थी जहां पहले से शिवसेना के पार्षद हैं. लेकिन, शिवसेना बीजेपी को किसी भी हालत में 60 से अधिक सीटें देने को राजी नहीं थी.

इस खींचतान से नाराज होकर आखिरकार उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से अलग लड़ने का ऐलान कर दिया.

21 फरवरी को बीएमसी के चुनाव होने हैं. इसके अलावा पुणे, नासिक, कोल्हापुर और नागपुर में भी स्थानीय निकाय के चुनाव हैं. इन सभी जगहों पर अब पुराने सहयोगी एक-दूसरे के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते रहेंगे.

दोस्ती में दरार तो पहले से थी

उद्धव ठाकरे का ये फैसला अचानक नहीं लिया गया है. इसकी पटकथा लंबे वक्त से लिखी जा रही थी.

गठबंधन के अच्छे दिनों में देवेंद्र फडणवीस और उद्धव ठाकरे एक साथ

दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी की ताकत में काफी इजाफा हुआ. पार्टी के रणनीतिकारों को लगा कि यही सुनहरा मौका है जब शिवसेना को बैकफुट पर धकेला जाए. लिहाजा बीजपी ने अपनी रणनीति बदली और विधानसभा चुनाव के वक्त पहले से नंबर वन पार्टनर रही शिवसेना पर दबाव बनाना शुरू कर दिया.

बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के वक्त शिवसेना पर अधिक सीटों का दबाव बनाना शुरू कर दिया था. 288 सदस्यों वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के वक्त बीजपी 132 सीटों की मांग कर रही थी. लेकिन, उस वक्त भी शिवसेना बीजेपी को 2009 के चुनावी फॉर्मूले के मुताबिक सीटें देना चाह रही थी.

2009 में शिवसेना ने 171 और बीजेपी ने 117 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन, बीजेपी की जिद के आगे शिवसेना झुकती नजर नहीं आई और अंत में बीजेपी ने अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया.

विधानसभा चुनाव के नतीजों में बीजेपी को 122 सीटें मिली और शिवसेना को 63. बीजेपी बहुमत से दूर रह गई थी. ऐसे में शिवसेना बीजेपी के साथ तोल-मोल कर सरकार में बड़ी हिस्सेदारी का दबाव बना रही थी.

शरद पवार ने समर्थन ऑफर कर दांव खेला

लेकिन, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के बयान ने शिवसेना की उम्मीदों को झटका दे दिया था. शरद पवार ने बीजेपी को समर्थन देने की बात कर ऐसा दांव खेला जिसमें शिवसेना को बीजेपी की शर्तों पर सरकार में शामिल होना पड़ा. शिवसेना फिलहाल केंद्र की सत्ता में भी हिस्सेदार है.

शिवसेना-बीजेपी के गठबंधन में दरार की एक वजह शरद पवार भी बताए जाते हैं (फोटो: फेसबुक से साभार)

अब सबकुछ बीएमसी चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा. चुनाव बाद ही शिवसेना अपनी ताकत का आकलन कर प्रदेश और केंद्र की बीजेपी सरकार को लेकर कोई फैसला करेगी. लेकिन चुनाव तक शिवसेना का बीजेपी के उपर हमले का दौर जारी रहने वाला है.