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गायत्री प्रजापति का 'महामंत्र': पैसे से सब हासिल हो सकता है फिर जमानत क्या चीज है?

प्रजापति ने जिस रफ्तार से बीपीएल से बीएमडब्ल्यू तक का सफर किया, उनकी रफ्तार राजनीति में भी कुछ वैसी ही रही

Kinshuk Praval

यूपी में अखिलेश सरकार में खनन मंत्री रहे गायत्री प्रजापति विवादों की खान हैं. पहले रेप के मामले में सलाखों के पीछे गए और फिर रिश्वत देकर जमानत पर छूटे.हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी जमानत रद्द कर दी थी और जमानत देने वाले जज को भी निलंबित कर दिया था लेकिन मामले में नया पेंच ये है कि गायत्री प्रजापति ने जमानत के लिये 10 करोड़ की रिश्वत बांटी थी जिससे जमानत मामले में नया विवाद खड़ा हो गया है. इलाहबाद हाईकोर्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक गायत्री प्रजापति को 10 करोड़ रुपये के एवज मे जमानत देने की डील तय हुई थी.

5 लोगों में बंटे थे 10 करोड़ रुपये


दरअसल एक मां के गैंगरेप और बेटी के यौन शोषण के आरोपी गायत्री प्रजापति गिरफ्तार होने से पहले पुलिस के साथ कई दिनों तक लुकाछिपी करते रहे. बढ़ते दबाव के बाद जब उनकी गिरफ्तारी हुई तो बाद में जमानत के लिये दस करोड़ की डील का मामला सामना आया है.

पोक्सो जज जस्टिस ओ पी मिश्रा ने गायत्री प्रजापति को जमानत दी थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले की रिपोर्ट के मुताबिक ओपी मिश्रा ने नियमों की अनदेखी की. रिपोर्ट के मुताबिक 5 करोड़ रुपये पोक्सो जज ओपी मिश्रा और जिला जज राजेंद्र सिंह को दिये गए जबकि 5 करोड़ तीन वकीलों में बंटे.

मिश्रा रिटायर होने से 3 हफ्ते पहले ही प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस के जज के रुप में नियुक्त हुए थे. 25 अप्रैल को उनकी कलम ने प्रजापति की जमानत पर मुहर लगा दी.

मिश्रा को अचानक बना दिया पोक्सो जज

जस्टिस भोसले की रिपोर्ट के मुताबकि 18 जुलाई 2016 को पोक्सो जज लक्ष्मीकांत राठौड़ की नियुक्ति की गई थी. लेकिन अचानक उन्हें हटाकर 7 अप्रैल 2017 को ओपी मिश्रा की पोस्को जज के रूप में नियक्ति कर दी गई. गायत्री जमानत और उनके गैंगरेप में पांच शामिल साथियों पर रेप के अलावा पोक्सो एक्ट भी दर्ज किया गया था.

30 अप्रैल को रिटायर होने वाले जज ओ पी मिश्रा को गायत्री प्रजापति को जमानत देने के मामले में निलंबित कर दिया गया. दरअसल यूपी की योगी सरकार ने प्रजापति को जमानत देने के फैसला का विरोध करते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी.

गायत्री प्रजापति पर इससे पहले छेड़छाड़ का भी एक मामला लखनऊ में दर्ज हुआ था. जिस मामले में 12 मई को उन्हें न्यायायिक हिरासत में भेजा गया था.

पैसे के जोर पर कुछ भी कर सकने की हनक

दरअसल अकूत संपत्ति, अथाह पैसा, खनन से अंधाधुंध कमाई ने गायत्री प्रजापति को इतना बेखौफ और बेलगाम कर दिया था कि वो ये समझने लगे थे कि समूचा सरकारी तंत्र उनकी मुट्ठी में है.

इसकी बड़ी वजह वो हकीकत थी जिसने गायत्री प्रजापति को अपनी बदगुमानी को बढ़ाने का मौका और हौसला दिया. पैसे के इस्तेमाल ने गायत्री प्रजापति को न सिर्फ यूपी का सबसे ताकतवर मंत्री बना गया बल्कि मुलायम परिवार के बेहद करीब भी ले गया.

विडंबना देखिये कि मुलायम परिवार में एक लड़ाई गायत्री प्रजापति पर वर्चस्व की भी थी. यादव परिवार की महाभारत की शुरुआत ही गायत्री प्रजापति की बर्खास्तगी के साथ शुरु हुई थी. बाद में मुलायम-शिवपाल के दबाव के चलते अखिलेश को गायत्री प्रजापति को वापस मंत्री भी बनाना पड़ा.

अमेठी में चुनाव जीतने के बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा

लेकिन गायत्री प्रजापति के अरबपति बनने की कहानी शुरु होती है अमेठी से. अमेठी का विधानसभा चुनाव गायत्री प्रजापति की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट रहा. अमेठी में संजय सिंह की पत्नी अमिता सिंह को प्रजापति ने चुनाव हरा कर सबको चौंका दिया. कहते हैं कि अमेठी के टिकट के लिये प्रजापति ने 25 लाख  रुपये दिये थे. इस जीत पर उन्हें ईनाम के तौर पर सिंचाई राज्य मंत्रालय मिला. लेकिन बाद में मुलायम-शिवपाल की मेहरबानी से उन्हें खनन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार मिल गया. करीब छह महीने बाद ही अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बन गए.

गायत्री प्रजापति पर किस्मत इस कदर मेहरबान हुई कि कभी प्रॉपर्टी डीलर का काम करने वाले प्रजापति समूचे यूपी में अवैध खनन के जरिये अकूत संपत्ति के मालिक बन गए. सियासत की ऊंचाई चढ़ने वाले गायत्री प्रजापति पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने शुरु हुए तो सरकारी जमीन बेचने से लेकर अवैध कब्जे की शिकायतें भी सामने आईं.

जिस गायत्री प्रजापति के पास साल 2002 में विधानसभा का चुनाव लड़ते समय 91,436 की संपत्ति थी वही गायत्री प्रजापति साल 2012 को चुनाव में एक करोड़ 81 लाख का हलफनामा दाखिल करते हैं. यूपी लोकायुक्त में गायत्री प्रजापति के खिलाफ दर्ज शिकायत में आरोप लगा कि उनके पास हजार करोड़ रुपये की संपत्ति है.

हाल ही में सरकारी जमीन पर कब्जा कर बनाई उनकी एक इमारत पर बुलडोज़र चला. ये तो सिर्फ बानगी भर है. गायत्री प्रजापति के कर्मकांड, उनका मैन मैनेजमेंट और मुखियाओं को खुश रखने की कला उन्हें सबसे अलग बनाती है. उनके व्यवहार का कौशल ही तमाम भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद उन्हें  मुलायम-शिवपाल-अखिलेश का करीबी बना गया जहां वो ‘सबके काम के खास आदमी थे’.

कभी जिस अखिलेश ने दुत्कारा था वो आज करीबी

गायत्री प्रजापति की अकूत संपत्ति भी सत्ता के गलियारे में फिल्मी कहानी सी चली है. सिर्फ दस साल की राजनीति में वो बीपीएल से बीएमडब्लू की सवारी बन गए. अगले पांच साल में उनका सियासी कद उनकी संपत्ति की तरह ही इस कदर बढ़ा कि वो प्यादे से बादशाह के दस्तरखान तक पहुंच गए. जिस मंच पर अखिलेश ने गायत्री प्रजापति को दुत्कारा था वही अखिलेश अमेठी की रैली में उनके लिये वोट मांग रहे थे.

कहा ये भी जाता है कि गायत्री प्रजापति से मुलायम परिवार की नजदीकी की बड़ी वजह अवैध खनन की काली कमाई है. माना जाता है कि सोनभद्र जिले के पत्थर खनन के कारोबार की सालाना कमाई ही पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा है. सोनभद्र में हजारों हैक्टेयर जंगलों की कटाई हुई तो नदियों से रेत के खनन ने हर महीने हजारों ट्रक रेत की निकासी की.

गायत्री ने कारपोरेट की तरह एक नियोजित तरीके से सूबे में अवैध खनन से खजाना बनाया. जिसने उनकी पांचों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में भर दिया. यही वजह रही कि यूपी में वो पहले मंत्री हैं जिन्होंने चार बार शपथ ली. आय से अधिक मामले के आरोपों के बावजूद गायत्री प्रजापति को राज्य मंत्री बनाया गया तो बाद में कैबिनेट मंत्री.

हेलीकाप्टर से हवालात तक सफर किया

कभी बीपीएल कार्ड धारक रहे गायत्री प्रजापति समाजवादी पार्टी के लिये धनकुबेर की तरह रहे हैं. उनके सियासी रसूख का वजन देखिये कि चुनाव प्रचार में हेलीकॉप्टर तक मिला हुआ था. लेकिन आज सलाखों के पीछे गायत्री प्रजापति हैं और पीड़ित परिवार को इंसाफ का इंतजार है.

कहा जा सकता है कि फर्श से अर्श का सफर करने वाले रंक से राजा बने गायत्री प्रजापति अब जिंदगी के उस मुहाने पर हैं जहां 9 साल की कैद उन्हें मिल सकती है. पोक्सो एक्ट की सजा उनके सियासी करियर को खत्म कर सकती है. लेकिन 15 साल में इस शख्स ने जिस तरह से पैसा कमाया वो हमेशा किसी पहेली सा अबूझ रहेगा.