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आयुष्मान भारत की सफलता के लिए MCI भंग करना था जरूरी

एमसीआई पर लगाम कसकर सरकार ने जताया कि आयुष्मान भारत को सफल बनाने में वो कोई कसर नहीं छोड़ेगी

Pankaj Kumar

आयुष्मान भारत स्कीम 25 सितंबर को सरकार द्वारा लॉन्च किया जा चुका है. इसमें 10 करोड़ परिवार को पांच लाख प्रति परिवार प्रति वर्ष स्वास्थ बीमा मुफ्त में दिए जाने का प्रावधान है. ये दुनिया का सबसे बड़ा हेल्थ बीमा स्कीम है जिसके तहत डेढ़ लाख वेलनेस सेंटर खोले जाने की योजना है.

ये वेलनेस सेंटर देश के सुदूर इलाकों में खोला जाना है जहां तक प्राथमिक चिकित्सा पहुंचाए जाने की योजना सर्वविदित है. इस योजना को मोदीकेयर की संज्ञा भी दी गई है. जाहिर है इस महत्तवाकांक्षी योजना को जमीन पर उतारना सरकार के लिए किसी विशेष चुनौती से कम नहीं है.


भारतीय स्वास्थ व्यवस्था की अपनी कई चुनौतियां हैं. एक चुनौती देश में डॉक्टर्स की किल्लत भी है. विश्व स्वास्थ संगठन के मानक पर भारत काफी दूर खड़ा है. मानक के मुताबिक एक हजार की आबादी पर 1 डॉक्टर होना चाहिए जबकि हमारे देश में 1700 की आबादी पर भी एक डॉक्टर मयस्सर नहीं है.

आंकड़ों के मुताबिक देश 20 लाख डॉक्टर्स और 40 लाख नर्स की कमी से जूझ रहा है. एमसीआई और स्टेट मेडिकल काउंसिल में दर्ज रिकॉर्ड के मुताबिक 10,22,859 डॉक्टर्स जुलाई 2017 तक रजिस्टर्ड हैं. आरोग्य भारत के आंकड़े पर गौर फरमाएं तो 2039 तक हमें डॉक्टर्स की कमी को झेलना ही पड़ेगा.

शहर के मुकाबले गांवों की स्थिति और भी बदत्तर

इतना ही नहीं भारत के गांवों की हालत और भी बद से बदत्तर है. भारत की 70 फीसदी आबादी गांवों में बसती है.जबकि देश में मौजूद कुल अस्पताल, बेड की संख्या और डॉक्टर्स की संख्या का एक तिहाई हिस्सा भी गांव के लोगों को नसीब नहीं हो पाता. शहर और गांव के बीच इतनी बड़ी असमानता आयुष्मान भारत की सफलता के लिए बड़ी चुनौती है जिसे पाट पाना सरकार के लिए अत्यंत चुनौती भरा है.

जाहिर है 1934 में इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट के तहत स्थापित हुई एमसीआई अपनी जिम्मेदारी के निर्वाह में बेहद असफल रही है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्यूंकि ये एक स्वायत्त संस्था थी और इसकी जिम्मेदारी स्वास्थ्य शिक्षा को रेगुलेट करने की थी. इसके तहत मेडिकल कॉलेज को सीट्स निर्गत करना, उसको मान्यता प्रदान करना और डॉक्टर्स के प्रैक्टिस से लेकर तमाम अन्य पहलूओं पर नजर रखना जिससे देश का हेल्थ केयर बेहतरीन हो सके.

लेकिन गुणवत्ता और मात्रा दोनों मामलों में एमसीआई बार बार विफल रही और इसे भ्रष्ट रेगुलेट्री संस्था के रूप में जाना जाने लगा. इसी गुणवत्ता और मात्रा की समस्या को हल करने के लिए सरकार ने संसदीय समिति की सलाह पर नेशनल मेडिकल कमीशन बिल लाने का प्रस्ताव रखा तो एमसीआई और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एनएमसी बिल के कई प्रस्तावों को लेकर घनघोर आपत्ती जाहिर की.

इसमें मुख्य तौर पर आयुष प्रैक्टिशनर को लिमिटेड दवा लिखने की छूट देने की बात थी. जिन्हें 6 महीने की बेसिक फार्माकोलॉजी की ट्रेनिंग के बाद प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर लिमिटेड प्रेक्टिस की आजादी होती है.

लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) और एमसीआई (MCI ) ने विरोध जताकर सरकार को बचाव मुद्रा में ला कर खड़ा कर दिया. इस ब्रिज कोर्स के जरिए सरकार 6 लाख आयुष प्रेक्टिशनर को सुदूर इलाकों में भेजकर गांव के बुनियादी स्वास्थ सुधार में आमूल चूल परिवर्तन कर प्राइमरी हेल्थ सेंटर को सुधारने की योजना थी.

लेकिन विरोध के बाद बिल में संशोधन कर सरकार ने कहा कि मॉडर्न मेडिसीन के प्रेक्टिशनर जैसे ट्रेंड नर्स और फॉर्मासिस्ट को लिमिटेड एलोपैथी प्रेक्टिस करने की छूट दी जानी चाहिए और बिल में हेल्थ को राज्य का विषय बताकर राज्यों पर छोड़ा गया कि वो अपने राज्य की जरूरतों के मुताबिक इस पर ध्यान दें.सरकार के इस सुझाव के लिए क्या रास्ते अख्तियार किए जाएं इसको लेकर वर्तमान बोर्ड ऑफ गवनर्स को सही फैसला लेना किसी चुनौती से कम नहीं होगा.

कहा जा रहा है आने वाले समय में आईएमए का रुख सरकार विरोधी होगा

सरकार द्वारा चुने गए सात सदस्य जो बोर्ड ऑफ गवनर्स के सदस्य हैं वो आयुष्मान भारत की सफलता के लिए वो तमाम मार्ग प्रशस्त करेंगे जिसके जरिए 'मोदीकेयर' योजना को सफलता मिल सके. और यूनिवर्सल हेल्थ केयर की योजना को अमली जामा पहनाया जा सके.

भंग हो चुके एमसीआई के प्रशासनिक और एथिक्स कमेटी के चेयरमैन रह चुके डॉ अजय कुमार  फर्स्टपोस्ट से कहते हैं 'एमसीआई में रिफॉर्म की जरूरत थी इससे इंकार नहीं किया जा सकता. और जो लोग बोर्ड ऑफ गवनर्स चुने गए हैं उनके चयन का स्वागत करते हैं लेकिन ये ऑर्डिनेंस तो 6 महीने के लिए है. इसके बाद अगर एनएमसी लाया गया तो वो मेडिकल एजुकेशन के लिए घातक सिद्द होगा.'

डॉक्टर अजय कहते हैं कि मेडिकल प्रेक्टिस का कैटेगराइजेशन करना गांव और शहर के लेवल पर घातक कदम होगा. गांव के लोगों का इलाज आयुष प्रेक्टिशनर करें और शहर के लोगों का ईलाज एमबीबीएस डॉक्टर्स करें. इससे बुरा कुछ हो नहीं सकता.

वैसे कई डॉक्टर्स के मुताबिक इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पर पकड़ उन्हीं ग्रुप का है जिनका वर्चस्व एमसीआई पर पिछले 30 सालों से है और आयुष्मान भारत की सफलता के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कॉपरेशन बेहद जरूरी है.

कहा जा रहा है कि आने वाले समय में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) का रुख सरकार विरोधी होगा और इस विरोध का असर आयुष्मान भारत की सफलता पर भी पड़ेगा.

लेकिन एमसीआई की पूर्व सेक्रेट्री और इभास इंस्टीच्यूट की प्रोफेसर डॉ संगीता शर्मा का मानना है कि सरकार पूरी प्रतिबद्धता के साथ अपना कदम आगे बढ़ाए और बेहतर हेल्थ केयर की दिशा में फैसले लेते रहे तभी स्वास्थ्य के स्तर पर आमूल चूल परिवर्तन होगा.

MCI ने कभी मेडिकल काउंसिल की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया

डॉ संगीता फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए कहती हैं ' एग्जिट टेस्ट का विरोध क्यूं हुआ? क्या सरकार की जिम्मेदारी बेहतर चिकित्सक मुहैया कराने की नहीं हैं ?  मेरे सेक्रेटरी रहते कई शिकायतें MCI में आती थी कि प्राइवेट कॉलेज पैसे लेकर फाइनल परीक्षा पास कराते हैं '

ज़ाहिर है MCI का सारा फोकस  मेडिकल कॉलेज के स्ट्रक्चर और उसकी मान्यता दिए जाने को लेकर प्रॉसेस पर था.जबकि बतौर रेगुलेट्री बॉडी मेडिकल काउंसिल गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया.

इतना ही नहीं बदलते समय के साथ जो तरीके बदले जाने चाहिए थे.वो बदले भी नहीं गए.करिकुलम में इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी का समावेश तक नहीं हो पाया और सालों पुरानी करिकुलम के सहारे देश के मेडिकल एजुकेशन को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया.

डॉ संगीता कहती हैं, 'सालों बाद इस साल करिकुलम चेंज किया जा सका जो इस बात का परिचायक है कि फैसले लेने में MCI विफल रही है. जबकि इंटरनेशनल लेवल पर गौर फरमाया जाए तो हम पाएंगे कि वहां रेगुलेटरी बॉडी का ध्यान प्रासेस से लेकर आउटकम पर भी होता है.लेकिन एमसीआई का सारा जोर कॉलेज के इंस्पेक्शन और असेसमेंट पर रहा है. जिसको लेकर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगते रहे हैं.'

MCI पर लगाम से सफल होगा आयुष्मान भारत 

जाहिर है इस बात की तस्दीक ओवरसाइट कमेटी की उस चिट्ठी से भी होता है जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी कमेटी ने इंस्पेक्शन पर लगाए गए तमाम इंस्पेक्टर्स का पूरा नाम,पता और उनके द्वारा जांच किए गए कॉलेजे के नाम और तैयार किए गए रिपोर्ट का पूरा विवरण मांगा था. जिसे एमसीआई ने देने से इंकार कर दिया था.

सूत्रों की मानें तो मेडिकल काउंसिल के फैसले में एकरूपता की कमी थी. और फैसले लेने के लिए गठित एक्जीक्यूटिव कमेटी पर फैसला बाहर से थोपा जाता था.ऐसे में पारदर्शिता और जवाबदेही वो मूलभूत आधार थे जिसकी कसौटी पर एमसीआई खड़ी उतर न सकी.

ऐसे में डॉक्टर्स की गुणवत्ता से लेकर उसकी कमी को दूर करने के गंभीर प्रयास क्या एमसीआई कर पाएगी ऐसा विश्वास एमसीआई खो चुकी थी. लेकिन आयुष्मान भारत का लक्ष्य प्राइमरी, सेकेंड्री और टरर्शीयरी हेल्थकेयर में आमूल चूल परिवर्तन का है ताकी बेहतर हेल्थ केयर मुहैया कराया जा सके. इसलिए रेगुलेट्री बॉडी के रूप में फेल हो चुके संस्था पर लगाम कस सरकार ने ये जता दिया कि आयुष्मान भारत को सफल बनाने में वो कोई कसर नहीं छोड़ेगी.