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संघ के लिए मोदी मॉडल से अहम है, योगी मॉडल की सफलता

उत्तर प्रदेश जिस सांस्कृतिक-राजनीतिक दौर का गवाह बनेगा, वह आरएसएस के लिए हिंदुत्व की सच्ची प्रयोगशाला साबित होगा

Bhuwan Bhaskar

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की ताजपोशी के पीछे समीकरण चाहे जो रहे हों, सच यही है कि योगी राज्य के नए मुख्यमंत्री हैं. योगी के राज्यारोहण के बाद बरखा दत्त ने ट्वीट किया कि 'फ्रिंज अब मेनस्ट्रीम' बन गया.

टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी लगभग इन्हीं शब्दों में एक खबर की हेडलाइन लगाई कि 'जानिए कैसे फ्रिंज मेनस्ट्रीम' बन गया. यानी 5 बार का सांसद और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का सबसे मजबूत और प्रभावी नेता फ्रिंज (अलग-थलग) है. क्यों? क्योंकि वह भगवा पहनता है और हिंदुत्व की बात करता है. दरअसल लेफ्ट और लिबरल बुद्धिजीवियों ने दशकों से अपने तंत्र का इस्तेमाल कर भारतीय जनमानस में यह बात बैठा दी है कि हिंदुत्व और विकास एक-दूसरे के विरोधी हैं.

आश्चर्य यह है कि गुजरात में मोदी की सफलता, देश के आधे से ज्यादा भूभाग पर भारतीय जनता पार्टी के शासन और विकास पुरुष के तौर पर उभरी मोदी की छवि भी इस मान्यता को तोड़ नहीं सकी है. इसका एक बड़ा कारण मोदी का अपना राजनीतिक विकास क्रम है.

मोदी की छवि एक कट्टर हिंदू नेता

गोधरा त्रासदी के तुरंत बाद हुए दंगों में अपनी कथित भूमिका पर लगे आरोपों के कारण मोदी की छवि एक कट्टर हिंदू नेता की जरूर बनी, लेकिन मोदी ने अपनी ओर से कभी उस छवि को हवा नहीं दी. उलटा, गुजरात में उन्होंने तमाम हिंदूवादी संगठनों को लगभग खत्म कर दिया और हिंदू एजेंडा को दरकिनार करते हुए केवल और केवल विकास की अपनी छवि को मजबूत किया.

देश ने जब मोदी को समझना शुरू किया, उसके बाद कभी किसी ने हिंदू मोदी को नहीं देखा (स्कल कैप पहनने से इंकार करना 15 सालों में हुए एकमात्र अपवाद है). नतीजा यह हुआ कि गुजरात भले बीजेपी का गढ़ बन गया, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, सिक्किम और पूर्वोत्तर के तीन राज्यों तक में भले ही बीजेपी एक राजनीतिक ताकत बन कर स्थापित हो गई, लेकिन हर जगह पार्टी हिंदुत्व के अपने एजेंडे पर डिफेंसिव रही.

इन सब बातों से यही बात साबित होती गई कि हिंदुत्व और विकास एक-दूसरे के विरोधी हैं क्योंकि स्वयं बीजेपी को भी अपने को विकासपरक साबित करने के लिए हिंदुत्व से पल्ला झाड़ना पड़ता है.

स्वर्णिम काल का एक मूलभूत तत्व हिंदू समाज की एकता

लेकिन बीजेपी के मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राजनीतिक एजेंडा केवल बीजेपी के सत्ता हासिल करने से पूरा नहीं होता. संघ का एजेंडा एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की आधारशिला रखने पर केंद्रित है, जहां आर्थिक समृद्धि और दोहरे अंकों के विकास दर के साथ हिंदू युग का स्वर्णिम काल दिख सके.

इस स्वर्णिम काल का एक मूलभूत तत्व हिंदू समाज की एकता है, जिसके लक्ष्य के साथ डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी. लेकिन सच यह भी है संघ अपने इस उद्देश्य में आज भी आंशिक सफलता ही हासिल कर सका है. गुजरात समेत तमाम दूसरे राज्यों में बीजेपी भी कहीं न कहीं जातीय समीकरणों के लिहाज से ही चुनावी बिसात बिछाती आई है.

पहली बार उत्तर प्रदेश ने पार्टी और संघ के रणनीतिकारों को एक ऐसा जनादेश थमाया, जिसमें जातियों का भेद खत्म हो गया और विरोधियों की भाषा में रिवर्स पोलराइजेशन हुआ यानी कुल मिलाकर बीजेपी को मिलने वाले वोट हर जातीय समीकरण से ऊपर उठकर हिंदू के नाम पर पड़े.

रणनीति के साथ दलित और पिछड़ा राजनीति 

उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए यह अद्भुत घटना है, जहां कोई हिंदू नहीं. यहां केवल ब्राह्णण, राजपूत, दलित, यादव, पिछड़े और दूसरी जातियां हैं. हिंदू समाज के अलग-अलग हिस्सों को एक-दूसरे के सामने खड़ा करने की रणनीति के साथ उभरी दलित और पिछड़ा राजनीति सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में ही सफल हुई.

समाज के कमज़ोर वर्गों (दलितों, पिछड़ों, अति-पिछड़ों और दूसरी गैर-सवर्ण जातियों) के प्रति अत्याचार, उनकी बहू-बेटियों का तिरस्कार और शोषण और उनकी शादियों में घोड़ी चढ़ने जैसे मसलों पर मारपीट जैसी घटनाएं सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश से ही सामने आती हैं.

संघ को एक आदर्श रेसिपी उपलब्ध कराएगा

ऐसे में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सफलता न केवल हिंदुत्व और विकास की एकरूपता साबित करने के लिहाज से तुरूप का पत्ता साबित होगी, बल्कि हिंदू समाज को सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से एक करने के लिहाज से भी संघ को एक आदर्श रेसिपी उपलब्ध कराएगा, जिसे देश के दूसरे हिस्सों में भी लागू किया जा सकेगा.

संघ का पिछले 90 साल का इतिहास बताता है कि संघ के लिए केवल अपना लक्ष्य स्थिर है, बाकी समय के साथ संघ हर बदलाव करने के लिए तैयार है. इसलिए जिन लोगों को लगता है कि हिंदुत्व की इस प्रयोगशाला के सफल होने का मतलब मुसलमानों के लिए तबाही है

वह संघ के हिंदू राष्ट्र की उस परिकल्पना से परिचित नहीं हैं, जिसमें संघ यहूदियों और पारसियों जैसे मुट्ठी भर समुदायों को पूरा सम्मान और अधिकार देने को हिंदू समाज की गौरवमयी परंपरा का हिस्सा मानता है.

तो, जाहिर है कि योगी भी मोदी की उसी परंपरा को आगे बढ़ाएंगे, जिसमें सबका साथ, सबका विकास ही राजनीति का नया मूलमंत्र होगा. योगी भी मोदी की ही तरह विकास को अपना यूएसपी बनाएंगे और अगर वह ऐसा करने में सफल रहे, तो उत्तर प्रदेश जिस सांस्कृतिक-राजनीतिक दौर का गवाह बनेगा, वह संघ के लिए हिंदुत्व की सच्ची प्रयोगशाला साबित होगा.