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चारा घोटाला: वो CBI अफसर जिसने धमकियों के बावजूद जुटाए सबूत

आइए 60 साल के उपेन बिस्वास को जानते हैं, जिन्होंने पूरे मामले का खुलासा किया और जिनकी कार्रवाई के बाद ये केस मजबूती से इतनी दूर तक जा सका

FP Staff

चारा घोटाला मामले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर शनिवार को सीबीआई की विशेष अदालत फैसला सुनाएगी. ऐसे में आइए 60 साल के उपेन बिस्वास को जानते हैं, जिन्होंने पूरे मामले का खुलासा किया और जिनकी कार्रवाई के बाद ये केस मजबूती से इतनी दूर तक जा सका.

इस केस की जब भी बात होती है तो सीबीआई के पूर्व ज्वाइंट डायरेक्टर रह चुके उपेंद्रनाथ बिस्वास का जिक्र जरूर होता है. उन्हें लोग उपेन बिस्वास के नाम से भी जानते हैं. उपेन बिस्वास से न्यूज़18 संवाददाता सुजीत नाथ ने इस केस के बारे में बात की थी. इस दौरान बिस्वास ने बताया कि किस तरह लालू ने उनसे कई बार आग्रह किया कि पूछताछ की जगह बदली जाए. मामले से मीडिया दूर रहे और उनकी सार्वजनिक छवि भी न खराब हो. उनका आरोप है कि इस मामले को आगे बढ़ाने पर सीबीआई के तत्कालीन डायरेक्टर से भी उन्हें धमकी मिली थी.


लालू ने खुद किया था फोन

बिस्वास मामले से जुड़ी जांच को याद करते हुए कहते हैं, 'यह साल 1999 और 2000 की बात है, जब मैंने बिहार के मुख्य सचिव को फोन किया और मैसेज दिया कि सीबीआई चारा घोटाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव से पूछताछ करना चाहती है. 5 मिनट के अंदर मुझे फोन आया. वह व्यक्ति मुख्य सचिव नहीं, बल्कि लालू प्रसाद यादव खुद थे.'

बिस्वास आगे कहते हैं, 'लालू प्रसाद यादव ने बंगाली में बात शुरू की. 'नमस्कार दा, आमी लालू यादव बोलछी' (नमस्कार दा, मैं लालू यादव बोल रहा हूं), अरे आप नहीं जानते हैं कि अपर कास्ट के लोग हमारे खिलाफ साजिश कर रहे हैं.' मैंने लालू प्रसाद से कहा कि सबूतों के आधार पर सीबीआई टीम आपसे पूछताछ करेगी. इस पर लालू सहमत हो गए और कहा कि अधिकारियों को मुख्यमंत्री निवास स्थान 1 अण्णे मार्ग पर भेज दें. उन्होंने फिर फोन किया और मीडिया की आलोचना की. उन्होंने कहा कि मीडिया जासूसों की वजह से घर में बहुत परेशानी है. दफ्तर में पूछताछ कर लीजिए.'

बिस्वास कहते हैं, 'मैंने लालू का अनुरोध मान लिया और अधिकारियों को इस बारे में जानकारी दे दी. इसमें रंजीत सिन्हा भी शामिल थे, जो उस समय सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी थे. लालू ने मुझे फिर कॉल किया और कहा कि पूछताछ दिल्ली में कर लें और मामले को गुप्त ही रखें. मैं सहमत हो गया, लेकिन उन्होंने फिर कॉल किया और कहा कि वहां इंटरनेशनल मीडिया होगी. आप मुझसे कोलकाता में पूछताछ कर लें. बार-बार अनुरोध बदलने से मैं परेशान हो गया था.'

समन जारी होने के बाद लालू से किसी ने कहा कि बिस्वास के बंगाली होने की वजह से कोलकाता में परेशानी हो सकती है. मुझे नहीं पता कि किसने उन्हें इस तरह का फालतू आइडिया दिया. अंत में वह पटना से बाहर वाल्मिकी गेस्ट हाउस में पूछताछ के लिए तैयार हुए. मुझे कहना पड़ेगा कि लालू बड़े कलाकार हैं और उनकी नौटंकी से किसी की तुलना नहीं हो सकती है.'

केस के शुरुआत से ही धमकियां मिलीं

केस की शुरुआत में मुझपर राजनेताओं, ब्यूरोक्रेट्स और अपराधियों का दबाव था. इसने मुझे बौद्ध धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया. एक बार सीबीआई डायरेक्टर ने मुझसे लंच में नॉर्थ ब्लॉक आने को कहा. लेकिन उन्होंने सिर्फ धमकी दी. उन्होंने मुझसे कहा कि तुम तो फंसोगे. लोग तुम्हारे पीछे हैं. मैं उनके नाम का खुलासा नहीं कर सकता, लेकिन उन्हें मैंने सिर्फ इतना कहा कि मैं दबाव में नहीं आउंगा.

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

बिस्वास ने इसके बाद आर्मी की मदद से पटना से लालू की गिरफ्तारी की बात की. उन्होंने कहा, मेरे पास कोई ऑप्शन नहीं था. मेरे खिलाफ षडयंत्र रचा जा रहा था. दिल्ली के मेरे सीनियर फोन नहीं उठा रहे थे. इसके बाद एक सुझाव पर मैंने कानूनी रास्ता अपनाया. मैंने आर्मी से मदद मांगी, जिसे मना कर दिया गया. इसके अगले दिन मेरे सीनियर जो फोन नहीं उठा रहे थे, उन्होंने मेरे खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. यह स्पष्ट था कि वह इस केस से मुझे दूर करना चाहते थे. अंत में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया कि मैं इस केस का जांच अधिकारी रहूंगा, जिसने मुझे राहत दी.

बिस्वास कहते हैं, ' ये मेरे लिए चुनौती थी, क्योंकि इस केस में काफी प्रभावशाली लोग थे. इसमें लालू के खिलाफ जांच हो रही थी. देवगौड़ा और गुजराल की सरकार आरजेडी के सपोर्ट से चल रही थी. इस केस से लालू ही नहीं देवगौड़ा के लिए भी मुसीबत बढ़ी. यह एक लंबी यात्रा थी. इसका फैसला मुझे ज्यादा उत्साहित नहीं कर रहा. मैंने अधिकारी के तौर पर अपना काम किया और कानून अपनी तरह से काम करेगा.'

(न्यूज18 के लिए सुजीत नाथ की रिपोर्ट)