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समाजवादी महाभारत: एकता प्रदर्शन के बीच उभरते मतभेद

समाजवादी पार्टी में मचा घमासान अखिलेश को निर्विवाद नेता बनाने की कवायद है

Krishna Kant

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ‘समाजवादी विकास रथयात्रा’ में शिवपाल यादव और मुलायम सिंह के शामिल होने से अब तक लगाए जा रहे तमाम कयासों पर विराम लग गया है.

पार्टी में टूट की संभावनाएं कम से कम हैं, क्योंकि मुलायम के पास अखिलेश को मजबूत करने के सिवा कोई चारा नहीं है.


शिवपाल या अमर सिंह का सार्वजनिक रूप से बखान करने का निहितार्थ सिर्फ इतना रहा है कि अखिलेश अकेले चुनाव नहीं जीत सकते. मुलायम जानते हैं कि शिवपाल की पार्टी पर मजबूत पकड़ है.

अगर वे अखिलेश या मुलायम से नाराज होते हैं तो पार्टी को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ सकता है.

यह पहले से साफ था कि पार्टी में मचा घमासान अखिलेश को निर्विवाद नेता बनाने की कवायद है और अंतत: यही हो रहा है.

मुलायम सिंह यह स्थापित करने में सफल रहे हैं कि पार्टी का चेहरा अखिलेश होंगे जिन्हें शिवपाल और अन्य नेताओं का समर्थन होगा. हालांकि, पार्टी के भीतर मौजूद अहम की लड़ाई अभी खत्म होती नहीं दिखती.

रथयात्रा शुरू करने से एक दिन पहले अखिलेश ने अमर उजाला से कहा, 'चुनाव में हमारा काम बोलेगा.

राजनीति में अब इतना सीख चुका हूं कि किसी लालच या झांसे में आने वाला नहीं. अब किसी के कहने पर नहीं चलूंगा. अपने फैसले खुद करूंगा. अपनी सरकार के कामों के दम पर ही हम सत्ता में फिर से वापसी करेंगे.

पार्टी अपनी सरकार के काम पर भरोसा क्यों नहीं कर पा रही है, यह सोचना पार्टी के नेताओं का काम है... रथयात्रा पार्टी का कार्यक्रम है.

हम अपनी सरकार के कामों को लेकर लोगों के बीच जा रहे हैं. अपनी उपलब्धियां बताकर चुनाव में समर्थन मांगेंगे.'

अखिलेश की इन बातों के खास निहितार्थ हैं. किसी के कहने पर नहीं चलने और अपने फैसले खुद करने का ऐलान स्पष्ट संकेत है कि पार्टी के अंदर वर्चस्व का घमासान अभी थमा नहीं है.

अखिलेश यह भी कह रहे हैं कि पार्टी अपनी सरकार के काम पर भरोसा नहीं कर पा रही है. जाहिर है कि पार्टी का मतलब है मुलायम सिंह और शिवपाल यादव. अखिलेश का सारा झगड़ा उन्हीं से है.

अखिलेश की रथयात्रा में मुलायम और शिवपाल भले ही मौजूद रहे हों, लेकिन इसके साथ ही दोनों ही अपना-अपना अलग राग अलाप रहे हैं.

अखिलेश और शिवपाल के अलग कार्यक्रमों से यह संदेश जाएगा कि अभी तक पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है.

पांच नवंबर को पार्टी का रजत जयंती समारोह तय होने के बावजूद अखिलेश ने तीन नवंबर से रथयात्रा शुरू की. इसके बाद शिवपाल यादव ने चार नवंबर को समाजवादी युवा सम्मेलन बुला लिया.

इस शक्ति प्रदर्शन के बीच समाजवादी पार्टी का मतदाता दुविधा में फंसता दिख रहा है. अखिलेश की रथयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी.

उधर शिवपाल के पार्टी के कार्यक्रमों में ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ता जुटाने का प्रयास होगा. इस खींचतान में पार्टी समर्थक बंटेंगे तो है ही, उनमें भ्रम भी फैलेगा.

पार्टी में मौजूद मतभेद के सार्वजनिक प्रदर्शन से मुस्लिम मतदाता छिटकेंगे. दूसरी जातियों के मतदाता भी उन पार्टियों के साथ जा सकते हैं जिनमें उन्हें उम्मीद दिखेगी.

इस सत्ता संघर्ष के बीच मुलायम सिंह लगातार पैबंद लगाने की कोशिश कर रहे हैं. वे अखिलेश और शिवपाल दोनों को बराबर तवज्जो दे रहे हैं.

वे जानते हैं कि शिवपाल की संगठन पर मजबूत पकड़ है. इसका स्पष्ट संकेत वे पार्टी की मीटिंग में शिवपाल की तारीफ करके दे चुके हैं कि शिवपाल जिसे चाहे जिता सकते हैं और जिसे चाहे हरा सकते हैं.

अखिलेश यात्रा शुरू होने से पहले भले ही यह संकेत दे रहे थे कि वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बगैर ही रथयात्रा शुरू करेंगे, लेकिन उनकी रथयात्रा शुरू होने के वक्त मुलायम और शिवपाल मौजूद रहे.

शिवपाल ने अखिलेश को शुभकामनाएं दीं और मुलायम सिंह पर भरोसा जताया. इससे वह कयास और मजबूत हुआ है कि पार्टी में भले ही मतभेद उभर का सार्वजनिक हो गए हों, लेकिन पार्टी टूटेगी नहीं.

अखिलेश यादव भी बार बार दोहराते हैं कि वे वही करेंगे जो मुलायम सिंह यादव कहेंगे. हालांकि, वे ऐसा नहीं कर रहे हैं. वे सरकार के कामकाज और सरकार को ज्यादा तवज्जो दिलवाना चाहते हैं.

चुनाव प्रचार अभियान में अखिलेश मुलायम और शिवपाल का एक मंच पर आने से भले ही पार्टी की एकता बनी रहने का संकेत मिलता हो, लेकिन अभी पार्टी का मतभेद जनता के सामने है.

अखिलेश और शिवपाल का अलग अलग राग अलापना मतदाताओं को भ्रम में डालेगा. पार्टी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.