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एक करोड़ का मुआवजा देकर किसान हितैषी सीएम का तमगा बचाने की जुगत

राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने एक बयान में कहा कि गोली कांड के पीछे ड्रग माफिया है

Dinesh Gupta

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंदसौर पुलिस की कार्रवाई में मारे गए छह किसानों के परिवार को एक करोड़ का मुआवजा देने की घोषणा की है.

मुआवजे के अलावा मृतक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी भी दी जाएगी. मध्यप्रदेश के इतिहास में यह सबसे बड़ा मुआवजा है. इस मुआवजे के जरिए शिवराज सिंह चौहान खुद को मिले किसान हितैषी मुख्यमंत्री का तमगा बचाने की कोशिश कर रहे हैं.


मंदसौर से एक किसान की मौत की खबर आई तो मुख्यमंत्री ने पांच लाख रूपए के मुआवजे की घोषणा की. मृतकों की संख्या बढ़ी तो शाम तक मुआवजा बढ़ाकर दस लाख रूपए कर दिया गया. देर रात मुआवजे की राशि एक करोड़ रूपए कर दी गई.

किसानों पर सरकारी ज्यादती के खिलाफ किसान यूनियन ने बुधवार को प्रदेश बंद का एलान किया है. कांग्रेस ने इस बंद का समर्थन किया है. दूसरी ओर अपना तमगा बचाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बार-बार यह आरोप दोहरा रहे हैं कि किसानों को भड़काने का षडयंत्र मुख्य विपक्षी दल ने रचा है. अपने इस आरोप के समर्थन में सरकार अब तक कोई साक्ष्य पेश नहीं कर सकी.

मंदसौर की घटना के बाद पार्टी में जहां उनके विरोधियों को सक्रिय होने का मौका मिल गया है, वहीं विपक्षी दल कांग्रेस के हाथ एक ऐसा मुद्दा लग गया है जो अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनाव में संजीवनी बूटी का काम कर सकता है.

कलेक्टर बोले गोली चलाने का आदेश नहीं, मंत्री बोली ड्रग माफिया का हाथ

मध्यप्रदेश का मंदसौर वो क्षेत्र है, जहां अफीम की पैदावार बड़ी मात्रा में होती है. दुनिया भर के ड्रग माफिया के लोग इस इलाके में सक्रिय हैं. इलाके की पूरी राजनीति किसानों को अफीम के कीमत दिलाने के ईदगिर्द घूमती है.

मंगलवार को हुए गोलीकांड के बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने किसानों के पूरे आंदोलन को एक अलग दिशा देने की कोशिश की. राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अर्चना चिटनिस ने एक बयान में कहा कि गोली कांड के पीछे ड्रग माफिया है. जिले के कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह ने इस बात से इनकार किया कि गोली चलाने का आदेश एसडीएम द्वारा दिया गया था.

शिवराज सिंह चौहान की पूरी सरकार और भारतीय जनता पार्टी इस कोशिश में लग गई है कि गोली कांड का ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ दिया जाए. राज्य बीजेपी के अध्यक्ष नंदकुमार चौहान ने कहा कि गोलीकांड के पीछे कांग्रेस और असामाजिक तत्व हैं.

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आखिर शिवराज सिंह से चूक हुई कहां?

शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश के अकेले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो कि लगातार तेरह साल से इस पद पर हैं. किसानों का भरोसा इसकी बड़ी वजह रही है.

मुख्यमंत्री के पद पर इतनी लंबी पारी होने के कारण स्वभाविक तौर पर यह माना जाता है कि वे जनता की नब्ज को अच्छी तरह पहचानते हैं. शासन, प्रशासन पर भी अच्छी पकड़ रखते हैं. साल 2013 के विधानसभा चुनाव से पहले तक स्थिति कुछ ऐसी थी.

साल 2013 के चुनाव में पार्टी को मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद जिस तेजी से उनका राजनीतिक कद बढ़ा, उतनी ही तेजी से वे अधिकारियों के कॉक्स में फंसते चले गए. पार्टी के नेताओं और कार्यकर्त्ताओं से उनका संवाद भी टूटता चला गया. यही वजह है कि पिछले एक सप्ताह से किसानों द्वारा किए जा रहे आंदोलन को शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया था.

सरकार के किसी भी नुमाईंदे ने आंदोलनकारी किसानों से बात करने की कोशिश भी इस दौरान नहीं की. मुख्यमंत्री ने बात करने की औपचारिकता ऐसे संगठन के साथ निभाई जो कि आंदोलन में हिस्सा ही नहीं ले रहा था. भारतीय किसान संघ ने मुख्यमंत्री से बात की और आंदोलन स्थगित करने की घोषणा कर दी. आंदोलनकारी किसानों ने इस घोषणा को अस्वीकार कर दिया.

दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह से अफसरशाही के नियंत्रण में नजर आ रहे हैं. अधिकारियों ने ही मुख्यमंत्री को यह सलाह दी थी कि वे आंदोलनकारी किसानों से बात करने के बजाए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के किसान संगठन से बात करें. अधिकारियों की सलाह थी कि इससे बीजेपी को राजनीतिक लाभ होगा.

लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के फोटो लगाने से किया था परहेज

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश एक मात्र ऐसा राज्य था, जहां कि भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई और बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री के तौर पर घोषित उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के फोटो का उपयोग चुनाव प्रचार में नहीं किया था.

चौहान, लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाते थे. आडवाणी ने उनका नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करने के लिए आगे बढ़ाया था. यही वजह है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही राज्य में यह चर्चाएं हमेशा चलती रहतीं हैं कि शिवराज सिंह चौहान को देर-सबेर बदल दिया जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले तीन साल में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर चौहान को किसी भी तरह का राजनीतिक नुकसान नहीं पहुंचाया. व्यापमं घोटाला उजागर होने के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी और पूरी पार्टी चौहान के साथ खड़ी नजर आई. मंदसौर की घटना के बाद संभव है कि पार्टी नेतृत्व चौहान की किसान हितैषी छवि के बारे में नए सिरे से विचार करे.

राज्य में चौहान के विरोधी माने जाने वाले ज्यादातर नेता प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के करीबी माने जाते हैं. इनमें केंद्रीय मंत्री थावरचंद्र गहलोत, फग्गन सिंह कुलस्ते और महामंत्री कैलाश विजयवर्गीय प्रमुख हैं. पार्टी के संगठन महामंत्री रामलाल ने हाल ही में राज्य का दौरा कर राजनीतिक स्थिति का जायजा लिया था.

राज्य के बीजेपी नेताओं में सरकार के कामकाज को लेकर भारी नाराजगी है. सागर जिले की सुरखी विधानसभा क्षेत्र की विधायक पारूल साहू तो चुनाव न लड़ने का एलान कर चुकी हैं.

कांग्रेस की गुटबाजी पर लग सकता है विराम

मध्यप्रदेश में कांग्रेस कई गुटों में बंटी हुई है. इसी गुटबाजी के कारण कांग्रेस पहली बार इतने लंबे समय तक सरकार से बाहर है. राज्य में कांग्रेस के तीन बड़े नेता हैं  कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया.

विधानसभा के पिछले तीन चुनाव में ये नेता कभी एकजुट नहीं हुए. वर्तमान में कांग्रेस की कमान पिछड़ा वर्ग के अरूण यादव के हाथ में है. प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह हैं. अजय सिंह दिवंगत नेता अर्जुन सिंह के पुत्र हैं. अरूण यादव के पिता स्वर्गीय सुभाष यादव राज्य में उप मुख्यमंत्री रहे हैं. उनकी पहचान बड़े किसान नेता की थी. अरूण यादव के स्थान पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्य के कांग्रेस की कमान सौंपने की चर्चाएं कई महीनों से चल रही हैं.

हाल ही में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कमलनाथ का नाम भी चर्चा में आया. बताया जाता है कि किसी एक नाम पर सहमति न बन पाने के कारण आलाकमान नेतृत्व परिवर्तन का फैसला नहीं ले पा रहे हैं.

मंदसौर की घटना बाद यह संभावना बनी है कि कांग्रेस के नेता शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ एक होकर चुनाव की तैयारी में जुट जाएं. यदि कांग्रेस एक होती है तो भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुश्किलें बढ़ सकतीं हैं.