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किसान आंदोलन: बीजेपी के हाथ से कहीं मध्यप्रदेश निकल न जाए

शिवराज सिंह चौहान ने मुआवजे की राशि 5 लाख रुपए से बढ़ाकर 10 लाख और फिर इसे बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दिया

Pratima Sharma

पिछले छह दिनों से महाराष्ट्र में किसानों की हड़ताल चल रही है. किसानों के आंदोलन की यह आग कब पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश तक पहुंच गई, इसका पता तब चला जब सरकारी गोलियों ने 5 किसानों की जान ले ली. यह आंदोलन महाराष्ट्र में चंद्रपुर के एक गांव से शुरू हुआ था, लेकिन अब इसका असर मध्यप्रदेश पर ज्यादा नजर आ रहा है.

विधानसभा चुनाव पर क्या होगा असर?


अगले साल मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में यह आंदोलन जिस तरह से बढ़ रहा है. उससे यह साफ है कि इससे सत्तारूढ़ पार्टी के लिए आगे की राह मुश्किल हो सकती है.

आमतौर पर जब इस तरह का आंदोलन बढ़ता है तो इसके पीछे राजनीतिक पार्टियों का हाथ होता है. इस आंदोलन की आग में कोई राजनीतिक पार्टी घी डाल रही है या नहीं, इस पर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. लेकिन फिलहाल इतना तो तय लग रहा है कि चौथी बार मध्यप्रदेश की सत्ता हासिल करना बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है.

कितना अहम है 6 जून 2017

आंदोलन के इतिहास में 6 जून का दिन लंबे समय तक याद किया जाएगा. आजादी के बाद शायद पहली बार किसी किसान आंदोलन में गोलियां चली हों और 5 किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी हो.

किसानों की हत्या के बाद शिवराज सिंह की सरकार ने पहले 5 लाख रुपए के मुआवजे का ऐलान किया. फिर उसे बढ़ाकर 10 लाख रुपए कर दिया. दिलचस्प यह है कि शिवराज सिंह ने इस रकम को बढ़ाकर 1 करोड़ रुपए कर दिया. यह भी शायद पहली ही बार हुआ है कि किसी आंदोलन में मारे गए किसान को 1 करोड़ रुपए का मुआवजा दिया गया हो. मुआवजे की इस राशि से इतना तो तय है कि शिवराज चौहान को इस घटना की अहमियत का पूरा अंदाजा है.

हालात बेकाबू  होने पर शिवराज सिंह ने आनन-फानन में इस घटना की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए. साथ ही उच्च अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई गई. बैठक में इलाके के डीएम ने कहा कि गोली पुलिस की तरफ से नहीं चली. अब सवाल यह है कि अगर गोली पुलिस की तरफ से नहीं चली तो किसने चलाई? इस सवाल का जवाब फिलहाल मिलना मुश्किल है. लेकिन इससे इतना जरूर होगा कि किसानों की मौत की जांच इसी दिशा में आगे बढ़ेगी.

क्या है किसानों के गुस्से की वजह? 

किसानों के आंदोलन की शुरुआत 6  दिन पहले महाराष्ट्र से हुई थी. वहां चंद्रपुर में एक गांव के लोगों ने पंचायत करके यह फैसला लिया कि वे बहिष्कार करेंगे. किसानों की शिकायत इस बात को लेकर है कि नरेंद्र मोदी ने अपने घोषणा पत्र में जो वादा किया था वो उस पर काम नहीं कर रहे हैं.

क्या था मोदी का वादा?

2014 में बीजेपी की सरकार सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी ने कुरुक्षेत्र में एक रैली की थी. इस रैली में मोदी ने वादा किया था कि वह जल्द ही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करेंगे. मोदी सरकार को तकरीबन तीन साल होने को आए हैं. लेकिन अभी तक इस दिशा में सरकार ने एक कदम तक नहीं बढ़ाया है.

मोदी ने अपनी इस रैली में वादा किया था कि किसानों को उनकी फसल की लागत और 50 फीसदी मुनाफे के साथ एमएसपी तय करेंगे. लेकिन तीन साल का जश्न मनाने के अलावा आज तक मोदी सरकार ने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया है.