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केरल में फेल हो गया बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड!

स्थानीय लोगों का मानना है कि अमित शाह की रैली केरल की गलत तस्वीर पेश कर रही है

Ashraf Padanna

इस हफ्ते केरल में भारतीय जनता पार्टी के रोड शो ‘जनरक्षा यात्रा’ को लेकर वहां लोगों की प्रतिक्रिया में खास गर्मजोशी नहीं थी. रोड शो के बाद वाले कार्यक्रमों को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का साथ नहीं मिला जिससे सूबे में पार्टी के नेता पसोपेश में पड़े. इन बातों से जाहिर होता है कि भगवा पार्टी को देश के सर्वाधिक शिक्षित राज्य को लेकर बहुत ज्यादा होमवर्क करने की जरूरत है.

शाह गुरुवार को पिनराई गांव से होकर 11 किलोमीटर लंबी पदयात्रा करने वाले थे. यह मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का गांव है यानी एक ऐसी जगह जिसने बीजेपी और सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया(मार्क्सवादी) के बीच बदले की भावना से चल रही खूनी लड़ाई को देखा है. कार्यकर्ता खुश थे कि दुश्मन के किले में घुसने का मौका मिला है.


अमित शाह के अचानक अपने कदम वापस खींच लेने से कार्यकर्ताओं के उबलते हुए जोश पर ठंढ़ा पानी पड़ गया. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुम्मानम राजशेखर इस आयोजन की अगुवाई कर रहे हैं और उन्हें पूरी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए बड़ी मुश्किल से तर्क मिले.

सूबे में चुनाव अभी डेढ़ साल दूर है और पदयात्रा को चुनाव की पूर्व-तैयारी के रूप में आयोजित किया गया था. लेकिन पूरे आयोजन की शुरुआत ही गड़बड़ हुई. केरल में बीजेपी की सबसे ताकतवर साथी भारत धर्म जन सेना ने अपने को यह कहते हुए अलग कर लिया कि एनडीए सूबे में कोई खास पैठ नहीं बना सका है.

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अगले दिन लव-जेहाद के विषय पर अपना अभियान चलाया जो कि उनका सबसे पसंदीदा मुद्दा है लेकिन यह घाव पर नमक छिड़कने जैसा साबित हुआ, मीडिया को मसाला मिला और उसने केरल तथा उत्तर प्रदेश में कायम सांप्रदायिक सौहार्द्र के परिवेश की आपसी तुलना कर डाली.

कुन्नूर में बीजेपी की रैली में योगी आदित्यनाथ. फोटो सोर्स पीटीआई

मीडिया ने नहीं दी रैली को तवज्जो

बुधवार को अमित शाह ने सूबे के उत्तरी इलाके के शहर पय्यनूर से एक राज्य-व्यापी रोड शो का शुभारंभ किया था. इसका मुहावरा था ‘लाल और जेहादी आतंक’ से ‘आम जनता को बचाओ.’ रोड शो का शुभारंभ खूब ताम-झाम से किया गया था लेकिन स्थानीय मीडिया मुंह फेरे रहा. मीडिया हर बीतते मिनट के साथ इस बात की खबर दे रहा था कि सुपरस्टार दिलीप को हाईकोर्ट से जमानत मिलेगी या नहीं.

खबरें ये चल रही थीं कि निचली अदालत में सुपरस्टार दिलीप की रिहाई को लेकर क्या कार्यवाही चल रही है और केरल के दर्शक अपने पसंदीदा अभिनेता के बारे में क्या सोच रहे हैं. हालांकि इस दौरान राजशेखरन के नेतृत्व में पदयात्री तकरीबन आठ किलोमीटर की यात्रा कर चुके थे और अमित शाह भी उनमें शामिल हो चुके थे लेकिन मीडिया ने इसे तवज्जो ना दी.

कांग्रेस पार्टी के नेता रमेश चेनिथला ने तंज कसा कि "अमित शाह के बीच में ही कदम वापस खींच लेने से जनरक्षा यात्रा अब शवयात्रा में बदल गई है." रमेश चेनिथला केरल विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता हैं. उनका कहना था कि "यह केरल है, धार्मिक लकीर में बांटने की इस चालबाजी को लेकर यहां लोग सतर्क और चौकन्ने हैं. शाह को अपनी पदयात्रा के पहले ही दिन यह बात पता चल गई."

कई लोगों ने बीजेपी के शो से यह मानकर मोड़ लिया कि उसमें हिंसा पर ज्यादा जोर है जबकि सत्ताधारी सीपीएम और बीजेपी दोनों ही इसके लिए कमोबेश जिम्मेदार हैं. लोगों ने सोचा कि बीजेपी सूबे की एक चिन्ताजनक तस्वीर पेश करने में लगी है.

पय्यनूर के निवासी एक लेखक हैं सीवी बालाकृष्णन. पिनराई विजयन के मुख्यमंत्री बनने के बाद से पय्यनूर में दो बीजेपी कार्यकर्ताओं और एक सीपीएम कार्यकर्ता की हत्या हुई है. सीवी बालाकृष्णन का कहना था कि "ऐसा लगता है, बीजेपी ने अपने अध्यक्ष के रोड शो के लिए पड़ोसी कर्नाटक से भी कार्यकर्ता बुलवाये हैं. कई इलाकों में सुबह से ही झड़प चालू हो गई है."

बालाकृष्णन ने फर्स्टपोस्ट को बताया कि "बीजेपी के राष्ट्रीय नेता केरल को लेकर गलत नीति बना रहे हैं, केरल को लेकर उनकी सोच कच्ची है. केरल में दो ध्रुवीय राजनीति चलती है और इसे सांप्रदायिक लाइन पर तोड़ना मुश्किल है क्योंकि सूबे में तकरीबन आधी आबादी अल्पसंख्यकों की है. यहां हिन्दुत्व का जुमला एक सीमा से आगे नहीं नहीं चल सकता."

जय सीपीएम के लगे नारे

एक वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया गया. वीडियो में दिख रहा है कि रैली में शामिल लोग ‘जय सीपीएम’ के नारे लगा रहे हैं. नारे लगाने वाले ये लोग उत्तर भारत से केरल आये दिहाड़ी मजदूर हैं. केरल से कामगारों के खाड़ी देशों में पलायन के बाद बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय मजदूर यहां पहुंचे हैं और उन्हें ही रैली में भाड़ा पर शामिल किया गया है.

रैली की एक तस्वीर में दिखा कि एक आदमी टी-शर्ट पहने हुए है जिसपर अर्जेन्टीना के क्रांतिकारी मार्क्सवादी नेता अर्नेस्तो चे ग्वेरा की तस्वीर बनी हुई है.

बीजेपी ने अपने अभियान में केरल को जेहादी आतंक का गढ़ बताना चाहा था जो कि सूबे की छवि को मलिन करता है. इस वजह से भी सूबे में पारंपरिक प्रतिद्वन्द्वी सीपीएम और कांग्रेस इस प्रचार के खिलाफ एकजुट हो गये.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ओम्मन चांडी ने कहा कि "हमलोग एकजुट होकर खड़े होंगे और इक्का-दुक्का घटनाओं के नाम पर पूरे सूबे को बदनाम करने की कोशिश की मुखालफत करेंगे. हमारे गांव और शहरों में सभी धर्मों के मानने वाले लोग आपस में शांतिपूर्वक रहते हैं और ऐसी कोई समस्या नहीं है जो बढ़ा-चढ़ाकर पेश की जा रही है."

केरल अपनी राजनीतिक हिंसा के लिए खबरों में बना रहता है (फोटो: फेसबुक से साभार)

विश्लेषकों का यह भी मानना है कि पूरा अभियान खुद बीजेपी के खिलाफ गया है क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश सरकार की यह कहते हुए आलोचना की कि केरल में बुखार से लोगों की मौत हो रही है और मौत के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए. इस वजह से मानव-विकास सूचकांक के लिहाज से केरल ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, जिसमें शिक्षा और सेहत के क्षेत्र में हासिल उपलब्धियां भी शामिल हैं, एकबारगी उभरकर सामने आ गई हैं.

केरल की गलत तस्वीर पेश कर रही है बीजेपी

राजनीतिक टिप्पणीकार जैकब जॉर्ज का मानना है, "मुझे लगता है बीजेपी के रणनीतिकारों ने केरल के मन को पढ़ने में बड़ी गलती की है. यहां खुशी का परिवेश गहरा है और लोग सदियों से सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाकर रहते आये हैं जिसकी पूरी दुनिया में सराहना होती है."

जैकब ने फर्स्टपोस्ट को बताया कि "मुझे नहीं लगता कि केरल जैसे राज्य में बीजेपी को विभाजनकारी राजनीति से किसी तरह का कोई फायदा होगा. इस बहुधर्मी समाज में अगर अपने लिए कोई राह निकालनी है तो बीजेपी को अपनी रणनीतियों पर फिर से विचार करना पड़ेगा. यहां मतदाताओं को उस तर्ज पर लामबंद नहीं किया जा सकता जैसा कि यूपी और बिहार में होता है."

बीजेपी और उसके सहयोगी दल को सूबे में 2011 के विधानसभाई चुनावों में सिर्फ 6.06 प्रतिशत वोट मिले लेकिन ये वोट धीरे-धीरे बढ़े हैं.

2014 के लोकसभा चुनावों में ये वोट बढ़कर 10.88 फीसद हो गये और पिछले साल सूबे में बीजेपी के वोट अबतक की सबसे ज्यादा संख्या यानी 14.8 प्रतिशत पर पहुंचे. विधानसभा में भी पहली बार उसका एक प्रतिनिधि पहुंचने में कामयाब हुआ.

बीजेपी एनडीए में दो और पार्टियों को जोड़ सकी. इनमें एक है भारत धर्म जन सेना(बीजीजेएस) जो ताकतवर हिन्दू समुदाय एझवा की नुमाइन्दगी करती है. एझवा समुदाय केरल में सीपीएम का सबसे मजबूत जनाधार है. दूसरी सहयोगी कद्दावर नेता सी के जानू की जनाधिपत्य राष्ट्रीय सभा है.

हालांकि रोड शो के शुभारंभ के मौके पर सी के जानू मौजूद थीं लेकिन बीडीजेएस के अध्यक्ष तुषार वेल्लापल्ली ने अपने को आयोजन से यह कहते हुए अलग रखा कि मुझे कहीं और जाना है. इस पार्टी के रहबर वेल्लापल्ली नटेशन हैं जो तुषार वेल्लापल्ली के पिता और श्री नारायण धर्म परिपालन योगम(एसएनडीपी) के महासचिव भी हैं. वेलापल्ली नटेशन पहले ही साफ-साफ कह चुके हैं कि वे बीजेपी से कभी भी गठबंधन नहीं करेंगे और सीपीआई(एम) का साथ देंगे.

केरल के अलग-अलग धारा के चर्च संगठनों से अच्छे रिश्ते रखने वाले अल्फोंस कननंथनम को स्वतंत्र प्रभार वाला राज्यमंत्री बनाया गया है.. बीजीजेएस को यह बात नागवार गुजरी है. चर्च के नेता अपने व्यावहारिक रुख और केरल में सार्विक शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा के प्रति अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं और कननंथम के राज्यमंत्री बनाये जाने से खुश हैं लेकिन शायद ही किसी को यह लग रहा है कि बीजेपी को इसका कोई चुनावी फायदा होगा.

पिछले चुनाव के बाद कांग्रेस से नाता तोड़ लेने वाले क्रिश्चियन केरल कांग्रेस(एम) कभी सीपीएम की तरफ कदम बढ़ा रही है तो कभी बीजेपी की तरफ. रोड शो में बीजेपी के नेताओं ने जो बयान दिए उनकी निंदा में देर ना करते हुए क्रिश्चियन केरल कांग्रेस(एम) ने बीजेपी को याद दिलाया कि लोगों को बांटने की सियासत केरल में नहीं चलेगी.

नौकरियां न मिलने से हुई बीजेपी को निराशा

जैकब जार्ज का कहना है कि " केरल का समाज राजनेताओं के खेल से कहीं ज्यादा अगाह है, यहां लोग राजनेताओं के छल-छद्म को भांप लेते हैं. इस यात्रा के जरिए बीजेपी अपने को केरल की राजनीति की धुरी बनाना चाहती है लेकिन उसकी यह योजना धराशायी हो गई है. जैकब के मुताबिक, बीजेपी को पिछले चुनाव में बढ़त हासिल हुई क्योंकि नौजवानों को मोदी प्रशासन से बहुत उम्मीद थी. उन्हें लग रहा था कि मोदी सरकार के होने से आर्थिक वृद्धि को रफ्तार मिलेगी और उन्हें नौकरी हासिल होगी. केरल के लिए यह बात बहुत अहम है क्योंकि यहां शिक्षित नौजवानों को नौकरी मिलने में बहुत कठिनाई होती है. इन नौजवानों की धीरज टूट रहा है. हिन्दुत्व के मुहावरे भर से उन्हें संतुष्ट नहीं किया जा सकता.

जैकब को लगता है कि मेडिकल कॉलेज घोटाले के बाद बीजेपी की छवि मलिन हुई है. कहा जाता है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की मान्यता दिलवाने के नाम पर इसमे नेताओं ने रिश्वत ली. एक युवा नेता नकली नोट छापने के मामले में गिरफ्तार हुआ जबकि दूसरा मंदिर के फंड में हेर-फेर के मामले में पकड़ा गया है. ऐसे में बालाकृष्णन को लगता है कि बीजेपी ने अपने को सबसे अलग किस्म की पार्टी के रूप में स्थापित करने का मौका खो दिया है. केरल के बीजेपी के नेता तो सूबे के प्रभावी राजनीतिक दलों के नेताओं से भी कहीं ज्यादा गये-गुजरे हैं.

इसके अलावे केरल में वंशवादी मानसिकता भी काफी गहरी है, खासकर कन्नूर जिले में जहां से मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और सीपीएम के महासचिव कोडियेरी बालाकृष्णनन आते हैं. ऐसे में लोगों को अपनी तरफ खींच पाना मुश्किल है.

इस साल दोनों दलों की लड़ाई में 14 लोगों की हत्या हुई है और इसमें ज्यादातर बीजेपी के कार्यकर्ता हैं. बहुतों को आशंका है कि 15 दिन की यात्रा के दौरान और ज्यादा हिंसा होगी क्योंकि दोनों दल अपना दबदबा कायम रखने के लिए लड़ रहे हैं. रोड शो पुलिस के भारी इंतजाम के बीच जारी है.

कई बड़े नेता होने वाले थे इस रैली में शामिल

वरिष्ठ मंत्रियों समेत कई राष्ट्रीय नेता जैसे निर्मला सीतारमण, अनंत कुमार, स्मृति ईरानी, धर्मेन्द्र प्रधान और राज्यवर्धन राठौड़ पदयात्रा के विभिन्न पड़ावों पर इसमें शिरकत करने वाले थे. अमित शाह को श्रीकरीयम से पुथारीकंदम ग्राऊंड के बीच जुड़ना था. पदयात्रा के समाप्त होने की तारीख(अक्तूबर 17) पर सूबे की राजधानी के पुथारीकंदम ग्राऊंड में सभा का आयोजन होना है.

जॉर्ज बताते हैं कि "बीजेपी समाज के विभिन्न तबकों जिसमें विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग शामिल हैं, को बगैर विश्वास में लिए केरल में जीत हासिल नहीं कर सकती. हिन्दुत्व की विचारधारा बीजेपी के लिए बोझ साबित होगी." केरल में 26.56 प्रतिशत मुस्लिम और 18.38 प्रतिशत ईसाई हैं और सूबे में सबसे बड़ा सियासी तबका कम्युनिस्टों का है जो धर्म के मामले में अज्ञेयवादी है.