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इस फैक्स से हुआ था चारा घोटाले का खुलासा

जिस वक्त इस घोटाले का खुलासा हुआ था, उस वक्त पूर्व आईएएस अधिकारी विजय शंकर दुबे वित्त सचिव थे और उनके एक फैक्स से इस घोटाले की परत-दर-परत खुलनी शुरू हुई थी

FP Staff

बहुचर्चित चारा घोटाले में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव समेत कई लोगों को सजा मिल चुकी है. यह घोटाला खुलासे के समय से ही आजतक बिहार की राजनीति का एक मुख्य केंद्र बिंदु बना हुआ. लालू राज के अंत में इस घोटाले की एक अहम् भूमिका मानी जाती है. इस घोटाले ने खुलासे के बाद अब तक  बिहार के बड़े-बड़े लोगों की नींद उड़ा रखी है.

आज जब इस घोटाले के खुलासे के लगभग 20 वर्ष बाद जब इसके कई आरोपियों को सजा मिलना शुरू हो गया वैसे में इस घोटाले के खुलासे की कहानी को जानना बहुत ही दिलचस्प होगा. जिस वक्त इस घोटाले का खुलासा हुआ था, उस वक्त पूर्व आईएएस अधिकारी विजय शंकर दुबे वित्त सचिव थे और उनके एक फैक्स से इस घोटाले की परत-दर-परत खुलनी शुरू हुई थी. पेश है विजयशंकर दुबे से ईटीवी पटना के ब्यूरोचीफ आलोक कुमार की बातचीत पर आधारित इस घोटाले के खुलने की कहानी.


साल 1995-96 में बिहार सरकार की माली हालत इतनी खराब थी कि सरकारी कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह भी नहीं मिल रही थी. मेरी नियुक्ति वित्त विभाग के प्रमुख सचिव के तौर पर हुई थी. मैंने जुलाई 1995 में पद संभाला. चूंकि हमारी स्थिति कर्मचारियों को वेतन देने की भी नहीं थी, मेरे मन में सवाल आया कि आखिर पैसे जा कहां रहे हैं?

इसके बाद सितंबर-अक्टूबर में हमें पता चला कि पशुपालन विभाग तय बजट से पांच गुना ज्यादा खर्च कर रहा है. मुझे गड़बड़ी की आशंका हो गई. अगले साल 19 जनवरी तक हम इस नतीजे पर पहुंचे कि पशुपालन विभाग लगातार बजट से ज्यादा खर्च कर रहा है. यह मेरे लिए चौंकाने वाला था.

मैंने अपने सहकर्मियों से बात की और सभी जिलाधीशों को एक लाइन का एक फैक्स भेजा, जिसमें लिखा था, 'पशुपालन विभाग के पिछले तीन सालों के खर्च का ब्यौरा पेश करें.'

इस एक मैसेज ने जैसे 'भानुमती का पिटारा' खोल दिया. 20 जनवरी को मैंने अपने एक एडिशनल सेक्रेटरी को रांची भेजा ताकि वह पता लगा सकें कि तीन सालों में ये पैसे कहां खर्च हुए. 21 जनवरी को उन्होंने जानकारी दी कि बजट से ज्यादा खर्च करने के साथ-साथ पैसे निकालने के लिए जो बिल और वाउचर जमा किए गए हैं वे सभी फर्जी हैं.

मैंने उनसे कहा कि सभी बिलों को सीज कर वापस आ जाएं. वह 22 जनवरी को पटना लौट आए. सभी दस्तावेजों की छानबीन के बाद मैंने अगले दिन राज्य सरकार को एक फाइल भेजी जिसमें इस बात का पूरा विवरण था कि रांची में कैसे एक बड़ा घोटाला हुआ है. मैंने संदिग्धों के खिलाफ FIR दर्ज करने का सुझाव दिया था.

सरकार ने इसे छिपाकर रखा हालांकि सभी जिला कलेक्टरों ने मेरे निर्देश के बाद एक्शन लेना शुरू कर दिया था. 27 जनवरी 1996 को मैंने चाईबासा जिले के कलेक्टर को निर्देशित किया कि वह चाईबासा ट्रेजरी में रेड मारें. इस रेड में जो सामने आया उसने पूरे देश में खलबली मचा दी. इस रेड के बाद चारा सप्लायर्स और कई कर्मचारी अंडरग्राउंड हो गए.

तब भी राज्य सरकार ने मेरे सुझाव पर गौर नहीं किया.

लालू यादव तब बिहार के मुख्यमंत्री थे. सरकार ने 30 जनवरी को मेरे सुझाव के आधार पर कदम उठाए. 23 से 30 जनवरी के बीच कई चीजें हुईं, आप समझ सकते हैं कि राजनेताओं ने क्या-क्या करने की कोशिश की होगी. लेकिन इस पूरे सप्ताह दुमका, रांची और अन्य जिलों में रेड से निकलने वाली जानकारी मीडिया में छाई रही.

हालांकि किसी ने मुझ पर दबाव डालने की कोशिश नहीं की लेकिन सरकार के लोगों ने जांच में देरी करने की कोशिश जरूर की. लेकिन तब तक उनके लिए बहुत देर हो चुकी थी और घोटाला सामने आ चुका था. यह 300 करोड़ से अधिक का घोटाला था.

इस साल के अंत में विपक्ष के दबाव में राज्य सरकार ने सीबीआई जांच का सुझाव दिया और 50 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए. साल 1997 में 23 जून को सीबीआई ने लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले का आरोपी बनाया जिसके चलते उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी.

(विजय शंकर दुबे (74) बिहार और झारखंड के पूर्व मुख्य सचिव रह चुके हैं. 1966 बैच के आईएएस अधिकारी दुबे साल 2002 में रिटायर हुए. इसके बाद उन्होंने साल 2003 से 2009 तक नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी में कुलसचिव के रूप में सेवाएं दीं.)