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यूपी डायरी: ब्लैक कैट कमांडो, मुस्कान और अधूरे ख्वाबों की खरीद-फरोख्त

11 फरवरी को पहले चरण में पश्चिमी यूपी की 73 सीटों के लिए मतदान होना है

Rakesh Bedi

यूपी की खतौली विधानसभा से चुनाव लड़ रहे राष्ट्रीय लोकदल के करतार सिंह भड़ाना के प्रचार में उनके कारोबारी बेटे मन्नू भड़ाना भी लगे हैं. मन्नू के साथ साए की तरह चलता है एक 'ब्लैक कैट कमांडो'. ये असली ब्लैक कैट कमांडो नहीं. मगर पहनावा और चाल-ढाल वैसी ही है, सिवा तोंद के.

काला लिबास, नाइकी के काले जूते और काला कलावा. वो कोई हथियार लेकर नहीं चलता, क्योंकि चुनाव के चलते हथियार लेकर चलने पर पाबंदी है. लंबे कद का ये कमांडो खुद को हरियाणा पुलिस का बताता है. उसका दावा है कि वो बरसों से करतार सिंह भड़ाना के परिवार के साथ है. करतार सिंह भड़ाना, पहले हरियाणा में मंत्री रहे थे.


मन्नू भड़ाना पूरे जी-जान से अपने पिता करतार सिंह भड़ाना के लिए चुनाव प्रचार कर रहे हैं

मन्नू भड़ाना बागपत के जिस गांव में भी प्रचार के लिए जाते हैं, वहां वो बुजुर्गों के पैर छूते हैं. युवाओं की पीठ थपथपाते हैं. चुनावी शोर-शराबे के बीच उनके साथ चलता ये कमांडो अपनी कद-काठी के चलते अलग ही दिखता है.

जब मन्नू लोगों से मिलते रहते हैं, तो वो भी वहां मौजूद लोगों से बात करने की कोशिश करता है. मगर अचानक ही बात खत्म कर के चल देता है. जब मन्नू वहां से अपनी पोर्शे कार में बैठने के लिए आगे बढ़ते हैं. जैसे ही वो गाड़ी मे बैठते हैं, कमांडो उन्हीं की कंपनी का बनाया मिनरल वाटर थमा देता है.

हाथ में दिल

मुजफ्फरनगर की रहने वाली मुस्कान अपने पिता के साथ उनकी दुकान पर बैठती है. वो अपनी हथेली पर ही दिल का नक्श उकेरती है. उसकी कहानी किसी का भी दिल पिघला दे. वो कैराना में बने एक शरणार्थी कैंप में रहती है.

मुस्कान किस्मतवाली है कि उसे एक कर्मठ पिता मिला है. मुस्कान के पिता ने अपनी मेहनत और लगन से दंगा पीड़ितों के कैंप में ही छोटी सी दुकान खड़ी कर ली है, जो उन गंदे कैंपों में अलग ही दिखती है.

मुस्कान अपने पिता के साथ उनकी छोटी सी दुकान में

मुस्कान बहुत गर्व से अपने पिता की दुकान पर बैठती है. अपनी चमकीली ड्रेस पहनकर बैठी मुस्कान, दुकान में अपने पिता की मदद करती है. जब भी उसके पिता अपनी दर्दनाक दास्तां टुकड़ों में सुनाते हैं, मुस्कान उनके अधूरे वाक्य पूरे करती चलती है. मसलन जैसे ही मुस्कान के पिता कहते हैं कि... हम नहीं चाहते... मुस्कान उसमें जोड़ती है कि... हम वापस मुजफ्फरनगर जाएं. बाप-बेटी की ये जुगलबंदी, मुश्किलों के शिकार कैराना के कैंप की सबसे चमकदार दास्तान है.

गुड़ की पेटी

पश्चिमी यूपी में ये गुड़ का सीजन है. इलाके की व्यस्त सड़कों पर आपको हर वक्त गन्ने से लदे ट्रैक्टर और ट्रक आते-जाते दिख जाएंगे. पास के खेतों-बागों से धुआं उठता दिखेगा, जहां गन्ने के रस को पकाकर गुड़ बनाने का काम चलता रहता है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर गन्ना की पैदावार होती है

ऐसे ही कारखाने में एक शख्स, लोगों को समझाता है कि वो वहां का गुड़ न खरीदें. वो उन्हें अपने साथ अंदर लेकर जाता है, जहां भूरे रंग के गुड़ के ढेर लगे हैं, उनकी पैकिंग चल रही है. वो बताता है कि ये गुड़ बाजार के लिए है, वहां लोग इसकी चमक देखकर आसानी से खरीद लेंगे.

धुआं-धुआं से इस माहौल को देखकर लगता है जैसे ये लोगों का गुबार है जो धुएं की शक्ल में बाहर आ रहा है.

नोटबंदी का नया रंग

8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का एलान कर के देश को बड़ा झटका दिया था. उस दौरान शादियों की तैयारी करने वाले लोग मोदी और उनकी सरकार को जी भर-भर के गालियां देते हैं. मोदी सरकार के लिए अच्छी बात ये रही कि दिसंबर में शादियों का सीजन छोटा था, सो उन्हें गालियां भी कम पड़ीं.

मगर अब फरवरी का महीना है, खूब शादियां हो रही हैं और अब लोग गालियां देने के बजाय नाचने-गाने और जश्न मनाने में व्यस्त हैं. बारात और उनके शोर सड़कों पर अक्सर सुनाई पड़ जाते हैं. ऐसा लगता है कि लोग नोटबंदी के खात्मे का जश्न मना रहे हैं.

सहारनपुर में कतार से बने शादी घरों में जोर-जोर से पंजाबी गानों की धुनें बजाई जा रही हैं. सड़कों पर जाम लग जाता है. मगर बाराती नाचने-गाने में इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें जाम में फंसे लोगों की जरा भी परवाह नहीं होती.

इस जश्न में कई लोग नोटों की बरसात करते भी दिखाई दे जाते हैं. तो क्या प्रधानमंत्री इस मंजर को देखकर एक बार फिर से नोटबंदी करेंगे? शायद नहीं. तो अच्छा है न... जश्न को जारी रहने दो.

कोहिनूर जो हीरा नहीं

अनीता आनंद और विलियम डेलरिंपल ने कोहिनूर हीरे के बारे में एक किताब लिखी है. जिसमें उस मशहूर हीरे की दास्तां है जिसे भारत ने दो सौ साल पहले गंवा दिया था. मगर उस किताब को पढ़कर आपको ज्यादा फायदा नहीं होगा.

जब आप लोनी से बागपत जाते हुए गाड़ियों की भीड़ में से एक बोर्ड झांकता हुआ देखेंगे. इस पर लिखा है, कोहिनूर सिटी. यूं तो हम भारतीयों की आदत है कि हम अधूरे ख्वाबों की खरीद-फरोख्त करते हैं. मगर वहां पर अधूरे फ्लाईओवर से लटकता कोहिनूर सिटी का बोर्ड आपको चौंका देगा.

मुजफ्फरनगर में दंगों के बाद से दोनों समुदायों के बीच एक दूसरे के प्रति अविश्वास और भरोसे की कमी है

बागपत जाते वक्त आपको गरीबी के एक से एक मंजर देखने को मिलते हैं. मगर इस गुरबत के ढेर के बीच में से झांकते खाली पड़े फ्लैट एक से एक नाम वाले हैं. कोई गैलेक्सी है तो कोई ऑर्किड अपार्टमेंट. ये भी उस कोहिनूर हीरे जैसे ही हैं, जिनके ख्वाब तो बहुत लोग देखते हैं मगर उन्हें हासिल करने की हसरत लिए दुनिया से विदा हो जाते हैं.

गरीबों के देश में रईस

पूरे कैराना में आपको शाहरुख़ खान की नई फिल्म 'रईस' के पोस्टर दिख जाएंगे. कैराना की इमारतों की गंदी, ढहती दीवारों पर लगे ये पोस्टर एक झटके में गरीब-अमीर के मेल की दास्तां कहते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक तबका उन लोगों का है जिनके पास खूब पैसा है. जो खेती कर के अमीर बने हैं. मगर इसी इलाके में बहुत से लोग गुरबत में भी दिन गुजार रहे है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अमीरी और गरीबी के बीच का फर्क साफ दिखता है

कैराना में ही मुजफ्फरनगर दंगों के पीड़ितों के लिए कैंप बसाया गया है. इन कैंपों और आस-पास के गरीब मुहल्लों में लोग रईस हैं. मगर वो पैसे के रईस नहीं. दिलदार हैं.

पैसों की कमी को शायद वो शाहरुख की 'रईस' फिल्म के पोस्टर लगाकर पूरी करते हैं. हमारे देश में जाति और धर्म की तमाम सामाजिक असमानताएं देखने को मिलती हैं. जब तक इन्हें दूर करने के तरीकों की तलाश जारी है, तब तक गंदी दीवारों पर लगे 'रईस' के पोस्टर आंखों को सुकून देने के लिए जरूरी हैं.