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चुनावों में VVPAT का इस्तेमाल- नतीजों में विश्वास के साथ इंतजार भी बढ़ेगा

ईवीएम के साथ वीवीपैट जोड़ने के फैसले के बाद राजनीतिक पार्टियां शांत हो जाएंगी इसकी कोई गारंटी नहीं है

Kinshuk Praval

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और दिल्ली एमसीडी चुनावों के बाद हारी हुई पार्टियों के निशाने पर ईवीएम आ गई. मतगणना की लंबी प्रक्रिया को आसान और जल्द नतीजे देने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर गड़बड़ी और हैकिंग के आरोप लगे.  यहां तक कि आम आदमी पार्टी, बीएसपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग तक कर डाली. लेकिन चुनाव की पारदर्शिता और निष्पक्षता को बढ़ाने के लिये चुनाव आयोग के पास विकल्पों की कमी नहीं हैं.

पहले उसने ईवीएम हैकिंग चैलेंज रख कर ईवीएम को लेकर फैलाई गई अफवाहों और भ्रांतियों को दूर किया तो अब वीवीपैट को लेकर कमर कस ली है. माना जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों में ईवीएम के साथ वीवीपैट का सौ प्रतिशत इस्तेमाल हो सकता है. चुनाव की नई तकनीकी व्यवस्था यानी वीवीपैट को वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल कहा जाता है.


वीवीपैट से नतीजों का इंतजार होगा लंबा

माना जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग वीवीपैट को लागू करने और सभी विधानसभा क्षेत्रों के पोलिंग स्टेशन में पेपर ट्रेल की मतगणना को पूरी तरह अनिवार्य कर सकता है.

लेकिन चुनाव आयोग के इस कदम से चुनावी नतीजों का इंतजार बढ़ सकता है. जहां पहले ईवीएम की वजह से सुबह ग्यारह बजे तक तस्वीर एकदम साफ हो जाती थी वहीं वीवीपैट की काउंटिंग की वजह से नतीजों का इंतजार 3 से 4 घंटे और बढ़ सकता है. वर्तमान में महज आधे घंटे में ही रुझानों से पार्टियों की स्थिति सामने दिखाई देने लगती है लेकिन पेपर ट्रेल के इस्तेमाल होने से इंतजार लंबा और उत्सुकता बढ़ाने वाला हो सकता है.

वीवीपैट (VVPAT) एक प्रिंटर मशीन है जो कि ईवीएम की बैलेट यूनिट से जुड़ी होती है. ये मशीन बैलेट यूनिट के साथ उस कमरे में रखी जाती है जहां वोटर गुप्त मतदान करने जाते हैं. वोटिंग के बाद वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है जिसमें उस पार्टी और उम्मीदवार की जानकारी होती है जिसे मतदाता ने वोट डाला.

वोटिंग के लिये ईवीएम का बटन दबाने के साथ वीवीपैट पर एक पारदर्शी खिड़की के जरिये वोटर को पता चल जाता है कि उसका वोट उसके ही उम्मीदवार को गया है. मतगणना के वक्त अगर कोई विवाद हो तो वीवीपैट बॉक्स की पर्चियां  गिनकर ईवीएम के नतीजों से मिलान भी किया जा सकता है.

वोट ही नहीं वीवीपैट पर्चियों की गिनती भी होगी

लेकिन इसमें दिक्कत ये है कि यदि पर्चियों की गिनती ईवीएम के नतीजों के पहले हो जाती है तो ईवीएम के चुनावी रुझान आने में 3 घंटे का समय लग सकता है. यदि पर्चियों की गिनती का काम आखिरी में होता है तो तब भी नतीजों में 3 घंटों की देरी होगी.

चुनाव आयोग चाहता है कि किसी भी विधानसभा क्षेत्र के आसपास के चार से पांच प्रतिशत पोलिंग स्टेशन में वीवीपीएटी की पर्ची की गिनती भी अनिवार्य हो. वीवीपैट ट्रेल को लेकर चुनाव आयोग जल्द ही गाइडलाइंस भी जारी कर सकता है.

साथ ही चुनाव आयोग की गठित पैनल ने आम आदमी पार्टी की उस मांग को खारिज कर दिया जिसमें उसने 25 प्रतिशत पोलिंग स्टेशन में वीवीपीएटी की पर्चियों से मतगणना कराने को कहा था. पैनल ने मांग को अव्यावहारिक बताते हुए इससे नतीजों में 26 घंटों की देरी की आशंका जताई है.

चुनाव आयोग पर सवाल हार की हताशा का प्रमाण

दरअसल राजनीतिक दलों की चुनाव में हार के बाद हताशा ने चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर ईवीएम की आड़ में सवाल उठाया. दिल्ली में आम आदमी पार्टी एमसीडी के चुनाव में हारी तो यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता से उखाड़ फेंकी गई. हार से झुंझलाई आम आदमी पार्टी ने ईवीएम की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए विधानसभा में ‘ईवीएम टैम्परिंग’ का सेशन तक कर डाला. जिसके बाद चुनाव आयोग ने ईवीएम हैकिंग चैलेंज भी रखा जिससे विपक्षी दलों ने किनारा कर लिया.

आरोप लगाने वाले तो वीवीपैट पर भी सवाल करेंगे

वीवीपैट की पर्ची से वोटर को ये पता चल जाता है कि उसका वोट उसी उम्मीदवार को पहुंचा है जिसके नाम के आगे का बटन उसने दबाया है. लेकिन सियासी खुरपेंच इस नई प्रक्रिया को भी नुकसान पहुंचा सकता है.

अगर किसी इलाके में किसी राजनीतिक दल को अपने उम्मीदवार की हार की भनक लग गई तो वो पोलिंग को टैम्पर कर सकता है. कोई भी कार्यकर्ता वोटिंग के बाद ये आरोप लगा सकता है की वीवीपैट से मिली पर्ची वो नहीं है जिसे उसने ईवीएम में वोट दिया. ऐसे में चुनाव आयोग क्या करेगा?

ईवीएम में गड़बड़ी के आरोपों को देखते हुए ही वीवीपैट का इस्तेमाल शुरू किया जा रहा है. लेकिन आरोप लगाने वाले वीवीपैट की पर्ची पर भी सवाल खड़े कर वोटिंग की प्रक्रिया को बाधा पहुंचा सकते हैं.

देश में कुल 16 लाख ईवीएम चुनावों में इस्तेमाल होती हैं. इतनी ही तादाद में वीवीपैट मशीनों की भी जरुरत पड़ेगी. नई पेपर ट्रेल मशीनों के लिये चुनाव आयोग ने सरकार से 3 हजार करोड़ रुपये की मांग की है. चुनाव आयोग का लक्ष्य है कि साल 2019 के लोकसभा चुनावों में पूरी तरह वीवीपैट का इस्तेमाल कर सके. हाल में गोवा विधानसभा चुनावों में हर बूथ पर वीवीपैट का इस्तेमाल किया गया था.

अब भले ही चुनाव आयोग वीवीपैट की वजह से ईवीएम को लेकर जताई जा रही आशंकाओं पर संतुष्ट नजर आ रहा है लेकिन वीवीपैट को लेकर राजनीतिक पार्टियां मौका पड़ने पर नए गुल खिला सकती हैं. ऐसे में चुनाव आयोग को ये सुनिश्चित करना होगा कि राजनीतिक आरोपों का प्रैक्टिकल सॉल्यूशन क्या होगा ताकि किसी भी बूथ पर मतदान बाधित ना हो.