जबसे चुनाव आयोग ने गुजरात चुनावों की तारीख की घोषणा नहीं की थी, तबसे उसकी आलोचना हो रही थी. आयोग विपक्ष के निशाने पर लगातार बना हुआ था. अब इस मामले में आयोग ने पहली बार अपनी प्रतिक्रिया दी है.
आयोग ने कहा है कि उसने गुजरात में आई बाढ़ के चलते चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं किया था क्योंकि इससे राहत कार्य प्रभावित होता और उसे पता था कि इस कदम के लिए उसकी आलोचना की जाएगी.
'आयोग मजबूती से नहीं रख पाया अपनी बात'
मेल टुडे से बातचीत में इलेक्शन कमिश्नर ओपी रावत ने बताया कि आयोग ने 9 और 10 अक्टूबर को चुनाव का दौरा किया था और हमारा यही फीडबैक था कि अगर हम तारीखों का ऐलान कर देते हैं तो राज्य में बाढ़ राहत कार्यों में रुकावट पैदा होगी. हमारे सामने और कोई रास्ता नहीं था. हमने तारीखों का ऐलान न करके बड़ा फैसला लिया और हम जानते थे कि हमारी इसके लिए आलोचना की जाएगी लेकिन हमें जमीनी हकीकत पर ही नजर रखनी थी.
रावत ने ये भी कहा कि शायद आयोग तारीखों के ऐलान न करने के पीछे के अपने कारणों को उतनी मजबूती से नहीं रख पाया था, जितना कि उस प्रेस कॉ़न्फ्रेस में रखना चाहिए था.
पी चिदंबरम के बयान के बाद आई है प्रतिक्रिया
12 अक्टूबर को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के 8 दिन बाद आयोग ने ये प्रतिक्रिया दी है. ये बात दिलचस्प है क्योंकि अभी शुक्रवार को ही पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने आयोग पर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था कि गुजरात चुनाव की घोषणा आयोग नहीं पीएम मोदी करेंगे.
कांग्रेस ने आयोग के इस कदम की काफी आलोचना की थी. कांग्रेस का कहना था कि आयोग का ये फैसला बीजेपी से प्रभावित है. आयोग तबतक तारीखों का ऐलान नहीं करेगी, जबतक पीएम गुजरात जाकर लुभावनी घोषणाएं नहीं कर लेते.
आयोग के इस प्रतिक्रिया पर अब उमर अब्दुल्लाह सामने आ गए हैं. उन्होंने जर्नलिस्ट आशुतोष मिश्रा के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा, 'अगर गुजरात में बाढ़ की वजह से तारीखों की घोषणा नहीं हुई, तो आयोग 2014 में जम्मू-कश्मीर इलेक्शन में कहां था? वहां भी बाढ़ थी.'
आशुतोष मिश्रा ने लिखा था कि 'आयोग तारीखों की घोषणा नहीं होने के पीछे बाढ़ को बता रहा है, लेकिन पिछले 15 दिनों में किसी भी नेता या मंत्री को गुजरात जाकर राहत कार्यों में हिस्सा लेते नहीं देखा. बाढ़ कहां है?'