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DUSU चुनाव: क्या 'आप' में घटते मूल्यों की वजह से हारा पार्टी का स्टूडेंट विंग CYSS?

सीवाईएसएस ने सीपीआई (एम-एल) की छात्र इकाई आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. लेकिन, एक बार फिर हार गया है

Debobrat Ghose

कभी भ्रष्टाचार से लड़ने का मज़बूत इरादा दिखाकर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई और युवाओं की पसंद बनी आम आदमी पार्टी ने शायद अपने कोर वोटर का भरोसा खो दिया है. हाल ही में हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के चुनाव में आम आदमी पार्टी के छात्र संगठन छात्र युवा संघर्ष समिति (CYSS) की एक बार फिर से बुरी तरह से हार हुई है.

2015 में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 70 में से 67 विधानसभा सीटें जीतकर सत्ता हासिल की थी. लेकिन, आज आम आदमी पार्टी की छात्र इकाई, छात्रों पर असर छोड़ने में नाकाम रही है. इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन से पैदा हुई आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के सियासी मैदान में हलचल मचाते हुए बीजेपी और कांग्रेस को हराकर सत्ता हासिल की थी. ऐसे में ये उम्मीद थी कि आम आदमी पार्टी का छात्र संगठन सीवाईएसएस, दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र संघ का चुनाव जीतकर एक और इतिहास रचेगी.


सीवाईएसएस ने पहली बार 2015 में छात्रसंघ के चुनाव में शिरकत की थी. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. पहली बार जब सीवाईएसएस ने छात्रसंघ का चुनाव लड़ा था, तो इसके उम्मीदवार तीसरे और चौथे नंबर पर रहे थे. इसके बाद अगले दो साल तक सीवाईएसएस शांत रही. इस साल एक बार फिर से सीवाईएसएस ने सीपीआई (एम-एल) की छात्र इकाई आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन के साथ मिलकर छात्रसंघ का चुनाव लड़ा था. लेकिन, एक बार फिर से छात्र युवा संघर्ष समिति, कोई असर छोड़ने में नाकाम रही है.

आख़िर क्यों नाकाम रही छात्र युवा संघर्ष समिति

आम आदमी पार्टी ने 2015 के डूसू चुनाव को देखते हुए 27 सितंबर 2014 को सीवाईएसएस का लॉन्च किया था. इंडिया अगेंस्ट करप्शन के स्वयंसेवक और युवा समर्थक जो आंदोलन में शामिल थे, वो बाद में आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे, वो ये महसूस करते हैं कि आम आदमी पार्टी ने बुनियादी सिद्धांतों से जो समझौते किए हैं, उसका सीवाईएसएस को बहुत नुकसान हुआ है.

स्वराज इंडिया के दिल्ली के अध्यक्ष अनुपम कहते हैं कि, 'जब 2015 में आम आदमी पार्टी को ऐतिहासिक बहुमत मिला था, तो ये राष्ट्रीय स्तर पर एक नई उम्मीद की तरह देखी गई थी. लेकिन, आज इसके छात्र संगठन सीवाईएसएस और बाकी दलों के छात्र संगठन जैसे एबीवीपी और एनएसयूआई में कोई फर्क नही. इसकी बड़ी वजह यही है कि आम आदमी पार्टी में आज नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों का पतन हो चुका है. डूसू के चुनाव में साफ दिखता है कि सीवाईएसएस भी धन बल और संख्या बल के साथ-साथ चुनाव जीतने के लिए पार्टी की मशीनरी पर निर्भर है. ये परंपरागत विरोधियों से उनके स्तर पर जाकर भी मुकाबला नहीं कर पा रही है.'

अनुपम, आम आदमी पार्टी से शुरुआती दिनों में जुड़े रहे थे. बाद में वो योगेंद्र यादव के साथ आम आदमी पार्टी छोड़ कर स्वराज अभियान में शामिल हो गए थे. बाद में वो नई पार्टी स्वराज इंडिया का हिस्सा बन गए थे.

सीवाईएसएस की नाकामी के कारण

-आम आदमी पार्टी ने युवा शक्ति की अनदेखी की.

-पार्टी युवा और छात्र इकाई को मज़बूत करने में नाकाम रही.

-डूसू चुनाव में बिना रणनीति के चुनाव लड़ा.

-सत्ता में आने के बाद पार्टी की प्राथमिकताएं बदल गईं.

-अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के मुक़ाबले सीवाईएसएस का संगठन कमज़ोर है.

-आम आदमी पार्टी और इसके नेता अरविंद केजरीवाल की छवि को तगड़ा झटका.

-आम आदमी पार्टी की क्रांतिकारी छवि पर दाग़ लगा.

-आम आदमी पार्टी का युवाओं के बजाय दूसरे समुदायों पर ज़ोर.

-युवाओं और छात्रों के बीच आम आदमी पार्टी को लेकर निराशा.

-आइसा से हाथ मिलाना.

आइसा से समझौता करना पार्टी को कर गया और कमजोर

आम आदमी पार्टी के नेताओं के मुताबिक, सीवाईएसएस चुनाव मैदान में देर से उतरी. उसने आइसा से भी अगस्त के आख़िर में समझौता किया. ये आम आदमी पार्टी की रणनीति में कमी को भी उजागर करता है.

आम आदमी पार्टी के स्वयंसेवकों के पूर्व प्रमुख करन सिंह कहते हैं कि 'शुरुआत में तो अरविंद केजरीवाल का चेहरा आदर्शवादी राजनीति का प्रतीक था. वो युवाओं को पसंद थे. लेकिन सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी की अंदरूनी लड़ाई से इसकी इमेज को तगड़ा झटका लगा. छात्र आदर्शवाद से प्रभावित होते हैं. बदलाव चाहते हैं. अफसोस की बात है कि आम आदमी पार्टी इन मुद्दों पर काम करने में नाकाम रही थी. यही वजह है कि छात्र आज सीवाईएसएस से जुड़ नहीं पा रहे हैं.'

करन सिंह कहते हैं कि 'युवा हमेशा से आम आदमी पार्टी की ताक़त रहे हैं. लेकिन सत्ता में आने के बाद उनकी अनदेखी की गई. हमने कई बार पार्टी की बैठकों में ये मुद्दा उठाया लेकिन सुनवाई नहीं हुई. एबीवीपी के मुकाबले सीवाईएसएस का संगठन कमज़ोर है. आज ये संगठन भी धनबल और बाहुबल की मदद ले रहा है. फिर भी हार मिली. शायद आम आदमी पार्टी को देर से ये एहसास हुआ कि उसे छात्र संगठन को मजबूत करने की जरूरत है.'

दिल्ली में एबीवीपी और एनएसयूआई का मुकाबला मुश्किल

2017 में राजस्थान में सीवाईएसएस को काफी कामयाबी मिली थी. राज्य भर के छात्र संगठनों के चुनाव में इसने 28 पदों पर जीत हासिल की थी. इनमें से 12 छात्रसंघ अध्यक्ष पद थे. लेकिन दिल्ली की कहानी अलग है. यहां इसका मुकाबला एबीवीपी और एनएसयूआई जैसे मजबूत संगठनों से है.

करन सिंह कहते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू सिर्फ़ दिल्ली नहीं, बल्कि पूरे देश की नुमाइंदगी करते हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी और कॉलेज के कैंपसों में सीवाईएसएस की पहुंच है ही नहीं. इसकी बड़ी वजह आम आदमी पार्टी है. आज युवा इस पार्टी से जुड़ ही नहीं पा रहे हैं.

बहुत से छात्र और सीवाईएसएस के सदस्य मानते हैं कि आईसा से गठबंधन भी नाकामी की बड़ी वजह थी. सीवाईएसएस के एक नेता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि, 'आइसा से हाथ मिलाने के बजाय हमें खुद को मजबूत करके चुनाव लड़ना चाहिए था. अगर आम आदमी पार्टी को बिना किसी से हाथ मिलाए ऐतिहासिक बहुमत मिल सकता है, तो सीवाईएसएस को क्यों नहीं? आइसा के साथ गठबंधन की वजह से बहुत से छात्र पशोपेश में पड़ गए. वो किसी वामपंथी संगठन के साथ नहीं जुड़ना चाहते थे. सीवाईएसएस को अपने आप को स्वतंत्र रूप से मजबूत संगठन के तौर पर खड़ा करना चाहिए था.'

(सभी तस्वीरें CYSS के फेसबुक पेज से साभार)