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ममता बनर्जी की 'सद्भावना नीति' हिंदू-मुस्लिम में दरार डालने वाली है

ममता की तरफ से तर्क तो सद्भाव बढ़ाने का दिया जाता है, लेकिन, उनके तर्कों में किसी खास समुदाय को खुश करने की मंशा ज्यादा दिखती है.

Amitesh

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का हर कदम तुष्टीकरण को बढ़ावा देने वाला दिख रहा है. ममता की तरफ से तर्क तो सद्भाव बढ़ाने का दिया जाता है, लेकिन, उनके तर्कों में सद्भाव और भाईचारे से ज्यादा किसी खास समुदाय को खुश करने की मंशा साफ दिखती है. लेकिन, यही मंशा सद्भाव और भाईचारे को बढ़ाने के बजाए और बिगाड़कर रख देती है.

अभी ताजा विवाद हुआ है ममता बनर्जी के उस फैसले को लेकर जिसमें उन्होंने 1 अक्टूबर को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगा दी है. ममता सरकार का तर्क है कि दशहरा के अगले ही दिन 1 अक्टूबर को मुहर्रम है. इसलिए मुहर्रम के बाद 2 अक्टूबर को या उससे आगे दुर्गा प्रतिमा विसर्जन किया जाए. दलील इस बात की दी जा रही है कि मुहर्रम का जुलूस और दुर्गा प्रतिमा विसर्जन एक साथ होने पर सांप्रदायिक तनाव हो सकता है.


अब कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस आदेश पर ममता सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा है कि विसर्जन और मुहर्रम दोनों साथ होंगे. प्रशासन को ये तय करना होगा कि वो विसर्जन और मुहर्रम के लिए अलग-अलग रास्ता निर्धारित करे.

धार्मिक अधिकारों के हनन पर उठे थे सवाल

माहौल खराब होने का बहाना देकर दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगाने की बात बेमानी लगती है क्योंकि सबसे ज्यादा विधि-विधान से दुर्गा पूजा बंगाल में ही मनाई जाती है. इसमें धर्म के मुताबिक पूजा-पाठ और प्रतिमा विसर्जन का समय तय रहता है. ऐसे में अगर सरकार की तरफ से प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगा दी जाती है तो क्या धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं होगा?

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इसी को आधार बनाकर हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी जिसके बाद अब बंगाल की सरकार को फटकार लगी है. ममता सरकार के फैसले से नाराज होकर अधिवक्ता अमरजीत रायचौधरी ने कलकत्ता हाईकोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की थी, जिसमें कहा गया था कि दुर्गा पूजा बंगाल का सबसे बड़ा त्योहार है. उनका तर्क था कि इस दौरान सभी विधियां शुभ समय के अनुसार होती हैं. ऐसे में प्रतिमा विसर्जन का समय बढ़ाकर धार्मिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है.

इस पीआईएल पर सुनवाई के दौरान कलकत्ता हाईकोर्ट ने ममता सरकार को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने राज्य की ममता बनर्जी सरकार से कहा है कि जब आप इस बात का दावा कर रहे हैं कि राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल है तो फिर आप खुद दोनों समुदायों के बीच सांप्रदायिक मतभेद पैदा करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं?

'दोनों त्योहार साथ क्यों नहीं मना सकते?'

अमरजीत राय चौधरी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने ममता सरकार को फटकार लगाई और कहा 'दो समुदाय एक साथ त्योहार क्यों नहीं मना सकते? दुर्गा पूजा और मुहर्रम को लेकर पहले कभी ऐसे हालात नहीं बने थे' हाईकोर्ट का कहना था दोनों समुदाय के बीच किसी तरह की कोई लकीर ना खींचे, बल्कि उन्हें साथ-साथ रहने दें.

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बीजेपी ने राज्य सरकार के इस फैसले की निंदा करते हुए इसे तुष्टिकरण बताया है. बीजेपी के बंगाल अध्यक्ष दिलीप घोष ने फेसबुक पर लिखा कि क्या बंगाल धीरे-धीरे तालिबानी शासन की तरफ बढ़ रहा है? स्कूलों में सरस्वती पूजा रोकी जा रही है, बार-बार दुर्गा पूजा के बाद प्रतिमा विसर्जन रोक दिया जाता है.

ममता सरकार के इस कदम पर हाईकोर्ट की टिप्पणी ने बीजेपी को भी बोलने का मौका दे दिया है. पिछले कई महीनों से बीजेपी और ममता बनर्जी के बीच बंगाल के हालात को लेकर बहस चल रही है. दोनों एक-दूसरे पर राज्य का माहौल खराब करने का आरोप लगाते रहे हैं. बीजेपी और संघ के नेताओं के बंगाल के दौरे के वक्त भी सियासत खूब होती रही है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत तक के दौरे के वक्त कार्यक्रम स्थल की बुकिंग रद्द करने की बात को लेकर भी सवाल खड़े होते रहे हैं. मोहन भागवत के 3 अक्टूबर को होने वाले कार्यक्रम में जिस सरकारी ऑडिटोरियम की बुकिंग की गई थी उसे मेंटेंनेंस के नाम पर रद्द कर दिया गया था. ऐसा ही अमित शाह के हाल के कोलकाता दौरे के वक्त भी हुआ था. ममता बनर्जी भी बीजेपी को ही अपना मुख्य विरोधी मान रही हैं. उन्हें लगता है कि संघ और बीजेपी के लोगों का बढ़ता दखल उन्हें आगे चलकर सियासी तौर पर परेशान कर सकता है.

लेकिन बीजेपी इसे अपने फायदे के तौर पर भी भुना रही है. बीजेपी को लगता है कि उनके नेताओं की रैली पर रोक और अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की ममता की नीति ही उन्हें आगे का रास्ता प्रशस्त करेगी. फिलहाल हाईकोर्ट की फटकार ने ममता बनर्जी को इस पूरे मसले में बैकफुट पर ला दिया है.