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बरेलवी पंथ देवबंदी से कितना अलग है

दोनों बड़े पंथों के बीच कई बातों को लेकर हैं मदभेद

Amitesh

मुसलमानों के दो बड़े पंथ बरेलवी और देवबंदी के गढ़ बरेली और देवबंद में यूपी चुनाव के दूसरे चरण में ही वोटिंग होनी है. बरेली और देवबंद यानी सहारनपुर इलाके में मुस्लिम आबादी बड़ी तादाद में है.

चुनाव के वक्त अक्सर ये चर्चा शुरू हो ही जाती है कि इस बार मुसलमानों की सोच क्या है? मुस्लिम मतदाता और उनके रहनुमा आखिर क्या चाहते हैं? दोनों ही पंथों में भारी मतभेद के बावजूद एक-दूसरे के करीब लाने की कवायद होती रहती है. लेकिन, तमाम कोशिशों के बावजूद विरोध के सुर तेज हो जाते हैं.


बरेलवी पंथ देवबंदी से कितना अलग

फोटो: आसिफ खान/फर्स्टपोस्ट हिंदी

बरेलवी पंथ का केंद्र बरेली में है. इस पंथ को मानने वालों के लिए आला हज़रत रज़ा ख़ान की मजार एक केंद्र के रूप में है जहां इस पंथ को मानने वाले मजार पर आकर चादरपोशी भी करते हैं और मन्नतें भी मांगते हैं. जबकि देवबंदी पंथ का केंद्र देवबंद यानी सहारनपुर में है. दोनों ही नाम उत्तर प्रदेश के दो जिलों  बरेली और देवबंद के नाम पर हैं.

बीसवीं सदी की शुरुआत में दो धार्मिक नेता मौलाना अशरफ़ अली थानवी और अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी  हुए थे. अशरफ़ अली थानवी का संबंध दारुल-उलूम देवबंद मदरसे से था, जबकि आला हज़रत अहमद रज़ा ख़ां बरेलवी का संबंध बरेली से था. मौलाना अब्दुल रशीद गंगोही और मौलाना क़ासिम ननोतवी ने 1866 में देवबंद मदरसे की बुनियाद रखी थी.

देवबंदी विचारधारा को आगे बढ़ाने में मौलाना अब्दुल रशीद गंगोही, मौलाना क़ासिम ननोतवी और मौलाना अशरफ़ अली थानवी तीनों की बड़ी भूमिका रही है. भारत और पड़ोसी मुल्कों के अधिकतर मुसलमानों का इन्हीं दो पंथों से वास्ता है.

सहारनपुर के देवबंदी विचारधारा के मानने वालों का दावा है कि क़ुरान और हदीस ही उनकी शरियत का मूल स्रोत है लेकिन इस पर अमल करने के लिए इमाम का अनुसरण करना जरूरी है. इसलिए शरीयत के तमाम कानून इमाम अबू हनीफ़ा के फ़िक़ह के अनुसार हैं.

वहीं बरेलवी विचारधारा के लोग आला हज़रत रज़ा ख़ान बरेलवी के बताए हुए तरीक़े को ज़्यादा सही मानते हैं. बरेली में आला हज़रत रज़ा ख़ान की मज़ार है जो बरेलवी विचारधारा के मानने वालों के लिए बड़े केंद्र के रूप में काम करता है.

दरअसल, दोनों ही विचारधारा के लोगों में कुछ बातों में मतभेद हैं. मसलन, बरेलवी इस बात को मानते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद सब कुछ जानते हैं, जो दिखता है वो भी और जो नहीं दिखता है वो भी. वह हर जगह मौजूद हैं और सब कुछ देख रहे हैं. मतलब पैगंबर इल्मे गैब थे.

वहीं देवबंदी विचारधारा के लोग इसमें विश्वास नहीं रखते. देवबंदी अल्लाह के बाद पैगंबर मोहम्मद को दूसरे स्थान पर रखते हैं लेकिन उन्हें इंसान मानते हैं.

बरेलवी सूफी इस्लाम को मानते हैं और मजार पर जाने और चादर चढाने को जायज मानते हैं लेकिन, देवबंदी मजार और चादरपोशी को मना करते हैं.

विवाद सुलझाने की कोशिश पर नहीं है सहमति

कई मर्तबा दोनों ही मसलकों के बीच के विवाद को खत्म करने की कोशिश होती रही है.

बरेलवी मसलक की आला हजरत दरगाह ने देवबंदी- बरेलवी विवाद को खत्म करने के लिए पहल भी की. इसके बावत बरेलवी मुफ्तियों का एक पैनल भी बनाया गया था. लेकिन, उनकी तरफ से यह उम्मीद भी जताई गई थी कि देवबंदी भी एक ऐसा पैनल बनाकर सारे विवादों को हल करने की कोशिश करेंगे.

क्या है ताजा विवाद

पिछले दिनों नबीर- ए- आला हजरत मौलाना तौक़ीर रज़ा के देवबंद जाने के बाद बरेली में काफी विवाद हो गया था. बरेलवी पंथ का एक तबका तौक़ीर रज़ा के इस कदम के खिलाफ था. लेकिन, मौलाना तौक़ीर रज़ा के देवबंद जाने को देवबंद मसलक के लोगों ने सकारात्मक तरीके से लिया था. देवबंद ने सारे मुसलमानों के एक होने को वक्त की जरूरत बताया था.

फिलहाल तो मौलाना तौकीर रजा अपनी पार्टी इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल यानी आईएमसी के उम्मीदवारों के लिए कैंपेनिंग में मशगूल दिख रहे हैं.