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क्या तमिलनाडु की राजनीति में तूफान लाने में सफल हो सकेंगे दिनाकरण?

दिनाकरण ने ये सुनिश्चित किया कि गुरुवार को सभी की निगाहें मदुरै पर हों लेकिन अभी भी उनका राजनीतिक भविष्य दिल्ली पुलिस की जांच पर टिका है

T S Sudhir

जब टीटीवी दिनाकरण ने अपनी नई पार्टी की घोषणा की तो सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों की चापलूसी भरी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई. दिनाकरण ने अपनी पार्टी का नाम 'अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम' रखने की घोषणा की है. सुनने में पार्टी का संक्षिप्त नाम 'एएमएमके' तमिल के अशिष्ट शब्द अमुक से मिलता जुलता है जिसका मतलब छिपा कर रखना होता है.

अब आप इसे दिनाकरण की प्रतिष्ठा से मिला कर देखें तो आपको ये समझ में आ जाएगा कि दिनाकरण ने अपनी पार्टी का ऐसा नाम क्यों रखा है. दिनाकरण ने आरके नगर उपचुनाव में कथित रूप से वोटरों को खरीदने के लिए प्रति वोटर 6000 रुपए खर्च किए थे.


इस नाम का क्या है मतलब?

दिनाकरण तर्क दे सकते हैं कि नाम में क्या रखा है. सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वे शब्द जो कि अम्मा से मिलते जुलते हैं. दिनाकरण अम्मा से अपनी नजदीकी प्रदर्शित करने में कोई कोर कसर छोड़ नहीं रहे. गुरुवार को मदुरै में एक पब्लिक मीटिंग में दिनाकरण पार्टी के झंडे का अनावरण किया. इस झंडे में जयललिता की तस्वीर लगी हुई है.

ये महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि दिनाकरण खुद को तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता का उत्तराधिकारी दिखाना चाहते हैं. जयललिता की परंपरागत सीट आरके नगर से दिसंबर में उपचुनाव में जीत के बाद दिनाकरण का मदुरै में पार्टी का ऐलान पूरी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है ताकि बाद में वो जयललिता की विरासत पर पूरा हक जता सकें.

जिस समय दिनाकरण मदुरै में बोल रहे थे उसी समय राज्य के वित्त मंत्री ओ पन्नीरसेल्वम चेन्नई में अम्मा सरकार का बजट पेश करने जा रहे थे. अम्मा के फोटो लगे ब्रीफकेस को लेकर पन्नीरसेल्वम बिलकुल उसी तरह से पेश आ रहे थे जैसा वो अम्मा के जमाने में बजट पेश किया करते थे. दरअसल दोनों पक्ष अपने आपको जयललिता की विरासत का असली उत्तराधिकारी दिखाने की कोशिश में जुटे हैं क्योंकि वो जानते हैं कि एआईएडीएमके के कैडरों के लिए ये मायने रखता है.

राजनीतिक आपाधापी

बजट पेश करने के दौरान भी ओपीएस की एक नजर मदुरै पर ही लगी हुई थी क्योंकि दिनाकरण की सभा में जबरदस्त भीड़ पहुंची थी. मदुरै को तमिलनाडु की राजनीतिक राजधानी भी कहते हैं और ये माना जाता है कि चेन्नई की सत्ता तक पहुंचने का रास्ता मंदिरों के शहर मदुरै होकर ही जाता है. एआईएडीएमके के गढ़ मदुरै में दिनाकरण के इस शक्ति प्रदर्शन से सत्तारूढ़ दल की पेशानी पर बल पड़ गए है

पिछले एक महीने में तमिलनाडु पॉलिटिकल स्टार्टअप स्टेट बन गया है. कुछ दिनों पहले कमल हासन, आज दिनाकरण और जल्दी ही रजनीकांत भी इनकी तरह अपनी नई पार्टी लांच कर सकते हैं.

लेकिन सबसे मजेदार बात ये है कि ये सब स्टार्टअप अपनी अलग-अलग विरासत का दावा कर रहे हैं. कमल हासन पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के नाम पर अपना दावा ठोंक रहे हैं, रजनीकांत जनता के सामने एमजीआर के साथ अपने संबंधों की दुहाई देने में जुटे हैं जबकि दिनाकरण अपने आपको जयललिता की विरासत का असली उत्तराधिकारी साबित करने में लगे हैं.

लेकिन दिनाकरण का एएमएमके बनाना एक वैकल्पिक व्यवस्था के अलावा कुछ ज्यादा प्रतीत नहीं होता है क्योंकि उनका मुख्य लक्ष्य असली एआईएडीएमके पर कब्जा करना है. दिनाकरण की निगाहें अब मद्रास हाईकोर्ट पर टिकी हुई हैं. अगर हाईकोर्ट तमिलनाडु विधानसभा के स्पीकर के उस निर्णय को पलट दे जिसमें स्पीकर ने दिनाकरण से जुड़े 18 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी, तो पलानीस्वामी सरकार अल्पमत में आ जाएगी.

दिनाकरण को लगता है कि सरकार गिरने के बाद जब राज्य में एक बार राष्ट्रपति शासन लगा तो एआईएडीएमके का पूरा कैडर उनके पीछे आ जाएगा. शायद यही वजह है कि दिनाकरण ने मदुरै में अपनी ताकत दिखाने में पूरा जोर लगा दिया है.

राजनीतिक दलों की भीड़ में दिनाकरण की नई पार्टी के क्या मायने हैं?

एआईएडीएमके को तमिलनाडु चुनावों में 35 से 40 फीसदी वोट मिलते रहे हैं दिनाकरण पूरी कोशिश कर रहे हैं कि इस हिस्से का अधिकतर वोट उनके कब्जे में आ जाए. एआईएडीएमके जाति के आधार पर बंटा हुआ है ऐसे में ओपीएस की चिंता की वाजिब वजहें हैं.

दरअसल ओपीएस और दिनाकरण दोनों का सपोर्ट बेस थेवर समुदाय है और दोनों उसी जाति से आते हैं. एक तरफ जहां दिनाकरण का प्रभाव बढ़ रहा है वहीं दूसरी तरफ ओपीएस की लोकप्रियता ढलान पर है. हां ईपीएस इस मामले में चिंतामुक्त है, ऐसा इसलिए है क्योंकि ईपीएस जिस गोंडर समुदाय से आते हैं उन्हें उस समुदाय का अभी भी पूरा समर्थन है. गोंडर समुदाय ईपीएस का विरोध करके थेवर समुदाय के मुकाबले अपनी राजनीतिक बढ़त को खोना नहीं चाहता है.

पलानीस्वामी

इन सभी राजनीतिक घटनाक्रमों पर डीएमके ने अपनी पैनी नजर बनाए रखी है. राजनीति में एंट्री मारने वाले फिल्म स्टार कमल हासन और रजनीकांत तमिल फिल्मों के बड़े कलाकार हैं और उनका विशाल प्रशंसक वर्ग भी है लेकिन उनकी सबसे बड़ी समस्या ये है कि उन्हें चुनाव लड़ने के सामान्य तौर तरीके के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है.

लेकिन कमल हासन और रजनीकांत के मुकाबले दिनाकरण डीएमके के लिए ज्यादा बड़ा खतरा बन सकते हैं क्योंकि न केवल उन्हें चुनाव लड़ने का अनुभव है बल्कि उन्हें जयललिता और शशिकला जैसे धाकड़ नेताओं ने संवारा है ऐसे में उन्हें चुनाव लड़ने और जीतने की सभी तरीको की पूरी जानकारी है.

दिनाकरण पर भारी पड़ेगा रिश्वत मामला

क्या दो पत्तियों और आरके नगर उपचुनाव में रिश्वत मामले दिनाकरण पर भारी पड़ सकते हैं? ये सब इस पर निर्भर करेगा कि कमल हासन जैसे लोग वोटरों पर कितना प्रभाव डाल सकते हैं. वैसे तमिलनाडु के लोगों का पुराना रिकॉर्ड ये बताता है कि वो चुनावों के दौरान उम्मीदवारों को एटीएम के तौर पर लेते हैं

दिनाकरण ने ये सुनिश्चित किया कि गुरुवार को सभी की निगाहें मदुरै पर हों लेकिन अभी भी उनका राजनीतिक भविष्य दिल्ली पुलिस की जांच पर टिका है. अगर दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ चल रहे मामले में आगे कदम बढ़ाया तो उनकी मुसीबतों में और इजाफा हो जाएगा.

पिछले साल जब वो 40 दिन जेल में बिता कर वापस लौटे तो कैडरों उनका स्वागत एक हीरो की तरह किया जिसने दिल्ली में बैठी सत्ता को सीधे चुनौती देने का साहस जुटाया न की ईपीएस-ओपीएस की तरह बीजेपी के पिछलग्गू बने रहे . लेकिन इसके बावजूद एक बार और जेल जाना दिनाकरण के राजनितिक भविष्य के लिए घातक हो सकता है.