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नोटबैन और कैशलेस इकोनॉमी: बदल सकेगी चुनावी जंग की तस्वीर?

तकनीक के इस्‍तेमाल से चुनावों में बड़े पैमाने पर हेरफेर मुमकिन है.

Prakash Katoch

नोटबंदी ने सियासी पारे को बढ़ा दिया है. संसद के अंदर और बाहर हंगामा जारी है. इस नोटबंदी ने राजनीतिक दलों के काले धन से भरे भंडार को रद्दी बना दिया है.

कई वर्तमान और होने वाले मुख्यमंत्री अपनी खीज छुपा नहीं  पा रहे हैं. ताबड़तोड़ प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए जनता के कंधे पर रखकर बंदूक चलाए जा रहे हैं.


इस बीच अफवाह यह है कि 2018 के बाद 2000 रुपए के नोट भी बंद कर दिए जाएंगे. ऐसा होता है तो 2019 के चुनाव की तैयारी करने वालों को भी झटका लगेगा. अब वो 2000 के नोट इकट्ठा करने की सोच भी नहीं सकते. हालांकि भारत जुगाड़ों का देश हैं, यहां हर समस्या का कोई-न-कोई जुगाड़ निकल ही आता है.

वैसे राजनीतिक दलों को घबराने की जरुरत नहीं है. आखिर विदेशी चंदे को भी तो मान्यता दे दी गई है.

नोटबंदी से कितना कालाधन खत्म होगा या फिर कितना फिर से बनेगा यह कई चीजों पर निर्भर करता है. उम्मीद है सरकार इसकी पड़ताल करेगी. लेकिन पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को जाली नोट का कारोबार दोबारा फैलाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.

फोटो: पीटीआई

भारत सरकार ने सितंबर 2016 में आईडीएस यानि इनकम डिस्क्लोजर स्कीम चलाई. इस योजना से जितना पैसा सरकार को मिला उसका सौ गुना पैसा इंडोनेशिया ने ऐसी योजना से कमाया. इंडोनेशिया में काले धन की घोषणा करने वाले पर पेनाल्टी भारत के मुकाबले काफी कम रखी गई थी.

खाओ और खाने दो

अर्थशास्त्री मानते हैं कि काले धन को पूरी तरह खत्म कर पाना नामुमकिन है. जुलाई 1993 में गृह मंत्रालय ने एनएन वोहरा कमेटी बनाई थी. इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में राजनीति, सरकारी कर्मचारी और माफिया के बीच गठजोड़ की बात कही थी. कमेटी ने साथ में यह भी कहा था कि केंद्र या राज्य के नेताओं, इनमें काम करने वाले अधिकारियों और अपराधियों के बीच के तालमेल का खुलासा किया गया तो सरकारों का काम करना मुश्किल हो जाएगा.

बिना किसी विशेष राजनीतिक दल का नाम लिए वोहरा समिति ने बताया था कि किस तरह धनबल का इस्तेमाल गुंडा तत्वों को पोसने में किया जाता है. चुनाव के वक्त यही गुंडे राजनीतिक दलों के लिए वोटों का जुगाड़ करते हैं.

भ्रष्टाचार हर तरफ फैला हुआ है. हमारे जेहन में अधिकतर घोटाले 2004 से 2014 के बीच हुए हैं. लेकिन ऐसा क्यूं है कि घोटालेबाज खुलेआम घूम रहे हैं. और कुछ तो सांसद बनकर राज्यसभा में बैठे हैं.

टाट्रा ट्रक घोटाला दबा दिया जाता है क्योंकि यह किसी एक सरकार के कार्यकाल में नहीं हुआ. यह कई सरकारों के कार्यकाल के दौरान किया गया. वोहरा समिति ने उस दबाव को भी बताया जिसमें अनचाहे या भ्रष्ट अधिकारियों को संवेदनशील माने जाने वाले पदों से हटा दिया जाता है. दूसरी तरफ सजा के हकदार घोटालेबाजों को पार्टियां राज्यसभा के लिए नामांकित कर देती हैं.

फोटो: पीटीआई

संसार का नियम है जियो और जीने दो. लेकिन अगर हम इन बड़ी मछलियों को ऐसे ही छोड़ते रहेंगे तो फिर भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ लड़ाई अधूरी ही रह जाएगी.

इसमें कोई दो राय नहीं कि नोटबंदी वक्त की मांग थी. बशर्ते इसे लागू करने से पहले ठोस योजना बनाई जाती और बेहतर तैयारी की जाती.

कैशलेस का डिजीटल डेंजर

लंबे दौर में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में डिजीटल इंडिया और कैशलेस लेनदेन अहम भूमिका निभा सकते हैं. डिजीटल अर्थव्यवस्था पर साइबर क्राइम के भी खतरे रहते हैं. आपकी खून-पसीने की कमाई कोई चुटकियों में साफ कर सकता है. भारत सहित दुनिया भर में इस तरह के मामले रिपोर्ट होते रहे हैं.

लेकिन नोटबंदी पर सियासी पारा बढ़ने का कारण अगले साल होने  वाले विधानसभा चुनाव हैं. 2017 में पंजाब, उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, मणिपुर, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होने हैं. इनकी तारीखों की घोषणा जनवरी में की जाएगी.

जॉन लिलि ने 1579 में आए अपने उपन्यास युक्यूइस: द एनाटॉमी दि विटमें लिखा था मोहब्बत और जंग में सब जायज है.लेकिन राजनीति इससे कहीं आगे निकल चुकी है. तकनीक ने सभी को ताकत दी है. फिर चाहे वह राजनीतिक दल ही क्यों न हो.

सोशल मीडिया पर राजनीतिक दलों की टीम ने डिजीटल युद्ध छेड़ रखा है. यहां इनकी कोशिश एक दूसरे को नीचा दिखाने की रहती है.

लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हमने अपने मुकाबले सायबर दुनिया में ज्यादा काबिल लोगों के खिलाफ सुरक्षा के इंतजाम किए हैं?  डिजीटल इंडिया कार्यक्रम के लिए आवंटित पैसों को देखकर तो ऐसा नहीं लगता.

भारत में जाति, धर्म और संप्रदाय के आधार आरक्षण पर तय होता है. इनका आंकड़ा सरकार के पास है. डिजीटल दुनिया में अगर किसी ने इनके साथ छेड़छाड़ कर दी तो क्या होगा?

कौन नहीं चाहेगा दोबारा मोदी

फोटो: पीटीआई

जिस तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी लागू किया यह क्रमिक विकास का कोई नया पायदान नहीं है. इसे हम एक क्रांतिकारी कदम कह सकते हैं. क्रांति करने में उथल-पुथल ज्यादा होती है.

नोटबंदी से पीएम मोदी की खुद की पार्टी के अंदर भी कुछ असहजता हुई होगी. जिससे मोदी भली-भांति वाकिफ होंगे.

यूपीए-1 और यूपीए-2 के कार्यकाल में योजना आयोग राज्यों को आवंटित किए जाने वाले पैसों का 10 प्रतिशत काट लिया करता था. मोदी ने जब योजना आयोग को भंग किया तब कई लोगों ने नाक-भौं सिकोड़ी.

लेकिन अब नहीं ?

नरेंद्र मोदी को 2019 में भी दोबारा प्रधानमंत्री बनते कौन देखना चाहेगा. हम इसकी निष्पक्ष आंकलन करने की कोशिश करते हैं.

पाकिस्तान और चीन: बिलकुल नहीं

विपक्षी दल: नहीं

एनडीए के घटक दल: कुछ हां, कुछ ना

अपनी पार्टी में: कुछ नहीं चाहेंगे.

इसके अलावा कुछ आंतरिक और बाहरी ताकतें भी हैं, जो एक सीमा से आगे भारत की तरक्‍की नहीं चाहती हैं. चीन चाहता है कि भारत दक्षिण एशिया से बाहर अपने पैर न फैला पाए, सो उसने नोटबंदी को एक 'जुआ' करार दिया है.

साफ है कि भारत के कुछ राजनीतिक दल साम-दाम-दण्ड-भेद अपनाएंगे. अंदरुनी और विदेशी मित्रों, अपने धनबल से और दुष्प्रचार करके धारणा तैयार करने का काम करेंगे. ये दल आधुनिक तकनीक का भी इस्तेमाल करेंगे लेकिन किसी भी कीमत पर मोदी को रोकने की कोशिश करेंगे.

ईवीएम से छेड़छाड़ संभव

डॉ. सुब्रमण्‍यम स्‍वामी बनाम निर्वाचन आयोग (दीवानी याचिका सं. 9093/2013) के मामले में याचिकाकर्ता ने कहा था कि इलेक्‍ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) की मौजूदा प्रणाली अंतरराष्‍ट्रीय मानकों पर कामयाब नहीं है. चुनाव आयोग मानता है कि उससे छेड़छाड़ नहीं हो सकती. लेकिन सभी इलेक्‍ट्रॉनिक उपकरणों की तरह ईवीएम भी हैक किए जा सकते हैं. यह भी कहा गया था कि मतदाता के वोट डालने के बाद उसका प्रिंटआउट निकलना चाहिए. दलील यह है कि इस रसीद से मतदाता आश्‍वस्‍त हो सकेगा कि उसका दिया वोट सही जगह पर गया है. किसी विवाद की सूरत में चुनाव आयोग इस रसीद को सबूत की तरह इस्तेमाल कर सकता है.

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आयोग के वकील का कहना था कि ईवीएम से छेड़छाड़ की आशंका निराधार है. आयोग ईवीएम में वोटर वेरीफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) को लगाने की संभावना की तलाश कर रहा है. इससे चुनाव ज्‍यादा पारदर्शी हो सकेंगे. अदालत ने फैसला दिया था कि वीवीपैट स्‍वतंत्र और निष्‍पक्ष चुनावों के लिए अपरिहार्य है. कोर्ट ने इसे चरणबद्ध तरीके से लागू करने के भी निर्देश दिए.

वीवीपैट प्रिंटर जैसी एक मशीन होती है, जो ईवीएम की मशीन से जुड़ी होती है.  इस पर मतदाता यह जांच सकता है कि उसका वोट सही जगह पड़ा है या नहीं.

अभी तक सभी ईवीएम में वीवीपैट लगा है या नहीं इसकी ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है. लेकिन यह मुद्दा सायबर क्राइम से अलग है. सिमैन्‍टेक सिक्‍योरिटी रिस्‍पॉन्‍स ने 1100 रुपए के उपकरण की मदद से इसे हैक करके दिखा दिया है. ऐसी हैकिंग मतदान से पहले और बाद में भी की जा सकती है.

एक ओर हिलेरी क्लिंटन के समर्थक यह आरोप लगा रहे हैं कि रूस ने हालिया अमेरिकी चुनाव में हेराफेरी की है, तो दूसरी ओर हमारा चुनाव आयोग लगातार दावा किया जा रहा है कि हमारे ईवीएम 'अलग' हैं और इनसे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. भारत में पेशेवर हैकरों और सरकार के लिए काम कर चुके हैकरों का कहना है कि साइबर सुरक्षा के लिहाज से हमारे ईवीएम बहुत पुराने पड़ चुके हैं. इन्‍हें पूरी तरह हैक किया जा सकता है और अतीत में कुछ मौकों पर इनसे छेड़छाड़ की जा चुकी है.

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इससे साफ है कि तकनीक के इस्‍तेमाल से चुनावों में बड़े पैमाने पर हेरफेर मुमकिन है. सरकार को इन मुद्दों पर ध्‍यान देना चाहिए. अगले साल छह राज्‍यों के चुनाव में काफी कुछ दांव पर होगा, जिसका सीधा असर 2019 के आम चुनाव पर पड़ेगा.

(लेखक भारतीय सेना के भूतपूर्व लेफ्टिनेंट जनरल हैं )

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