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नोटबंदी@एक साल: ऐसा फैसला मोदी जैसा नेता ही कर सकता है जिसे लोगों का भरोसा हासिल हो

नोटबंदी पीएम के उठाए गए बड़े रिफॉर्म्स में से एक है और सभी सुधारों को मिलाकर देखने से नोटबंदी के पॉजिटिव असर पता चलते हैं

Syed Zafar Islam

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान रामपुर में महिलाओं का एक बड़ा समूह आपस में बातचीत कर रहा था. यह सर्दियों का मौसम था. अचानक लागू हुई नोटबंदी का झटका पूरे देश में महसूस किया जा रहा था.

दिल्ली के एक पत्रकार अपने दौरे में वोटरों का मन टटोलने की कोशिश कर रहे थे. वह लोगों पर नोटबंदी के असर को भी जानना चाह रहे थे. महिलाएं कामकाजी वर्ग से थीं. कुछ शिक्षित थीं और कुछ अर्धशिक्षित थीं. पत्रकार के पूछे जाने पर उन्होंने नोटबंदी के चलते अपने रोजाना के जीवन में पैदा हुई दिक्कतों के बारे में बताया.


अचानक नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर झेलने वालों में होते हुए भी उन महिलाओं ने पत्रकार से एक सुर में कहा, ‘अगर प्रधानमंत्री ने यह कदम उठाया है तो उन्होंने कुछ सोचकर ही ऐसा किया होगा. हमें आज दिक्कत हो रही है. हो सकता है कि हमारा कल ज्यादा बेहतर हो. हमें मोदी जी पर भरोसा है.’

मोदी जी के लिए यह एक राहत वाली बात रही होगी, खासतौर पर ऐसे वक्त पर जब 500 रुपए और 1,000 रुपए के नोट बंद करने के बाद उन्हें हर तरफ से प्रेशर झेलना पड़ रहा था.

मोदी पर हमें भरोसा है. इस लेवल का भरोसा हमारी पीढ़ी के शायद ही किसी प्रधानमंत्री को हासिल हुआ हो. राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत से सत्ता मिली, लेकिन ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि लोगों का उन पर भरोसा था, बल्कि ऐसा इंदिरा गांधी की हत्या के चलते पैदा हुई सहानुभूति की लहर के चलते हुआ.

शायद मोदी किसी और के मुकाबले यह ज्यादा अच्छी तरह जानते थे कि उन्हें देश के 130 करोड़ लोगों का भरोसा हासिल है. उन्हें पता था कि आम लोग उनके समर्थन में खड़े हो जाएंगे. उन्होंने अपनी लोकप्रियता के चरम पर यह फैसला लिया और मोदी लोगों के साथ धोखा करने नहीं जा रहे थे. वह लोगों के अपने ऊपर जताए गए भरोसे को तोड़ने वाले नहीं थे.

नोटबंदी के बाद यूपी में बीजेपी की बड़ी जीत

एक झटके में उन्हें कांग्रेस सरकार के प्रश्रय में पनपे भ्रष्ट सिस्टम को तोड़ दिया. उन्होंन ऐसा किया क्योंकि उनके दिमाग में लोगों की भलाई और खुशहाली के लिए कार्य करना था. उन पर गलत मकसद के आरोप लगाए गए. मोदी विरोधी प्रचार में तेजी लाई गई. इस तबके ने आरोप लगाया कि नोटबंदी इसलिए की गई है ताकि मोदी अपने उद्योगपति दोस्तों को मजबूत कर सकें. आरोप लगाया गया कि नोटबंदी का आर्थिक मकसद कम राजनीतिक मकसद ज्यादा है.

कहा गया कि मोदी ने यह कदम यूपी असेंबली इलेक्शन जीतने के लिए उठाया है. कुछ लोगों ने दावे किए कि मोदी यूपी का चुनाव बुरी तरह हारने वाले हैं. बाद में पता चला कि चुनावों के बाद मोदी और मजबूत होकर उभरे हैं. और इससे भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ उनकी लड़ाई और मजबूत हुई है.

मोदी के लिए यह सब आसान नहीं था. मोदी के समर्थकों को अब लग रहा है कि उन्होंने अच्छा काम किया, लेकिन मोदी को नहीं पता था कि आगे चलकर क्या होने वाला है. अगर कोई कमजोर नेतृत्व होता तो वह इस भारी प्रेशर के आगे पिघल गया होता. उनके दिमाग में भी यह ख्याल आया होगा कि यह कदम उलटा भी पड़ सकता है. उनके सबसे अच्छे सपोर्टर कहते हैं कि नोटबंदी अंधेरे में चलाया गया तीर था. वे इसके साथ खड़े रहे, जबकि उन्हें नहीं पता था कि इसका बचाव कैसे करना है.

मोदी का विरोध करने वाले तरह-तरह के आरोप लगा रहे थे. वे कह रहे थे कि यह एक तुगलकी फरमान है. वे इसे एक सेल्फ-गोल या राजनीतिक आत्महत्या कह रहे थे. वे मोदी का मजाक उड़ा रहे थे और उन्हें नासमझ कह रहे थे. मोदी को अपमान के दौर से गुजरना पड़ा, लेकिन वह दृढ़ प्रतिज्ञा वाले व्यक्ति हैं. वह डटकर खड़े रहे और मजबूती से देश का नेतृत्व किया. वह छिपे नहीं. वह सामने आए और दिसंबर में देश को संबोधित किया और लोगों से देश के लिए बलिदान देने के लिए कहा. उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया कि उनकी तकलीफें अस्थाई हैं. आने वाले वक्त में लोगों को फायदा होगा और एक भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनेगा. उन्होंने आम लोगों को यह भरोसा दिलाया यह कदम उनके फायदे और अच्छे भविष्य के लिए है.

नोटबंदी से कालेधन पर अब तक की सबसे बड़ी चोट

एक साल बाद हमें अब पता है कि नोटबंदी ब्लैकमनी पर भारत का अब तक का सबसे बड़ा हमला था. इससे बड़े पैमाने पर कालाधन सामने आया है जिससे आतंकवाद, नक्सलवाद को बड़ा झटका लगा है. एक फैसले से सरकार ने कई मकसद हासिल कर लिए. इससे बड़े पैमाने पर कैश रखने वालों पर लगाम लगी, डिजिटल और कैशलेस ट्रांजैक्शंस को बढ़ावा मिला, टैक्सपेयर्स का दायरा बढ़ा, टैक्स रेवेन्यू में इजाफा हुआ, कैश टू जीडीपी रेशियो घटा और इससे देश में ऊंची वैल्यू वाले नोटों का दबदबा खत्म हुआ. साथ ही इससे नकली नोटों की समस्या से भी निजात मिली.

कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी की घटनाएं एक-चौथाई पर आ गईं, जबकि माओवादी चरमपंथ में 20 फीसदी की गिरावट आई. नोटबंदी की वजह से कई फायदे हुए. मसलन, कर्ज की ईएमआई कम हुई है क्योंकि उधारी दरों में 1 फीसदी की गिरावट आई है, वित्तीय साधनों बचत बढ़ी है. नोटबंदी से डिजिटल ट्रांजैक्शंस भी दोगुने हो गए हैं और साथ ही इससे रियल एस्टेट की कीमतों में भी बड़ी गिरावट आई है.

यह देखने वाली बात है कि नोटबंदी के चलते अर्थव्यवस्था बड़े लेवल पर संगठित या औपचारिक रूप में आई है. अर्थव्यवस्था में नकदी जीडीपी की करीब 2.5 फीसदी या 3.5 लाख करोड़ रुपए कम हुई है. बैंकरप्सी कोड, रेरा और जीएसटी जैसे रिफॉर्म हुए हैं और कई और रिफॉर्म कतार में हैं. ज्यादा औपचारिक अर्थव्यवस्था से टैक्सपेयर्स की संख्या बढ़ी है. आज हमारे देश की केवल 1 फीसदी आबादी टैक्स देती है. इसमें बदलाव हो रहा है. बैंकिंग सेक्टर में क्रेडिट ग्रोथ बढ़ रही है. दुर्भाग्य से एक्सपर्ट नोटबंदी को समग्र रूप में नहीं देख रहे हैं और इसके बुरे परिणामों के बारे में बता रहे हैं. लेकिन, नोटबंदी पीएम के उठाए गए बड़े रिफॉर्म्स में से एक है और इन सब सुधारों को मिलाकर देखने से नोटबंदी के पॉजिटिव असर पता चलते हैं.

(लेखक बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और डोएचे बैंक, इंडिया के पूर्व मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. यह उनकी व्यक्तिगत राय है.)