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नोटबंदी पर राहुल गांधी के सवाल अब सही दिशा में जा रहे हैं

यही वह मुद्दा है जहां विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के रूप में राहुल को अपना माद्दा साबित करना है

Dinesh Unnikrishnan

क्या आखिरकार राहुल गांधी काम की बात करने लगे हैं? नोटबंदी के मामले में तो ऐसा ही लगता है. मंगलवार को विपक्षी दलों की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल ने एक गंभीर मुद्दा उठाया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताना चाहिए कि नोटबंदी के पीछे असली मंशा क्या है और वह इससे सबसे अधिक प्रभावित लोगों के लिए क्या करेंगे?

यह एक अहम सवाल है जिसका जवाब मोदी सरकार को देना है. मोदी सरकार ने नोटबंदी की कहानी की पटकथा चतुराई से बदल दी है: जो पहले कालेधन और फर्जी करेंसी के खिलाफ एक मुहिम थी, वह अब भारतीयों के लिए कैशलेस इकॉनमी के ऐतिहासिक अवसर में तब्दील हो गई है.


गांधी के सवाल का दूसरा हिस्सा- सरकार नोटबंदी से सबसे अधिक प्रभावित लोगों की मदद के लिए क्या करेगी- और भी अहम है. खासकर तब जब सरकार कोई ऐसी समयसीमा नहीं बता पाई है जब नोटबंदी के कारण नकदी की कमी का संकट खत्म होगा और ऐसे में अर्थव्यवस्था के कई स्तर इसका असर झेल रहे हैं.

मोदी की ओर से घोषित एक मात्र तारीख 30 दिसंबर फ्लॉप हो चुकी है. दो दिन बाकी हैं और कैश की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा है. हालांकि शुरुआती दिनों से स्थिति थोड़ी बेहतर है. संभव है कि अगले दो-तीन दिनों में सरकार समस्या को खत्म करने के लिए सिस्टम को 2000 के नोटों से भर दे.

वैसे नोटबंदी का अंधविरोध करना और उसे घोटाला बताना गांधी और उनके सहयोगियों के लिए आत्मघाती हो सकता है. नोटबंदी के फैसले के पीछे मंशा अच्छी थी, इसमें कोई शक नहीं है.

मोदी के सबसे बड़े आलोचकों ने भी इसकी मंशा पर सवाल नहीं उठाए हैं. अगर टैक्स सिस्टम सही से काम करे तो लंबे अवधि में यह फैसला टैक्स आधार बढ़ाने और आर्थिक सुधारों के लिए रास्ता खोल सकता है.

अधिक से अधिक लोगों के टैक्स की जद में आने और नई अप्रत्यक्ष टैक्स रिजीम जीएसटी के आने से अर्थव्यवस्था विकास की अगली छलांग के लिए तैयार होगी. टैक्स वसूली के लिए नए स्रोत खुल जाएंगे.

अगर अब कैश पर आधारित बड़े आर्थिक लेनदेन को डिजिटल करने में सफलता मिली तो इससे इकॉनमी को फायदा मिलेगा. नोटबंदी सही दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन इसे बेहद खराब तरीके से लागू किया गया है.

गांधी के लिए यह मोदी की तरफ से दिया मौका था जब वह अपनी अब तक छवि से बाहर निकलकर खुद तो एक मंझे राजनेता के रूप में साबित कर सकते थे. मई 2014 से लेकर नोटबंदी पहला बड़ा मुद्दा नहीं आया है जिसने सभी 125 करोड़ भारतीयों के जीवन को किसी न किसी तरह प्रभावित किया है.

नोटबंदी की मंशा की तारीफ करने वाले समर्थक भी मार्च तक खिंचते दिख रहे नकदी संकट को देखकर इसे लागू करने के तरीके पर सवाल उठाने लगे हैं.

इसका आर्थिक प्रभाव आने वाले दिनों में नजर आएगा. छोटी अवधि में इकॉनमी के करीब सभी हिस्से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. यही वह मुद्दा है जहां विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के रूप में राहुल को अपना माद्दा साबित करना है. उन्हें नाटकीय राजनीति छोड़कर सही समय पर सही सवाल करने होंगे.

हमने पहले सलाह दी थी कि राहुल गांधी को नोटबंदी पर सरकार से छह सवाल करने चाहिए. यह सवाल राजनीतिक ड्रामे या पैंतरेबाजी से अलग उन्हें सरकार से समझदारी भरे संघर्ष का अवसर देगा. मंगलवार को उन्होंने पहला सवाल किया. उनके लिए बाकी सवाल यह रहे.

1) अगर नोटबंदी का मकसद कालेधन लाना और फेक करेंसी खत्म करना है तो अब तक कितनी अघोषित संपत्ति पकड़ी गई है?

2) नोटबंदी लागू करने से राजकोष पर कितना भार पड़ा?

3) नकदी का संकट कब खत्म होगा?

4) क्या 'इतने महीनों की तैयारी' के बाद सरकार फिर से रिमोनेटाइज करने की योजना बना रही है? अगर हां तो फिर आम आदमी को इतने दिनों के लिए परेशानी क्यों झेलनी पड़ी?

5) क्या मोदी सरकार ने कैशलेस इकॉनमी के लिए कोई नीति बनाई थी या यह विचार सिर्फ यूं ही नोटबंदी के दौरान निकल आया? क्या कैशलेस इकॉनमी को लोगों पर थोप जाने के बजाय इसके लिए बदलाव धीरे-धीरे योजनाबद्ध तरीके से नहीं किया जाना चाहिए था, खासकर तब जब इसके लिए देश में इंटरनेट की पहुंच, आर्थिक साक्षरता और जरूरी कानून की कमी थी?