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नोटबंदी: विपक्षी मार रहे अपने पांव कुल्हाड़ी

बहस में हिस्सा न लेकर विपक्ष ने नोटबंदी के सवाल पर अपनी स्थिति काफी खराब कर ली है.

सुरेश बाफना

राज्यसभा में गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में नोटबंदी पर बहस की फिर शुरुआत हुई तो लगा कि संसद की कार्यवाही पटरी पर आ गई है. लेकिन लंच के बाद विपक्ष ने फिर से यह मांग कर दी कि प्रधानमंत्री मौजूद रहेंगे, तभी बहस आगे बढ़ेगी.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह स्पष्ट कर दिया था कि प्रधानमंत्री सदन में न केवल मौजूद रहेंगे, बल्कि चर्चा में भाग भी लेंगे. विपक्ष यह मांग कर सकता है कि प्रधानमंत्री निरंतर सदन में मौजूद रहें पर यह प्रधानमंत्री की इच्छा पर निर्भर है कि वे कब और कितनी देर तक सदन में मौजूद रहेंगे.


पीठासीन उपाध्यक्ष पी.जे. कूरियन ने विपक्षी नेताओं व सांसदों को बताया कि नियमानुसार प्रधानमंत्री को हर वक्त सदन में मौजूद रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. चूंकि नोटबंदी का सवाल वित्त मंत्रालय से सीधे जुड़ा हुआ है, इसलिए सरकार की तरफ से वित्त मंत्री की सदन में मौजूदगी पर्याप्त है.

विपक्षी दलों ने की अपनी स्थिति खराब

विपक्षी दलों ने नोटबंदी के सवाल पर अपनी स्थिति काफी खराब कर ली है. राज्यसभा में पूरे एक दिन बहस होने के बाद विपक्ष को लगा कि प्रधानमंत्री का सदन में मौजूद रहना जरूरी है. लोकसभा व राज्यसभा में विपक्षी दल अपने एक्शन में एकजुट नहीं रह पाए.

राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि काले धन के खिलाफ सरकार द्वारा उठाए गए कदम का उनकी पार्टी विरोध नहीं कर रही है. जनता के प्रतिनिधि होने के नाते वे नोटबंदी के निर्णय से जनता को होनेवाली परेशानी के मुद्‍दे को सरकार के सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं.

गलाम नबी आजाद के ठीक विपरीत ‍पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने सरकार के नोट बंदी के फैसले को बहुत बड़ी गलती व कानूनी लूट बता दिया. काग्रेस पार्टी निर्णय का विरोध नहीं कर रही, लेकिन डॉ. सिंह सीधे-सीधे निर्णय का ही विरोध कर रहे थे.

डॉ. मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को लूट की संज्ञा देकर भाजपा को मौका दे दिया कि वे उनकी सरकार के कार्यकाल में हुए कामनवेल्थ, 2जी, 3जी व कोयले घोटाले पर कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करें. डॉ. सिंह ने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि काले धन से निपटने के बारे में उनके क्या सुझाव है?

डा. सिंह को इस मामले में हस्तक्षेप करने का मौका देकर कांग्रेस पार्टी ने इस बात को रेखांकित किया कि नोटबंदी पर पार्टी के भीतर भ्रम की स्थिति है और कोई दूसरा नेता बोलने के लिए तैयार नहीं था.

नोटबंदी के निर्णय का ही विरोध

सपा के नरेश अग्रवाल ने नोटबंदी के निर्णय का ही विरोध किया, वहीं मायावती भी प्रधानमंत्री के खिलाफ काफी आक्रामक दिखाई दीं. इन दोनों नेताओं ने सीधे आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में नोटबंदी का निर्णय लिया गया है. यह आरोप लगाना खुद को ही कटघरे में खड़ा करने के समान है.

विपक्ष के व्यवहार से स्पष्ट हो गया कि वह नोटबंदी के सवाल पर संसद के भीतर बहस करने के बजाय फिलहाल सड़क की राजनीति करना चाहता है. संसद को सड़क की राजनीति का हथियार बनाना भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है.

राज्यसभा में विपक्ष द्वारा लगाए आरोपों का जवाब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सदन के बाहर प्रेस-वार्ता संबोधित करके दिया. अगले कुछ दिनों तक अब संसद सदन के भीतर नहीं, बल्कि टीवी चैनलों के परदे पर ही दिखाई देगी.

28 नवम्बर को विपक्ष ने नोटबंदी के खिलाफ देश भर में आक्रोश दिवस मनाने का निर्णय लिया है. इसलिए यह माना जाना चाहिए आक्रोश दिवस तक संसद की कार्यवाही पटरी पर आने की कोई संभावना नहीं है.

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