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नोटबंदी पर सरकार की नेकनीयती को कब तक झेलेगी जनता?

पीएम नोटबंदी से उपजे सभी जोखिम उठाने को तैयार हैं.

Dinesh Unnikrishnan

शनिवार को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सिक्योरिटीज मार्केट (एनआईएसएम) मुंबई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए वक्तव्य का कुल जमा सार यही था कि, एनडीए सरकार द्वारा लिया गया नोटबंदी का फैसला कोई दुर्घटना या अचानक लिया गया फैसला नहीं बल्कि यह एक सोची-समझी योजना है.

कड़ी आलोचना और जनता द्वारा झेली जा रही तमाम परेशानियों के बावजूद सरकार इस निर्णय के साथ खड़ी है और इसे सफल बनाने की हर संभव कोशिश करेगी.


एनआईएसएम में मोदी ने कहा, ‘मैं एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं, सरकार देश का भविष्य संवारने के लिए और भी कई आर्थिक नीतियां लाएगी. हमारे निर्णय अल्पकालिक राजनीतिक फायदों को ध्यान में रखकर नहीं लिए जाएंगे. देशहित में हम कोई मुश्किल फैसला लेने से भी नहीं कतराएंगे. नोटबंदी तो बस एक नजीर भर है. इसमें 'शॉर्ट टर्म पेन' तो है पर 'लॉन्ग टर्म फायदे' भी हैं.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुराने नोटों पर चिंता

नोटबंदी एक साहसी कदम

यह बात उनके राजनीतिक विरोधियों और आलोचकों के लिए सीधा सन्देश है कि सरकार 8 नवंबर को लिए गए नोटबंदी के फैसले से पीछे नहीं हटेगी. प्रधानमंत्री का यह वक्तव्य तब आया है जब देश के साथ-साथ विदेशों से भी उनके इस फैसले पर सवालिया निशान उठाए गए हैं.

विश्व प्रसिद्ध पत्रिका 'फोर्ब्स'  के एडिटर इन चीफ स्टीव फोर्ब्स ने पत्रिका के आगामी अंक के लिए एक संपादकीय में भारत सरकार के इस फैसले को गलत और अनैतिक कहा है. उन्होंने यह भी लिखा कि यह जनता के धन की बड़ी लूट है.

अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल ने नोटबंदी के फैसले को बेतुका और तर्कहीन बताया है. साथ ही सरकार को चेताते हुए कहा भी है कि उसे जनता को कैशलेस व्यवस्था के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए.

देश के अंदर तो सरकार के इस फैसले की आलोचना चल ही रही है. पर शनिवार के इस भाषण से लगा कि प्रधानमंत्री को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता है.

वह नोटबंदी से उपजे सभी जोखिम उठाने को तैयार हैं, चाहे वो नोटबंदी से हुई कैश की भारी कमी हो (जिसे डेढ़ महीने बाद भी पूरा नहीं किया जा पा रहा) अर्थव्यवस्था पर इस फैसले का नेगेटिव प्रभाव हो, गैर-व्यवस्थित क्षेत्रों में लोगों का रोजगार छिनना या फिर समय के साथ जनता का कम होता धैर्य, मोदी हर रिस्क उठाने को तैयार हैं.

नोटबंदी से होने वाले जोखिम के लिए सरकार तैयार है

मोदी के भाषण से यह साफ है कि विमुद्रीकरण या नोटबंदी के दीर्घकालिक फायदों के लिए सरकार इस तरह के जोखिमों का सामना करने के लिए तैयार खड़ी है. प्रधानमंत्री की यह बात समझना इतना मुश्किल भी नहीं है.

इस फैसले से उनकी राजनीतिक साख खतरे में है. इस निर्णय से पीछे हटने का कोई विकल्प नहीं है क्योंकि ऐसा करना शायद इसे एक ‘राजनीतिक भूल’ बताने जैसा होगा.

8 नवंबर को लिए गए इस फैसले का प्रचार भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किए गए किसी आर्थिक सुधार की तरह कम बल्कि प्रधानमंत्री के साहसी, निजी फैसले के रूप में ज्यादा हुआ है. पर यह ठीक नहीं है.

नोटबंदी का दूसरा पहलू भी है. इस फैसले का उद्देश्य हितकारी है पर इसके अमल में आ रही गंभीर समस्याओं को स्वीकार न करके 50 दिनों की डेडलाइन देना भी सही नहीं है. अगर प्रधानमंत्री 50 दिनों के अन्दर इन समस्याओं का हल नहीं दे पाए और इसी तरह रोजमर्रा जनता द्वारा भोगी जा रही परेशानियों को नजरअंदाज करते रहे तो उन्हें जनता के गुस्से का शिकार बनना पड़ सकता है.

सच्चाई तो यह है कि इस फैसले से हो रही जमीनी परेशानियों से उबरने में प्रधानमंत्री द्वारा कहे जा रहे ‘शॉर्ट टर्म’ से कहीं ज्यादा समय लग सकता है. किसी को भी, यहां तक कि रिजर्व बैंक को भी नहीं पता कि कैश की यह कमी कब तक दूर होगी.

अब तक रिजर्व बैंक द्वारा बंद की गई 15.4 लाख करोड़ की करेंसी का बहुत कम हिस्सा ही बैंकों के जरिए जनता तक पहुंचा है. स्थितियां सामान्य होने में कई महीने लग सकते हैं.

पुराने नोट 30 दिसंबर तक ही जमा होंगे

कब खत्म होगी नोटबंदी से होने वाली परेशानियां ?

इंडियास्पेंड के इस लेख  के अनुसार मोदी द्वारा नोटबंदी की मुश्किलें खत्म करने के लिए दी गयी 50 दिनों की समय-सीमा सफल नहीं होगी.

प्रधानमंत्री को अब बार-बार 'मुश्किलें बस चंद दिनों की हैं’ जैसी कोई बात दोहराने की बजाए यह स्वीकार लेना चाहिए कि स्थितियां सुधरने में फैसले के समय सरकार द्वारा सोचे गए समय से ज्यादा समय लगेगा, इस तरह कम से कम जनता को वास्तविक स्थिति का तो पता रहेगा और प्रधानमंत्री को उनका समर्थन मिलेगा.

इस भाषण में मोदी ने पूंजी बाजार में सुधार से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर भी चर्चा की जैसे म्युनिसिपल कॉर्पोरेट बाजार को बढ़ावा देना, बॉन्ड मार्केट से आए फंड का इस तरह उपयोग करना, जिससे ग्रामीण भारत को भी उसका लाभ मिले. म्युनिसिपल कॉर्पोरेट बाजार के विस्तार से सरकार की स्मार्ट सिटी परियोजना को भी फायदा मिलेगा.

मोदी ने इशारों में जताया कि पूंजी बाजार से होने वाले लाभ से संबंधी कानूनों में भी बदलाव किया जा सकता है.

पीएम ने कहा, ‘जो लोग पूंजी बाजार से फायदा उठाते हैं, उन्हें राष्ट्र हित के लिए टैक्स के रूप में योगदान देना चाहिए. कई कारणों से इस बाजार से पैसा कमाने वालों से आने वाले टैक्स की राशि कम है. शायद कुछ हद तक इसका कारण अवैध गतिविधियां और धोखाधड़ी है, जिससे बचने के लिए सेबी को सतर्क रहना होगा.

कुछ हद तक टैक्स कानून व्यवस्था भी जिम्मेदार है. आय के कुछ प्रकारों पर बहुत कम टैक्स दर है या किसी टैक्स की व्यवस्था ही नहीं है.’

किसानों के लिए सरकार का अनूठा कदम

बाजार से होगा किसान को फायदा

साथ ही वायदा बाजार से किसानों को लाभ देने की बात करके उन्होंने सेबी से नये प्रोडक्ट बाजार में लाने की उम्मीद भी जाहिर की. मोदी ने कहा ‘ऐसा कहा जाता है कि वायदा बाजार से किसानों का जोखिम कम हो सकता है पर शायद ही कोई किसान असल में इस कारोबार से जुड़ा है.'

जब तक हम वस्तु या कमोडिटी बाजार को किसानों के फायदे के हिसाब से नहीं बनायेंगे, इनके होने से देश की अर्थव्यवस्था को कोई फायदा नहीं है...सेबी को चाहिए कि देश के किसानों के लिए वो ई-नैम (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) और वायदा बाजार को जोड़ने का प्रयास करे.’

इस तरह के सुधारों की बात करके प्रधानमंत्री ने फिर से यह साफ कर दिया है कि ‘भारत को एक ही पीढ़ी में विकसित देश बना देना उनका उद्देश्य’ है. दूसरे शब्दों में कहें तो उनकी सरकार देश में धीरे-धीरे बदलाव लाने की अपेक्षा रातोंरात बदलाव लाना चाहती है, भले ही उससे बड़ी समस्याएं सिर उठाकर खड़ी हो जाएं.

इतना तो तय है कि नोटबंदी उनका आखिरी ‘सरप्राइज’ नहीं है, मोदी के शेष ढाई साल के कार्यकाल में और कई चौंकाने वाले फैसले सामने आएंगे.