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पीतल नगरी मुरादाबाद में नोटबंदी की मार, कारीगर बेहाल

नोटबंदी की मार से बेहद दुखी हैं मुरादाबाद के कारीगर

Amitesh

पिछले पचास सालों से पीतल के बर्तन से लेकर अलग-अलग सामानों को अपनी नक्काशी के जरिए खूबसूरत बनाने वाले मुज़फ़्फ़र हुसैन को अब अपने रहनुमाओं से कोई उम्मीद नजर नहीं आती. पीतल नगरी के नाम से जानी जाने वाले पश्चिमी यूपी के शहर मुरादाबाद में कारीगर मुजफ्फर हुसैन पिछले पचास सालों से यही काम कर रहे हैं.

फिलहाल पीतल का ग्लोब बनाकर मुज़फ़्फ़र हुसैन पूरी दुनिया को अपने ‘ग्लोब’ से रू-ब-रू कराते हैं. मुरादाबाद से इनके बनाए गए ग्लोब अमेरिका, फ्रांस ईरान और सऊदी अरब समेत कई देशों में एक्सपोर्ट होते हैं. लेकिन, उनकी खुद की दुनिया में पिछले पचास सालों से खास बदलाव देखने को नहीं मिला.


फर्स्टपोस्ट हिंदी से बातचीत में हुसैन कहते हैं ‘हालात तो पहले से ही खराब थे, रही-सही कसर नोटबंदी ने पूरी कर दी. हफ्ते में बस दो से तीन दिन का ही काम बच गया है.’

दूसरे कारीगरों के हाल भी मुज़फ़्फ़र जैसे

यही हाल पीतल नगरी में काम करने वाले बाकी कारीगरों का भी है. एक दूसरे कारीगर मोहम्मद नईम अपना दर्द-ए-बयां कुछ इस अंदाज में  सुनाते हैं. ‘रोजाना 250-300 रुपए तक का काम हो पाता है लेकिन, नोटबंदी के बाद हालात और खराब हो गए हैं. हफ्ते में अब दो से तीन दिन तक ही काम मिल पाता है.’

दरअसल, नोटबंदी की मार के बाद हालात पहले से कहीं ज्यादा बिगड़ गए है. हैंडिक्राफ्ट डेवेलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष नोमान मंसूरी का कहना है कि ‘नोटबंदी के बाद करीब 40 फीसदी तक काम में कमी हो गई है. जिसके चलते पूरे कारोबार में मंदी देखने को मिल रही है. जब कारोबार ही मंदा है तो कारीगरों को कहां से काम मिलेगा.’ यही वजह है कि कारीगरों को रोजाना काम नहीं मिल पा रहा.

नोमान मंसूरी

मुरादाबाद में पीतल का कुल कारोबार लगभग 15 हजार करोड़ रूपये सालाना का होता है. यहां तैयार पीतल के बर्तन देश-विदेश हर जगह जाते हैं. बालाजी मंदिर से लेकर तिरुपति मंदिर तक हर जगह यहां तैयार सामानों का इस्तेमाल होता है.

कारीगर बेहाल, लेकिन, नहीं है किसी को मलाल

अमूमन इन छोटे-छोटे कारीगरों को अपने घरों में ही काम करने पर मजबूर होना पड़ता है. जिन इलाकों में ये रहते हैं वहीं इनका काम भी है. लिहाजा प्रदूषण के चलते इन कारीगरों को गंभीर बीमारियों से दो-चार होना पड़ता है.

आज नई तकनीक के इस युग में कारीगर परंपरागत तरीके से भट्ठियों में काम कर रहे हैं.

इन कारीगरों की बदहाली का आलम यह है कि अब इनमें ज्यादातर नए लड़के इस कारोबार में आने के बजाए कुछ और काम करना पसंद करते हैं.

मेक इन इंडिया का नारा यहां नहीं है न्यारा

सरकार लगातार मेक इन इंडिया का नारा दे रही है. सरकार की कोशिश है कि हर हाल में मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जाए. लेकिन, पीतल नगरी के कारोबारी इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार पहले से मौजूद इस व्यावसाय को प्रोत्साहित करती तो ज्यादा फायदा होता.

इसके लिए कारोबारी केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की बेरूखी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. उनका कहना है कि उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से अभी हैंडिक्राफ्ट पॉलिसी बनाई गई है लेकिन, यह काफी देर से बनी है. हो सकता  है कि आगे इसका कुछ फायदा मिले.

ऑल इंडिया हैंडीक्राफ्ट बोर्ड के सदस्य और कारोबारी आज़म अंसारी का कहना है कि ‘रामगंगा नदी के पार शहर के दूसरी तरफ 58 हेक्टेयर में एक एंटीजन पार्क (हब) बनाने की बात हो रही है, लेकिन, इस पर भी कोई तेज गति से काम नहीं हो पा रहा है.’

आज़म अंसारी

मुरादाबाद की पहचान पीतल नगरी के रूप में रही है. लेकिन, अब नई पीढ़ी के लोगों में पीतल की कारीगरी का काम करने में कोई खास दिलचस्पी भी नहीं दिख रही है. लिहाजा इस उद्योग पर इसका भी असर दिख रहा है.

स्किल डेवेलपमेंट के ऊपर केंद्र सरकार का खासा जोर है. यहां के कारीगरों की दलील यही है कि अगर सरकार स्किल डेवलेपमेंट प्रोग्राम के जरिए उनको जोड़े तो न केवल इन कारीगरों का भला होगा बल्कि, ऐसे हुनरमंद कारीगर और तैयार हो सकते हैं.