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नोटबंदी: बला यकलख्त आई और बयान आहिस्ता आहिस्ता

कालेधन की बात करते करते एकाएक बयानवीर अब कैशलेस की बात करने लगे हैं.

Vinod Verma

कालेधन की बात करते करते एकाएक बयानवीर अब कैशलेस की बात करने लगे हैं.

कालाधन खत्म करने का अभियान ध्वस्त हो चुका है. तय है कि कैशलेस की कोशिशें भी औंधेमुंह गिरेगी. बयान अभी और बदलेंगे.


आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेलीविजन पर आकर नोटबंदी की घोषणा की तो एकाएक लोगों को समझ में नहीं आया था कि यह क्या हो गया.

लेकिन बैंकों और एटीएम की लाइनों में खड़े देश को जल्दी ही समझ में आ गया कि नोटबंदी की घोषणा दरअसल एक बला थी. यह बला यकलख्त यानी एकाएक या अचानक ही आ गई थी.

बहुत से लोग थे जो पहले इसे अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा बता रहे थे. लेकिन आठ नवंबर से लेकर नौ दिसंबर की शाम तक जो बयान आए उससे लगता है कि बहुत से लोग धीरे धीरे समझ रहे हैं कि सरकार ने देश को किस दलदल में धंसा दिया है.

गाढ़े और गहरे दलदल की खासियत होती है कि उसमें व्यक्ति धीरे-धीरे ही डूबता है. आश्चर्य नहीं है कि अब सरकार को भी लगने लगा है कि नोटबंदी तो उसके लिए भी एक बला बन गई है. इसीलिए आहिस्ता-आहिस्ता सरकार की ओर से आने वाले बयान भी बदल रहे हैं.

सरकार ने पहले कहा कि देश में जमा कालाधन निकालने के लिए, नकली नोटों को खत्म करने के लिए और आतंकवाद को मिलने वाले पैसों को रोकने के लिए नोटबंदी की जा रही है.

लेकिन अब ये बात कही जा रही है कि कैशलेस (यानी बिना नकदी के लेनदेन) को बढ़ावा देने के लिए नोटबंदी की गई. जाहिर है कि दलदल में धंसती सरकार आसपास पेड़ की कोई डंगाल या ऐसी लता ढूंढ़ रही है जिसे पकड़कर वो डूबने से बच सके.

इंडिया स्पेंड नाम की एक वेबसाइट में प्रवीण चक्रवर्ती ने कुछ दिलचस्प आंकड़े इकट्ठे किए हैं. वे बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खुद के बयान में किस तरह से बदलाव आया.

प्रवीण के अनुसार जब आठ नवंबर को नरेंद्र मोदी टेलीविज़न पर नोटबंदी की घोषणा करने आए तो 18 बार कालेधन की बात की और पांच बार नकली नोटों की. इसे अगर प्रतिशत में कहें तो कालेधन का जिक्र 78.3% और नकली नोटों का जिक्र 21.7% किया गया.

कैशलेस या डिजिटल मनी की बात एक बार भी नहीं हुई. इसके बाद वे जापान चले गए. वहां से लौटकर 13 से 27 नवंबर तक उन्होंने छह भाषण दिए, जिसमें मन की बात भी शामिल है.

आंकड़े बताते हैं कि जैसे-जैसे बैंक में जमा होने वाली रकम बढ़ती गई वैसे-वैसे उनके भाषण से कालाधन गायब होता गया और डिजिटल या कैशलेस की बात शामिल होती गई.

20 नवंबर को जितनी बार कालाधन और नकली नोट की बात हुई उतनी ही बार कैशलेस शब्द का जिक्र आया यानी तीनों 33%, लेकिन तब शायद लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया.

आश्चर्यजनक रूप से 27 नवंबर तक आंकड़े उलट गए. इस बार कैशलेस का जिक्र 72.7% और कालेधन का 27.3 प्रतिशत किया गया.

बदल रहे हैं आहिस्ता आहिस्ता

ऐसा नहीं है कि सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान बदले हैं. भाजपा के बयानवीरों की भी भाषा बदलती जा रही है.

पहले सिर्फ कालेधन को निकालने की बात थी जिससे सारे कल धन वाले या तो दहाड़ें मार-मारकर रोने वाले थे या फिर सारे नोट नालियों में फेंकने या जलाने वाले थे. बैंकों में जो पैसा आना था उससे बैंकों के ब्याज की दर कम होनी थी और देश में खुशहाली आनी थी.

लेकिन जब धीरे-धीरे लोगों की तकलीफें बढ़ती ही गईं, मौतें होती रहीं और कतारों में कोई कालेधन वाला दिखा नहीं तो फिर बयान आए. देशभक्ति की शिकायत करने वालों से सोशल मीडिया पर भिड़ंत होने लगी,

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धीरे-धीरे यह स्पष्ट होने लगा कि बैंकों में तो सारा पैसा लौट रहा है. आंकड़ों के अनुसार अंतिम तिथि तक बंद हुए 500 और 1000 के अधिकतम नोट बैंकों में लौट आएंगे. ऐसा केंद्र सरकार के राजस्व सचिव ने खुद कह दिया.

रिजर्व बैंक ने ब्याज दर घटाने से इनकार कर दिया, उलटे विकास की दर के अनुमान को आधा फीसदी घटा दिया.

इस बीच कालेधन वाला तो कोई नहीं पकड़ा गया अलबत्ता अलग-अलग राज्यों से भाजपा नेताओं के नए नोटों के साथ पकड़े जाने की खबरें छपीं. आरोप लगे कि भाजपा के नेताओं को पहले से जानकारी थी और उन्होंने जमीनें खरीदीं, पैसे बैंकों में जमा करवा दिए आदि आदि.

तो आहिस्ता-आहिस्ता बदलते बयान का आलम यह है कि वित्तमंत्री अरुण जेटली पलटकर उल्टे हो गए हैं. अब वे कह रहे हैं,

नोटबंदी का उद्देश्य है कि जहां तक संभव हो नकदी का लेनदेन कम हो और वैकल्पिक तरीकों पर ज्यादा जोर दिया जाए.

उद्योग धंधा चौपट 

भारतीय लघु उद्योग में सिलाई-कढ़ाई की बड़ी हिस्सेदारी है.

एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख ने पहले नोटबंदी के फैसले का स्वागत किया था लेकिन अब वे पलट गए हैं, और कहा है कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है.

दीपक पारेख का बयान एक शुरुआत भर है. देश में कारोबार और उद्योग धंधों की जो हालत है उसके बाद अभी और बयान आएंगे.

अभी किसान खरीफ की फसलों को निपटाने और रबी की बुआई में व्यस्त है और पैसों के लिए किल्लत झेल रहा है. उन्हें सिर उठाने की फुर्सत मिली तो वे भी सरकार की खबर लेंगे. मजदूरी मिल नहीं रही है. छंटनी शुरु हो गई है. मजदूर भी आखिर कब तक चुप बैठेंगे.

सो अभी बयान और बदलेंगे. आहिस्ता-आहिस्ता. कालेधन को खत्म करने का अभियान फेल हो गया यह तो तय हो चुका है. कैशलेस भी अभी भारत के लिए दूर की कौड़ी है इसलिए वह भी औंधे मुंह गिरेगा.

अभियानों के असफल होने पर हाल ही में दो राष्ट्र प्रमुखों ने इस्तीफा दिया है.

भारत में ऐसी उम्मीद अभी ठीक वैसी ही होगी जैसी कि नोटबंदी से कालेधन को खत्म करने की हुई.