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गुजरात चुनाव: दंगों के लिए मोदी से माफी की मांग उठाकर कांग्रेस ने फिर किया सेल्फ गोल

कांग्रेस को अभी भी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है

Sreemoy Talukdar

गुजरात चुनाव में नेताओं के बीच जुबानी जंग और भी रोचक हो गई है. बीजेपी और कांग्रेस की ओर से रोजाना ही एक-दूसरे पर वार-पलटवार हो रहे हैं. खासकर बीजेपी की तरफ से तो जैसे आरोपों की बौछार हो रही है. ताजा आरोप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से उछाला गया है. रविवार को गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी पाकिस्तान को भारत की चुनावी प्रक्रिया में दखल देने का मौका दे रही है.

जाहिर है, मोदी का यह आरोप कांग्रेस को आसानी से हजम नहीं होने वाला था. सोमवार को कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी ने बनासकांठा में एक रैली के दौरान मोदी के लगाए आरोपों का करारा जवाब दिया. राहुल ने कहा कि 'गुजरात का चुनाव हो रहा है और मोदी जी कभी जापान, कभी पाकिस्तान और कभी अफगानिस्तान की बात करते हैं. मोदी जी गुजरात का चुनाव है, थोड़ी गुजरात की बात भी कर लो.'


राहुल ने आगे कहा कि 'बीजेपी की विकास यात्रा फ्लॉप हो गई है, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी जिस तरह से मतदाताओं को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें उनकी हताशा झलक रही है.'

राहुल गांधी लगातार यह बात कहते आ रहे हैं कि वह प्रधानमंत्री पद का सम्मान करते हैं, लिहाजा वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जहरीली जुबान का जवाब प्यार भरे शब्दों से ही देंगे. राहुल की ऐसी प्रतिक्रिया देखकर लगता है कि वह कहीं न कहीं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा की डेमोक्रेटिक कंवेंशन स्पीच से प्रभावित हैं. हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह निजी तौर पर राहुल के इस बयान से शायद ही सहमत होंगे.

ऐसा लगता है कि बीजेपी और मोदी के जहरीले व्यंगों और बयानों पर कांग्रेस ने चुप्पी साधने में ही अपनी भलाई समझी है. कांग्रेस को आशंका है कि अगर उसके नेताओं ने भी बीजेपी नेताओं को उन्हीं की भाषा में जवाब देना शुरू किया तो, वह गुजरात के चुनावी अभियान में उनके लिए खतरनाक साबित हो सकता है. वैसी स्थिति में बीजेपी तुरंत कांग्रेस नेताओं के पलटवार को मोदी और गुजराती अस्मिता से जोड़कर उसका फायदा उठाने में देर नहीं लगाएगी. मणिशंकर अय्यर के 'नीच' वाले बयान के बाद से तो कांग्रेस और भी फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती है. दरअसल कांग्रेस की रणनीति है कि वह बीजेपी के आरोपों से विचलित हुए बिना, अपना फोकस गुजरात के स्थानीय मुद्दों पर बनाए रखे. किसानों की दुर्दशा, आर्थिक संकट और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाए रखकर कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा गुजराती मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है. पहले चरण के मतदान से कांग्रेस की इस धारणा को और भी मजबूती मिली है.

कांग्रेस का यह दृष्टिकोण वाकई दूरदर्शी और विवेकपूर्ण है. लेकिन कांग्रेस अबतक गुजरात में अपनी समस्या से निजात नहीं पा सकी है. दरअसल गुजराती जनता के लिए कांग्रेस के संदेशों में निरंतरता का अभाव देखा जा रहा है. तमाम सावधानियां बरतने के बावजूद कांग्रेस की तरफ से गाहे-बगाहे ऐसे बयान आ ही जाते हैं, जिन्हीं पार्टी के लिए सेल्फ गोल (आत्मघाती कदम) की श्रेणी में रखा जा सकता है. मसलन, कांग्रेस की मंशा है कि मतदाता इस बात पर विश्वास करें कि हार की हताशा में प्रधानमंत्री मोदी समाज का ध्रुवीकरण कर रहे हैं.

कांग्रेस के इस रुख से लगता है कि पार्टी गुजरात चुनाव में अपने अच्छे प्रदर्शन को लेकर खासी आश्वस्त है. ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं को उम्मीद है कि पार्टी इस बार गुजरात में सत्ता में वापसी करेगी. लिहाजा कांग्रेस किसी भी कीमत पर गुजरात में मतदाताओं का ध्रुवीकरण होते नहीं देखना चाहती है.

दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस ने अपनी चुनावी रणनीति के तहत ध्रुवीकरण से बचने के लिए एक तरफ तो संवेदनशील मुद्दों और व्यक्तिगत हमलों से दूरी बना ली है और बीजेपी को नैतिकता का पाठ पढ़ा रही है, वहीं दूसरी तरफ पार्टी का एक प्रवक्ता मांग कर बैठता है कि प्रधानमंत्री मोदी को दंगों के लिए जामा मस्जिद जाकर माफी मांगना चाहिए. कांग्रेस की चुनावी रणनीति के इतर उसके प्रवक्ता की इस मांग को अब क्या कहा जाना चाहिए?

रविवार को न्यूज 18 द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में पंजाब कांग्रेस के नेता चरण सिंह सपरा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को सोनिया गांधी से सबक लेते हुए दंगों के लिए 'माफी' मांगना चाहिए.

सपरा के मुताबिक, "सोनिया ने स्वर्ण मंदिर की यात्रा के दौरान मीडिया के सामने माफी मांगी थी. उन्होंने कहा था कि न तो मेरी पार्टी और न ही मैं 1984 के सिख विरोधी दंगों का समर्थन करते हैं. इस मामले में मनमोहन सिंह ने भी संसद में माफी मांगी थी. पिछले 33 सालों से बीजेपी हमारे जख्मों का अपमान कर रही है. क्या नरेंद्र मोदी जामा मस्जिद जाकर 1992 के दंगों के लिए माफी मांग सकते हैं?

कांग्रेस नेता चरण सिंह सपरा की मांग को गुजरात चुनाव अभियान में कांग्रेस का चौथा सेल्फ गोल (आत्मघाती कदम) माना जा रहा है. इससे पहले कांग्रेस को अपने तीन और नेताओं के बयान भारी पड़ चुके हैं. राहुल गांधी को जनेऊधारी हिंदू बताकर प्रचारित करना, अयोध्या के राम जन्मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को साल 2019 तक टालने की कपिल सिब्बल की अर्जी और मणिशंकर अय्यर का मोदी के लिए 'नीच' शब्द का इस्तेमाल करना भी कांग्रेस के लिए सेल्फ गोल साबित हो चुके हैं.

कांग्रेस नेताओं के बिगड़े बोल या यूं कहें कि बेख्याली में दिए गए बयानों को उछालने में बीजेपी ने जरा भी देर नहीं लगाई है. गुजरात में लगभग सभी बीजेपी नेता अपनी जनसभाओं में कांग्रेस नेताओं के बयानों का जिक्र कर रहे हैं. ऐसा करके बीजेपी नेता मतदाताओं की सहानुभूति और समर्थन हासिल करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. जाहिर है, वोट बैंक की राजनीति में विपक्षियों के ऐसे अजीबोगरीब बयान किसी भी पार्टी के लिए संजीवनी से कम नहीं होते हैं.

जहां मौका मिल रहा है, बीजेपी नेता वहां कांग्रेस के बयानों की निंदा करते नजर आ रहे हैं. रविवार को गांधीनगर में पत्रकारों से बात करते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बताया कि "पूरा देश जानता है कि कांग्रेस समर्थित एनजीओ ने प्रधानमंत्री मोदी पर जो आरोप लगाए थे, वह सभी आरोप झूठे थे, फिर भी वोट बैंक के लालच और मजबूरी में कांग्रेस की ओर से साल 2002 के दंगों को 2017 में उछाला जा रहा है."

यकीन नहीं होता है कि कांग्रेस इस बात से अनजान है कि गुजरात चुनाव के मध्य में सांप्रदायिक दंगों का मुद्दा उठाकर और नरेंद्र मोदी के गृह प्रदेश में उनपर व्यक्तिगत हमले करने के नतीजे में क्या हासिल होगा. लिहाजा संभव है कि कांग्रेस ऐसा करके मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में एकजुट करने की कवायद में जुटी है, या फिर यह कांग्रेस की एक और बेतुकी चुनावी रणनीति का ताजा उदाहरण है. ऐसा लगता है कि यहां दोनों ही संभावनाएं निहित हैं.

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस यह क्यों नहीं समझ पा रही है कि गुजरात में मुस्लिम मतदाताओं अपने पक्ष में एकजुट करने की कवायद उसके लिए घातक भी साबित हो सकती है. कांग्रेस नेता यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि इस खेल में दूसरे छोर पर बीजेपी घात लगाए बैठी है. मुस्लिम मतदाताओं के मोबिलाइज (एकजुट) होने से बीजेपी के लिए बहुसंख्यक हिंदुओं की भावनाएं भड़काकर बाजी पलटना आसान हो जाएगा. सभी जानते हैं कि इस खेल में बीजेपी महारथ रखती है, फिर भी कांग्रेस नेता आग से खेलने से बाज नहीं आ रहे हैं.

कांग्रेस नेताओं के असंगत विचारों के चलते मतदाताओं को गलत संदेश जा रहे हैं. कांग्रेस की उलझी हुई रणनीति से मतदाता भ्रमित हो रहे हैं. अब जब कि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हो चुके हैं, ऐसे में बाकी नेताओं के बीच वैचारिक मतभिन्नता पार्टी के लिए खासी नुकसानदेह साबित हो सकती है. फिलहाल ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि राहुल के नेतृत्व में भी कांग्रेस में कोई खास बदलाव नहीं आ पाया है और पार्टी अपने पुराने ढर्रे पर ही कायम है. यानी कांग्रेस अब भी बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों की अपनी पुरानी शैली से बाहर नहीं निकल पाई है. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि ,सोनिया गांधी ने बहुत कठिन समय में अपने बेटे राहुल को कांग्रेस की कमान सौंपी है. लेकिन अगर राहुल कांग्रेस को दुर्दिन से निकालने में कामयाब हो जाते हैं तो, पार्टी यकीनन अपने पुराने वैभवशाली अतीत को दोहरा भी सकती है.

राहुल गांधी फिलहाल कांग्रेस की रणनीतियों में संतुलन बैठाने की कोशिशों में जुटे हैं. लेकिन इस कवायद में तकरीबन हर बार उनसे गलतियां हो जाती है. लिहाजा पार्टी की पुरानी गलतियों की क्षतिपूर्ति के लिए राहुल कोई न कोई तरकीब आजमा रहे हैं. वैसे इस मामले में राहुल और उनके पिता राजीव गांधी के बीच कई समानताएं नजर आती हैं. शाह बानो केस में हुई भारी गलती की भरपाई के लिए ही राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद जैसे अतिसंवेदनशील मुद्दे को छेड़ने की चूक कर दी थी. राजीव की यही चूक बाबरी मस्जिद के विध्वंस की वजह बनी.

जैसा कि शेखर गुप्ता ने प्रिंट में लिखा था, "राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि स्थल का ताला खोलने की इजाजत दी थी. उन्होंने वहां राम मंदिर के शिलान्यास का पुरजोर समर्थन किया था. साल 1989 में उन्होंने राम राज्य लाने के वादे के साथ अयोध्या से ही अपना चुनावी अभियान शुरू किया था."

अगर बड़े संदर्भ में कहा जाए तो, राहुल ने असंगत विचारों और फैसलों से अपनी अहम चुनावी रणनीतियों की धार कम कर दी है. दरअसल राहुल राजनीति में उच्च नैतिकता की नजीर पेश करना चाहते हैं, और ऐसा ही वह विपक्षी नेताओं से उम्मीद करते हैं. यही वजह है कि राहुल ने गुजरात चुनाव में पाकिस्तान का नाम उछालने पर मोदी से माफी की मांग की है.

राहुल का कहना है कि मणिशंकर अय्यर के घर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और पाकिस्तानी राजनयिकों के साथ कोई गुप्त मीटिंग नहीं हुई है. बीजेपी और मोदी एक मामूली बात को बेवजह तूल दे रहे हैं, ताकि मतदाताओं को कांग्रेस के खिलाफ किया जा सके. यही वजह है कि राहुल चाहते हैं कि अपने अनर्गल आरोपों को लिए मोदी सार्वजनिक रूप से माफी मांगे.

कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा के मुताबिक, "पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी ऐसे सामाजिक समारोहों में कभी-कभार ही शामिल होते हैं, जिनमें देश या विदेश के उच्चाधिकारी उपस्थित हों. लिहाजा मनमोहन सिंह और मणिशंकर ने पाकिस्तानी राजनयिक के साथ कोई गुप्त बैठक नहीं की थी.

उस समारोह में भारतीय सेना के एक पूर्व प्रमुख, पाकिस्तान में तैनात रह चुके भारत के एक पूर्व उच्चायुक्त, देश के कई प्रतिष्ठित राजनयिक और कई प्रसिद्ध पत्रकार भी मौजूद थे. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी ने उस सामान्य से समारोह को लोगों के सामने भयावह और सनसनीखेज बताकर क्यों पेश किया?"

दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी के आरोपों पर कांग्रेस सफाई देती नजर आ रही है. मोदी के आरोपों पर कांग्रेस को यह कहना पड़ रहा है कि वह पाकिस्तान के प्रति नरम रुख नहीं रखती है. यानी इस मामले में कांग्रेस कहीं न कहीं बीजेपी के जाल में फंसकर उसके मनमुताबिक प्रतिक्रिया दे रही है. जबकि होना यह चाहिए था कि कांग्रेस को इस मामले में पुरजोर तरीके से अपना विरोध दर्ज कराना था, और मोदी पर जबरदस्त पलटवार करना था. ताकि कथित गुप्त बैठक को लेकर सारी सच्चाई जनता के सामने आती.

लेकिन, पूर्व विदेश मंत्री मणिशंकर अय्यर के आवास पर पाकिस्तानी उच्चायुक्त और पाकिस्तानी विदेश मंत्री के साथ हुई, जिस बैठक को लेकर मोदी ने चुनावी जनसभा में कांग्रेस पर निशाना साधा था, उसके जवाब में कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने मोदी को महज झूठा कहकर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया.

रविवार को आनंद शर्मा ने एएनआई से कहा कि "प्रधानमंत्री झूठ का कारोबार कर रहे हैं, गुजरात चुनाव में हार की हताशा मोदी और बीजेपी के बाकी नेताओं के चेहरे पर साफ नजर आ रही है. प्रधानमंत्री मोदी अपने पद की मर्यादा का ख्याल करें, उन्हें ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहिए. अगर उनके पास किसी गुप्त बैठक की पक्की जानकारी है (जो कि कतई सच नहीं है), तो यह देशद्रोह का काम है, लिहाजा बैठक में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन कार्रवाई करने के बजाए मोदी जनसभाओं में रो क्यों रहे हैं? अगर उस कथित बैठक में कोई गलत काम हुआ था, तो मोदी अबतक खामोश क्यों रहे और अब क्यों बोल रहे हैं?

कांग्रेस ने सोमवार को भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके यह दावा किया कि उस बैठक में कुछ भी गुप्त नहीं था.

कांग्रेस नेताओं के ढुलमुल बयानों और असंगत तर्कों ने बीजेपी के हौसलों को और भी बुलंद कर दिया है. ऐसे में बीजेपी नेता इस मुद्दे को लगातार उछाल रहे हैं. दरअसल बीजेपी इसे सामूहिक चेतना का रंग देने में जुटी है, ताकि मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सके. बीजेपी की ओर से एक पाकिस्तानी न्यूज चैनल का नाम भी उछाला जा रहा है, और यह आरोप लगाया जा रहा है कि मणिशंकर अय्यर ने उस चैनल से कहा था कि भारत और पाकिस्तानी के बीच शांति वार्ता तभी बहाल हो सकती है जब मोदी सत्ता से बेदखल होंगे.

साल 2015 में, मणिशंकर अय्यर ने पाकिस्तान के दुनिआ टीवी चैनल से कहा था, "हमें (कांग्रेस) सत्ता में वापस लाइए और उन्हें (मोदी) हटाइए. दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने का इससे बेहतर कोई और रास्ता नहीं है. हम (कांग्रेस) उन्हें (मोदी) हटा देंगे, लेकिन तब तक आपको (पाकिस्तान) इंतजार करना होगा."

मोदी अपनी सियासी बाजी होशियारी के साथ खेल रहे हैं. लेकिन मोदी के आरोपों पर पलटवार के लिए कांग्रेस अब मोदी की पाकिस्तान यात्रा को मुद्दा बनाना चाह रही है. कांग्रेस ने आरोप जड़ा है कि नवाज शरीफ के निमंत्रण पर मोदी अनिर्धारित कार्यक्रम के तहत लाहौर में क्यों रुके थे. लेकिन कांग्रेस के ऐसे हमलों से बीजेपी की छवि को प्रभावित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि बीजेपी ने भारतीय जनता की निगाह में 'राष्ट्रवादी' पार्टी का स्थान हासिल कर रखा है.

डिनर (रात्रिभोज) पर पाकिस्तानी राजदूतों से मिलना यकीनन कोई असाधारण घटना नहीं है, लेकिन पाकिस्तान से सटे राज्य यानी गुजरात में विधानसभा चुनाव के दौरान ऐसा करना, और कथित बैठक के शुरूआती विवरणों के बारे में विरोधाभास की वजह से, मोदी को कांग्रेस पर हमला बोलने के लिए मनमाफिक हथियार मिल गया. कांग्रेस ने डोकलाम विवाद के दौरान भी इसी तरह की गलती की थी. उस समय भारत और चीन के बीच जारी तनातनी के दौरान राहुल ने चीन के राजदूतों से मुलाकात की थी और उनसे डोकलाम से जुड़े विवरण मांगे थे. मोदी अब यह मुद्दा भी राहुल के खिलाफ गुजरात चुनाव में उठा रहे हैं.

व्यवहार कुशलता, भाषण कला और वाक् चातुर्य में मोदी जैसे माहिर खिलाड़ियों को मात देना आसान बात नहीं है. इसके लिए विपक्षी को बहुत सधे हुए और नपे-तुले शब्दों का इस्तेमाल करने की जरूरत है, ताकि उसके संदेश स्पष्ट रहें और जनता को किसी तरह का भ्रम न रहे. मोदी जैसे घनघोर राजनीतिज्ञ को हराने के लिए एक सुसंगत रणनीति की आवश्यकता है. वहां सेल्फ गोल यानी आत्मघाती बयानों और फैसलों के लिए कोई जगह नहीं है. कांग्रेस के नवविर्वाचित अध्यक्ष के सामने फिलहाल यही सबसे बड़ी चुनौती है.