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एमसीडी चुनाव: नई सियासत पर ग्रहण, क्या अब इस्तीफा देंगे केजरीवाल?

एमसीडी चुनावों में बीजेपी की जीत का असर आने वाले विधानसभा चुनावों पर भी पड़ेगा

Rajendra P Misra

पिछले दस साल से नगर निगम में काबिज होने के बावजूद दिल्ली की जनता ने बीजेपी को फिर से चुना है. इस दौरान बीजेपी के नेतृत्व वाले नगर निगम पर भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप लगते रहे हैं. दिल्ली में गंदगी की भरमार थी. कर्मचारियों को कई-कई महीने तनख्वाह नहीं मिल रही थी.

इसके लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी न सिर्फ दिल्ली बीजेपी बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घेरती रही है. बावजूद इसके दिल्ली की जनता ने बीजेपी को फिर से चुना और विधानसभा में 67 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी को धूल चटा दी.


आखिर इसके मायने क्या हैं? क्या दिल्ली की जनता ने अरविंद केजरीवाल को नकार दिया है? क्या यह अमित शाह की रणनीति की जीत है या फिर पूरे देश में चल रही मोदी के विकास और हिंदुत्व की लहर पर दिल्ली की मुहर है? दिल्ली नगर निगम में बीजेपी की इस जीत का राष्ट्रीय राजनीति और आने वाले विधानसभा चुनावों पर पड़ने वाले असर पर भी विचार करना जरूरी है.

जनता ने केजरीवाल की सियासत को नकारा

विपक्ष में रहते हुए सरकार पर हर विफलता के लिए हमले करना बेहद आसान है. सरकार के कामकाज पर नजर रखना लोकतंत्र में विपक्ष का काम भी है. लेकिन सत्ता में आने के बाद आप को परफॉर्म करना पड़ता है और परफॉर्मेंस भी ऐसा जिसे जनता परफॉर्मेंस माने.

केजरीवाल से यहीं गलती हो गई. अपनी सरकार के शुरुआती दिनों में उन्होंने बिजली-पानी सस्ता करने के अपनी पार्टी के वादे को पूरा तो जरूर किया, लेकिन सरकारी खजाने से सब्सिडी देकर. इसे विपक्ष ने आम जनता के पैसे की बर्बादी करार दिया.

उनकी सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन काम किये हैं. मोहल्ला क्लीनिक जैसे कदम भी सराहे गए. लेकिन केजरीवाल की उपराज्यपाल के बहाने केंद्र से आए दिन टकराने से जनता आजिज आ गई. केजरीवाल के सियासी रसूख घटने के संकेत राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव से पहले ही मिल गया था. एमसीडी के चुनावों में जबरदस्त शिकस्त ने बचे-खुचे भ्रम को भी दूर कर दिया है.

अमित शाह की रणनीति कामयाब

दिल्ली नगर निगम में बीजेपी के पिछले दस साल के कामकाज को देखें तो जनता को उसे नकार देना चाहिए था. लेकिन ऐसा लगता है अमित शाह की रणनीति काम कर कर गई. अमित शाह को पता था कि जनता बीजेपी पार्षदों के कामकाज से खुश नहीं है. दिल्ली के तीनों नगर निगम भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए थे. बीजेपी के पार्षदों पर भी गंभीर आरोप थे. लेकिन अमित शाह ने ऐसा कदम उठाया जिसे शायद ही कोई पार्टी उठाने का साहस रखती हो.

उन्होंने अपने सभी मौजूदा पार्षदों का टिकट काट दिया. उन्होंने यह चिंता नहीं की कि ये पार्षद नाराज हो सकते हैं और चुनावों में पार्टी को हराने के लिए काम कर सकते हैं. अमित शाह को इस बात का भान था कि इस समय पूरे देश में मोदी की लहर चल रही है और बीजेपी नेतृत्व का सिक्का चल रहा है. ऐसे में शायद की कोई नेता पार्टी नेतृत्व के फैसले के खिलाफ जाने की हिम्मत कर पाएगा. एमसीडी की जीत से साफ है कि अमित शाह की रणनीति कामयाब हो गई और एमसीडी में बीजेपी एक बार फिर से विराजमान हो गई.

मोदी की लहर सब पर भारी

दरअसल, 2014 के बाद से पूरे देश में जिस तरह मोदी की लहर चल रही है और बीजेपी एक के बाद एक विधानसभा और स्थानीय चुनाव जीतती जा रही है, उससे पहले ही साफ था कि अब की बार दिल्ली अपवाद साबित नहीं होगी.

2014 में जबरदस्त बहुमत से केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद बीजेपी को दिल्ली और बिहार में मुंह की खानी पड़ी थी. बिहार में सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने महागठबंधन बनाकर बीजेपी को हराया. लेकिन दिल्ली में एक सियासी नौसिखिए ने मोदी के रथ को रोक लिया था. बीजेपी को इस बात की कसक थी कि लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर कब्जा करने के बाद भी विधानसभा में उसे सिर्फ तीन सीटें ही मिल पाईं.

मनोज तिवारी की फेसबुक वॉल से

यह पार्टी का बेहद शर्मनाक प्रदर्शन था. लेकिन अब बीजेपी ने न सिर्फ इसका बदला ले लिया है, बल्कि केजरीवाल को सबक भी सिखा दिया है कि बोलो कम काम ज्यादा करो.

'आप' का आत्मचिंतन से इनकार

दिल्ली में मतगणना से पहले ही केजरीवाल समेत आप के बड़े नेताओं ने एक बेहद हास्यास्पद बयान दिया. उन्होंने कहा कि दिल्ली नगर निगम चुनाव में बीजेपी की जीतती है तो ईवीएम की जीत होगी और आप जीतती है तो जनता की जीत होगी. जब मतगणना के नतीजे आ ही रहे थे और बीजेपी बहुमत की तरफ बढ़ती हुई दिख रही थी तो तमाम टीवी चैनलों पर आप नेताओं ने घोषित कर दिया कि यह मोदी की लहर नहीं, ईवीएम की लहर है. साफ है कि आप के नेता पंजाब और गोवा के बाद दिल्ली में भी शिकस्त के बावजूद आत्मचिंतन के लिए तैयार नहीं है.

आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के अलावा एक जवाबदेह सरकार देने के वादे के साथ दिल्ली की सत्ता में आई थी. उसके नेता भष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के अगुआई में चले आंदोलन के दौरान और उसके बाद भी ‘राइट टु रिकॉल’ यानी चुने हुए जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के जनता के अधिकार की बात करते रहे हैं.

अब एमसीडी के चुनाव से यह तो साफ हो गया है कि आप ने जनता का विश्वास खो दिया है. ऐसे में क्या अरविंद केजरीवाल अपने कामकाज पर इसे जनमत संग्रह मानकर इस्तीफा देंगे, या फिर वे भी उन तमाम दलों की तरह यह मानते हैं कि चुनावी वादे चुनाव जीतने के लिए होते हैं, सत्ता में आने के बाद उन्हें भुला देना सियासत का मर्म है.

विधानसभा चुनावों पर पड़ेगा असर

हालांकि बीजेपी ने दिल्ली में नगर निगम का चुनाव जीता है, लेकिन इससे अन्य राज्यों में पार्टी नेताओं का मनोबल जरूर बढ़ेगा. इसका असर आने वाले विधानसभा चुनावों पर भी पड़ना तय है. एक साल के भीतर गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं. गुजरात में लंबे समय से बीजेपी की सरकार है. मोदी के केंद्र में आ जाने के बाद वहां बीजेपी का पहले जैसा रसूख नहीं रहा, जबकि हिमाचल उसके लिए आसान लक्ष्य होगा.

हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के मुखिया वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप हैं. बीजेपी को इसका लाभ मिलेगा. कर्नाटक, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दो साल के भीतर यानी 2018 में विधानसभा चुनाव होंगे. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पहले से ही बीजेपी की सरकार है.

यहां बीजेपी के पास मजबूत नेतृत्व भी है, लेकिन उसे चुनावों में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है. गुजरात के साथ इन राज्यों में सत्ता विरोधी लहर से कैसे निपटा जाए, दिल्ली नगर निगम के अनुभव से बीजेपी को मदद मिलेगी.

हालांकि कर्नाटक में हाल में हुए उप चुनावों में कांग्रेस ने अपना दबदबा बरकरार रखा है, लेकिन यहां बीजेपी सत्ता की रेस में है. अगर देश में इसी तरह मोदी की लोकप्रियता बरकरार रही और अमित शाह की रणनीति में चूक नहीं हुई तो इन राज्यों में भी बीजेपी के शानदार प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है.